एस.एन.वर्मा
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कोविड की पहली लहर जब आई तो भारत इस भरोसे पर बैठा था कि यहां यह महमारी उतने विकराल रूप से नही आयेगी जैसे अन्य देशो में है। पर एकाएक पहली लहर ने लोगो को चपेट लेना शुरू कर दिया। और भारत की तैयारी शून्य रही इसलिये मरीज बढ़ते रहे और मृत्युदर बढ़ती गई। अस्पतालो में पर्याप्त बेड नही, दवायें नही, आक्सीजन नही, डाक्टर भी नही। उस चपेट में मेडिकल स्टाफ भी आता रहा। सभी स्तर के मेडिकल स्टाफ में मृत्यु भयावह थी, नामी गिरामी डाक्टर इलाज करते करते खुद लाइलाज हो दम तोड़ दिये।
इसके बाद सरकार संभली, संसाधनों और दवाओ का बेहतर प्रबन्धन हुआ। टीकाकरण अभियान ने रफ्तार पकड़ा लोगो में जागरूकता बढ़ी। आज भारत के प्रबन्धन, टीकाकरण के बदौलत भारत में अब वह खतरा बहुत मामूली रह गया है। जो बीमार हो भी रहे है तो उनमें अच्छे होने का प्रतिशत बहुत ज्यादा है। अब लोग खुद ही टीकारण के लिये आगे आ रहे है। सरकार ने बूस्टर डोज निशुल्क भी कर दिया है, और पहले भी इसकी कीमते मामूली ही रही है।
इन्हीं सबका नतीजा है कि पिछले रविवार को दिन के बाहर बजके सोलह मिनट पर कोविड बैक्सीन की 200 करोड़वी डोज देने का चमत्कारिकाकारनामा भारत ने दिखाया। यह इसलिये चमत्कारिक है भारत जैसे विशाल देश की विशाल जनसंख्या मध्य आय वाली है। 200 करोड़ डोज में 71 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में दी गयी उसमें भी 51.1 प्रतिशत डोज महिलाओ को मिली। पर इसके बाद टीकाकरण के रफ्तार में सुस्ती आ गई है यह ठीक नही है। 16 जनवरी 2021 को टीके की पहली डोज लगी। इस मुहिम के 547 दिनो को 50-50 लाख टीको को चार फेज में बांट कर देखे तो आखिरी फेज में 50 लाख टीके लगनें में 191 दिन लगे। यह टीके के रफ्तार का चिन्ताजनक पहलू है। क्योकि करोना कम हुआ है गायब नही हुआ है। लोगो के सावधानियों में भी अब ढील देखी जा रही है। मास्क का उपयोग बहुत कम हो गया। भारी भीड़ बाजारो मेलों में, मन्दिरों में बिना मास्क के धक्का-मुक्की करते दिखती है। मेलों और त्योंहारो के बाद करोना थोड़ा गति पकड़ते देखा जा रहा है। शुक्र है कि विस्फोटक नही है। पर लोगों को सावधानियों को छोड़ना नही चाहिये।
करोना काल में, बेरोजगारी बढ़ी, महंगाई बढ़ी, जिसका असर अभी तक चल रहा है। इधर रूस यूक्रेन की लड़ाई, चीन की संख्त लाकडाउन नीति की वजह से अन्तरराष्ट्रीय व्यापार में गिरावट आ गई है। मुद्रा प्रसार बढ़ रहा है। बैक भारी दबाव में चल रहे है। सबसे विस्फोटक स्थिति चीन की है। तानाशाही होने की वजह से लाकडाउन सख्त है वहां का उत्पादन लगभग ठप वह बहुत बड़ा सप्लायर है पर उसकी ग्रोथ रेट बहुत नीचे आ गई है। वह की जनता बेहद परेशान है। लोग घरो में बन्द है। चीन इतना संख्त होते हुये करोना पर काबू क्यों नही पा रहा है यह शोध का विषय है। चीन सहयोग नही करेगा वरना दुनियां के श्रेष्ठ वैज्ञानिको को वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेंशन के माध्यम से चीन में लगाकर चीन के असफलता की वजहो का पता लगाना चाहिये। उस पर काबू पाने कोे इलाज ढूढना चाहिये। कहते है चीन से वह बिमारी फैली है। इसके कई रूप बन रहे है। स्थिति विस्फोटक होकर दुनियां के परेशान कर सकती है। इसलिये अन्तराष्ट्रीय बिरादरी को इस पर गम्भीरता से विचार कर वाजिब कदम उठाना चाहिये चीन की भी मानवता प्रति सेवा होगी अगर वह अन्तरराष्ट्रीय विरादरी का सहयोग करता है। हालाकि यह उसका आन्तरिक मामला है। एक रिपोर्ट के अनुसार चीन की अर्थव्यवस्था अप्रैल जून तिमाही में सिर्फ 0.4 फीसद बढ़ी है।