शबाहत हुसैन विजेता
लखनऊ. कोरोना वायरस रोजाना किसी अहम शख्सियत की जान ले रहा है. कल डॉ. कुंवर बेचैन की जान गई तो आज उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग के वरिष्ठ अधिकारी डॉ. वाई.पी. सिंह नहीं रहे. पढ़ने वालों को लग सकता है कि डॉ. कुंवर बेचैन और किसी सरकारी अधिकारी का क्या मुकाबला.
डॉ. कुंवर बेचैन तो बहुत शानदार गीतकार थे. गीतों की दुनिया के राजकुमार थे. उनके गीतों में जो था वो दूसरे गीतकारों के गीतों में नहीं मिलता. कुंवर बेचैन का जो अंदाज़ था उस पर पूरी दुनिया फ़िदा थी.
डॉ. वाई.पी.सिंह भी आम अधिकारी नहीं थे. उनके जैसा अधिकारी चिराग लेकर ढूंढा जाए तो भी नहीं मिलेगा. संस्कृति विभाग में आने से पहले वो इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाते थे. संस्कृति विभाग में आये तो अपनी कार्यशैली से चीज़ों को बदलने का सिलसिला शुरू किया.
डॉ. वाई.पी. सिंह अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक भी थे और संस्कृति विभाग के संयुक्त निदेशक भी. सरकारी अधिकारी होकर भी वह बेहद पारदर्शी तरीके से काम करते थे. पत्रकारों से भी कुछ छुपाते नहीं थे और मंत्रियों से भी बराबरी से खड़े होकर बात करते थे.
करीब बीस साल पहले संस्कृति विभाग के मंत्री से उनकी किसी बात को लेकर ठन गई. मंत्री ने भी तय कर लिया कि उन्हें विभाग में रहने नहीं देंगे. मंत्री ने उन्हें इस इल्जाम पर निलंबित करा दिया कि वह अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक हैं लेकिन जवाहर भवन, लखनऊ में ज्यादा वक्त बिताते हैं.
वाई.पी.सिंह ने अपने निलंबन को हाईकोर्ट में चैलेन्ज किया. उन्होंने बताया कि उनके पास संस्कृति विभाग का भी अहम चार्ज है. वह एक साथ दोनों पदों को हैंडिल करते हैं. अयोध्या में पूरा स्टाफ है. वो लखनऊ रहें या अयोध्या में काम में अड़चन नहीं आती है. हाईकोर्ट ने उनका निलंबन रद्द करते हुए यथा स्थिति बनाए रखने का आदेश दे दिया.
हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद वह काफी समय तक अयोध्या नहीं गए और किसी न किसी काम से मंत्री से रोज़ मिलते रहे. मुकदमे की अगली सुनवाई पर मंत्री ने अदालत को बताया कि वाई.पी. सिंह ने तो अयोध्या जाना ही छोड़ दिया. इस पर उन्होंने कहा कि अदालत ने जब यथा स्थिति बनाए रखने को कहा तब मैं लखनऊ में था. मैं अदालत की अवमानना कैसे करता. मुकदमा खत्म हो गया.
एक न्यूज़ चैनल डॉ. वाई. पी. सिंह के खिलाफ सीरीज चला रहा था. इसमें उनका पक्ष नहीं लिया गया था. उन्होंने कई बार चैनल से कहा कि उनका पक्ष भी लिया जाए मगर इसके बाद भी उनकी बात नहीं सुनी गई. छतर मंजिल में एक कार्यक्रम था. कार्यक्रम में राज्यपाल भी मौजूद थे. कार्यक्रम की कवरेज करने आये उस न्यूज़ चैनल का वह रिपोर्टर भी था जो उनकी सीरीज चला रहा था. कार्यक्रम के बाद उन्होंने रिपोर्टर से कहा कि मेरे खिलाफ जो खबरें चला रहे हो उसमें मेरा पक्ष क्यों नहीं ले रहे हो. इस पर रिपोर्टर ने कहा कि इसकी कोई ज़रूरत नहीं है. सीरीज चलेगी, वह नहीं रुकेगी. इस पर वाई.पी. सिंह ने कहा कि रिपोर्टर वही अच्छा जिसकी खबर पर कार्रवाई हो.
तुम इस सीरीज की कई कड़ियाँ चला चुके हो लेकिन मेरा कुछ भी बिगाड़ नहीं पाए. सीरीज खत्म हो जायेगी और इस सीरीज को लोग भूल भी जायेंगे क्योंकि इसमें सच कुछ है ही नहीं. खबर में ऐसे बहुत से आदेशों का ज़िक्र है जिनसे मेरा कोई लेना देना ही नहीं है. मेरे खिलाफ सीरीज चला रहे हो तो कम से कम यह तो पता कर लो कि संस्कृति विभाग में मेरे चार्ज में क्या-क्या है? इतनी मेहनत तो करो कि कम से कम दस फीसदी आरोप साबित कर पाओ. इतना कहकर वाई.पी. सिंह चल पड़े. चलते-चलते वह अचानक से रुके और बोले कि किसी को मेरे दफ्तर भेजकर मेरी दूसरी तस्वीर मंगा लेना. जो तस्वीर तुम चला रहे हो वह अच्छी नहीं लगती है.
डॉ. वाई.पी. सिंह ने अयोध्या शोध संस्थान में काफी परिवर्तन किये. इस संस्थान के ज़रिये उन्होंने दुनिया के उन देशों को अयोध्या से सीधे जोड़ा जहाँ भगवान राम को पूजा जाता है. उन्होंने दुनिया के कई देशों की रामलीला भी अयोध्या में करवाई. भगवान राम को लेकर उन्होंने लगातार रिसर्च की. उस रिसर्च को लगातार प्रकाशित करवाया.
अयोध्या शोध संस्थान के ज़रिये भगवान राम को लेकर वह जिस तरह की रिसर्च लगातार कर रहे थे वह आने वाले दिनों में धरोहर की तरह से देखी जायेगी. अपने काम को वह बड़ी शिद्दत से करते थे और इसमें किसी का भी हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करते थे.
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डॉ. वाई.पी.सिंह के अचानक चले जाने से अयोध्या शोध संस्थान का भी नुक्सान हुआ है और संस्कृति विभाग का भी. उनके ज़रिये कलाकारों को जो फायदा पहुँचता था वह भी रुक गया है. वाई.पी. सिंह का जाना सिर्फ एक अधिकारी का जाना नहीं है. वह शानदार रिसर्च स्कालर और बेहतरीन दोस्त थे. दोस्त का जाना तो कष्ट देता ही है. आप यादों से कभी जुदा नहीं होंगे वाई.पी. सिंह.