धर्मान्तरण और दलितकरण

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एस.एन.वर्मा
मो.7084669136

 

इस समय यह मुद्दा बहस का मसाला बना हुआ है कि धर्म बदलकर जो लोग मुस्लिम या इसाई बने है और दलित है उन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जा सकता है या नहीं। यह तो सभी जानते और मानते है धर्मान्तरण लालच देकर बहला फुसला कर करवाया जाता है। उन्हें बेहतरी का अश्वासन दिया जाता है। चूकि धर्मान्तरण स्वीकार करने वाले अनुसूचित जाति के होते है और छूने के काबिल नहीं माने जाते है उन्हें बरगलाया जाता है कि मुस्लिम और ईसाई धर्म में ऊंच नीच जैसे जाति भेंद का कोई स्थान नही है। अमीर गरीब सभी बराबर है सबमें भाई चारा है। चूकि अनुसूचित जाति और अछूत कहे जाने वाले लोग समाज से अलग किये गये रहते है। तथा कथित ऊंची जाति के लोग उनसे दूरी बना कर रहते है। उन्हें छूते भी नहीं है न तो अपना सामान खासकर खाने पीने का उनसे छुआते नहीं है। तो उनमें एक कुन्ठा घर कर जाती है। उन्हें हसरत होती है कि उन्हंे भी औरो की तरह सम्मान मिले सबके साथ मिले जुले, साथ बैठकर खाना पीना करे। मुस्लिम और इसाई धर्मान्तरण कराने वाले उन्हें अश्वास्त कराते है कि उनकी जो हसरते है वह उनका धर्म स्वीकार कर लेने पर सब पूरी हो जायेगी। वे शान से सर उठा कर हर कही आ जा सकेगे बैठे सकेगे, सभी के बीच सबके साथ वे भी बैठ सकेगे। पर जब धर्म बदल कर जब इसाई या मुसलमान बन जाते है तब उन्हें पता चलता है कि जो भी बातें धर्मान्तरण कराने वाले बताये थे वह कोरी गय है। सिवा इसके कि उनका नाम बदल जाता है और धर्म बदल जाता है इसके अलावा धर्मानतरण से उन्हें कुछ भी नहीं मिलता है। वह पूर्व की ही तरह अछूत बने हुये है। अब धर्म बदलवाने वाले दिखते भी नही है। पर अब पछतावे होेत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।
इस सम्बन्ध में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया है कि मुस्लिम इसाई दलितो को अनुसूचित जाति का दर्जा नही दिया जा सकता। सरकार ने एक आयोग भी गठित किया है जो विचार कर यह बतायेगा कि दलित समाज के लोगा जो मुसलमान या इसाई बने है उन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाय या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर अपना कोई फैसला नही दिया है। सम्भवतः कोर्ट आयोग की रिपोर्ट का इन्तजार करेगा फिर अपना निर्णय देगा।

 

दिक्कत यह है कि पहले के कुछ आयोग ने मन्तव्य दिया है। कि धर्मान्तरण अख्तियार करने वाले दलितो को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाना चाहिये। पर इस प्रकार की मान्यता देने पर दलित समाज में उथल पुथल मच जायेगा। छल, बल लालच आदि का हथकन्डे अपना कर धर्मान्तरण कराने के कारनामें तेज हो जायेगे। हिंसा भी भड़क सकती है। यह तो सभी जानते है आमतौर पर धर्मान्तरण छल कपट लोभ लालच के प्रतिफल होते है।
दलित धर्मान्तरण कर लेने के बाद पाते है कि उनके लिए अलग गिर्वाघर है अलग मस्जिद है जाति उनका पीछा नही छोड़ रही है। यहां तक कि इनके क्रब्रिस्तान भी अगल होते है। धर्मान्तरित दलितो को अगर अनुसूचित जाति का दर्जा दे दिया जाय तो वे दो तरह के लाभ का हकदार हो जायेगे एक तो अनुसूचित जाति का मिलने वाला लाभ दूसरा अल्पसंख्यक होने का मिलने वाला लाभ पर इससे तो जो दलितों धर्मान्तरण नही हुआ है उनके हितों पर सीधा कुठारघात होगा। जिससे और गलत नतीजे सामने आयेगे। सच पूछा जाय तो दलित मुस्लिम दलित इसाई जैसी कोई सग्या नहीं होनी चाहिये। देश को जातीयता को तोड़ने की जरूरत है न कि नयी जाति पैदा करने की। समाज को प्रगति करना है तो जातिपात की रूढ़ता तोड़नी होगी। वैसे जैसे जैसे सक्षरता बढ़ रही है, सम्पन्नता बढ़ रही है जात पात अपने आप टूट रही है। प्रमाण है अन्तरजातीय और अन्तरधार्मिक शादियंा जिनका चलन दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट क्या निर्णय देता है इसकी प्रतीक्षा है।

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