विपक्ष एकता में विरोधाभास

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एस.एन.वर्मा

जब जब विपक्ष भाजपा के खिलाफ एक मोर्च बनाने की कोशिश करता है तो एकता की कोशिश परवान चढ़ने से पहले अनेकता नजर आने लगती है। ताजा उदाहरण है दिल्ली के अपना दल के महत्वपूर्ण नेता और पूर्व वित्त और शिक्षामंत्री मनीष सिसोदिया के हिरासत में ले लिया है। ईडी केस चलाने जा रही है। इस गिरफ्तारी के खिलाफ विपक्ष नेताओं ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। पर पत्र पर हस्ताक्षर करने से उनके साथ रहने वाली कुछ पार्टिंयो ने अपने को अलग रक्खा नतीजा यह निकला कि विपक्ष जिस विपक्षी एक जुटता को दिखाना चाहता था उसकी हवा अलग रहने वाली पार्टियों निकाल दिया। विपक्ष पत्र पर हस्तक्षर कराना चाहता था।ें सरकार द्वारा ईडी का गलत इस्तेमाल करने की बात लिखी गयी थी। सबसे आश्चर्य तो कांग्रेस पार्टी पर होता है उसके कई नेता ईडी के राडार पर है और आरहे है। खुद राहुल गांधी और सोनिया गांधी से लम्बी पूछताछ ईडी कर चुकी है। प्रमुख विपक्षी पाटियों को इससे अपने को अलग रखना विपक्ष एकता के विरोधाभास को उजागर करता है।
कांग्रेस ने इस विरोध पत्र पर दस्तखत न करने की वजह बड़ी हस्यास्पद बताई। उसका कहना है ईडी के 95 प्रतिशत केस झूठे होते है पर जो पांच प्रतिशत केस सही होते है उनमें एक केस मनीष सिसोदिया का है। अभी तो मनीष सिसोदिया के खिलाफ जांच प्रारम्भिक स्तर पर फिर कांग्रेस कोे किन सुत्रों से पता चल गया है कि यह सच्चा केस है।
तामिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के जन्म दिन पर कई महत्वपूर्ण नेता कई विपक्षी दल के एकत्रित हुये थे। वहां कांग्रेस पर आक्षेप किया गया कि कांग्रेस विपक्षी दलो को एक साथ लाने के लिये वैसी कोशिश नहीं कर रही है जैसी उसे करनी चाहिये। कांग्रेस देश की सबसे पुरानी और ग्रैन्ड पार्टी है मुख्य विपक्षी दल भी है। विरोधी नेताओं का कांग्रेस पर यह आरोप कांग्रेस की गतिविधियों से सही लगता है। इसकी मुख्य वजह है कि कांग्रेस विपक्षी मोर्च का केन्द्रीय नेता राहुल गांधी को देखना चाहती है जबकि विपक्षी दल में भी दो तीन उम्मीदवार हो जो ये नेतृत्व अपने लिये चाहते है।
इस सन्दर्भ में इस सरकार से पहले चन्द्रबाबू नायडू ने अपने को केन्द्र में रखकर विपक्षी एकता की कोशिश की थी। वह पूरी तरह नाकाम रहे और काफी दिनों तक विलुप्त रहे। अब जब आम चुनाव नज़दीक आ रहा है तो अब दिखने लगे है। ममता बनर्जी का इसको लेकर अलग राग है। एक बार दिल्ली तक हो आई। दूसरे राज्यों में अपनी पार्टी को फैलाने की कोशिश में है। दूसरे राज्य में अपने उम्मीदवार को चुनाव लड़ा कर देख लिया बात बनी नहीं। अब उन्होंने अकेले रहने का फैसला किया है। केसीआर एक बार पहले भी इस मुहिम में आगे बढ़े थे फिर बीच में ही लौट गये। अब फिर एक बार कोशिश कर रहे है। एक आयोजन भी किया था जिसमें कई विपक्षी नेता भी शामिल हुये थे। अभी नीतीश और अखिलेश भी मिल चुके है। देखना है ऊंट किस करवट बैठता है। उड़ीसा के मुख्यमंत्री ने अपने पत्ते नहीं खेले है।
चर्चित पत्र में कांग्रेस के अलावा डीएमके, जेडीयू, जेडीएस में अपने को अलग रखकर विपक्षी एकता का गुब्बारा फोड़ रही है। आप, टीएमसी, आजगंडी वगैरह भाजपा के जिस विरोधी मतदाओं पर नज़र गड़ाये हुये है उन मतदाताओं का बड़ा हिस्सा कांग्रेस के पक्ष का है। कांग्रेस इसे जानती है। फिर कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे यह कह रहे है कि अगले लोकसभा के बाद कांग्रेस की सरकार बनेगी। विपक्ष में कांग्रेस की जो हैसियत है क्या अकेले दम पर सरकार बना लेगी। अगर विपक्षी दलों को साथ लेना भी चाहे तो क्या विपक्षी दल उसकी अगुआई को स्वीकार करेगे। उत्तर तो नकारात्मक ही निकलता है।
अगर कुछ भाजपा के खिलाफ एक हो भी जाते है तो सीटो के बटवारे को लेकर बवाल मचेगा। तब कुछ दल इस एकता से अलग भी हो सकते है। अगर विपक्ष के इन हालातों पर नजर डालें तो भाजपा का सितारा ही बुलन्द दिखता है। फिर भाजपा का चुनाव प्रबन्धन इतना अच्छा होता है कि टाप से लेकर बाटम तक हर एक के काम साफ साफ बटे हुये है। अदना से अदना कार्यकर्त्ता को भी महत्व दिया जाता है। वह भी अपनी अहमियत को समझता है और उत्साह से काम को आजाम देने में लगा रहता है। प्रधानमंत्री हर चुनाव नतीजों के बाद इन कार्यकर्त्ताओं का हौसला बढ़ाते रहते है। इन सबके बैक ग्राउन्ड में विपक्ष यह तय कर रहा है कि अभी केवल विपक्षी एकता पर ध्यान केन्द्रित किया जाय।
नेतृत्व की बात चुनाव के बाद तय किया जाय। अगर विपक्षी एकता कुछ दलो को लेकर बन भी गयी तो वह नारंगी के शंक्ल की होगी। जो ऊपर के एक दिखती है पर छिलका उतार दो तो सब अलग अलग। मजबूत विपक्ष लोकतन्त्र का आधार है।

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