कांग्रेस अध्यक्ष की चुनौतियां

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एस.एन.वर्मा
मो.7084669136

 

खरगे के सर पर कांग्रेस अध्यक्ष का ताज जिस आसानी से आया है उतनी ही मुशकिल उनकी आगे की राहे है। एक नही कई चुनौतियां मुह फैलाये खड़ी है। पहले तो पार्टी की परिवारवाद से मुक्ति तो मिली पर यह कह देना जल्दीबाजी होगी कि खरगे गांधी परिवार से मुक्त होकर काम करेगे। खरगे की गिनती एक तो गांधी परिवार के निकटतमो में होती है। दूसरे खरगे ने खुद कहा है गांधी परिवार से सलाह लेने में कोई हर्ज नही है। दूसरे क्या परिवार अपनी अनदेखी बरदाश्त कर पायेंगा। पार्टी में कई पावर सेन्टर है हर पावर सेन्टर का नेेता अपनी अहमियत और आस्तित्व बनाये रखने के लिये तरह-तरह की चाले चलता रहता है और परिवार के करीब बना रहना चाहता है। खरगे को इन पावर सेन्टरों को तोड़ना होगा।
2024 के आम चुनाव के लिये वख्त कम रह गया है। आगे 18 राज्यों में चुनाव होना है। तत्काल हिमाचल प्रदेश और गुजरात में चुनाव होना है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ को छोड़ कर हर राज्य में कागं्रेस की कमजोर हालत बद से बदतर होती जा रही है। हिमांचल प्रदेश गुजरात, और कर्नाटक में कांग्रेस सत्ता वापस पाने के लिये बेकरार है। इन तीनो राज्यों के नतीजों से खरगे की काबलियत की जांच होगी। अगर इन राज्योें में अपने को साबित कर पाते है तो आगे की राहें कुछ आसान बन सकती है।
गुजरात के चुनाव में दिलचस्प समीकरण है। कहने को तो कांग्रेस की टक्कर भाजपा से है। पर आप पार्टी धीरे-धीरे अपना प्रभाव बढ़ा रही है। अगर गुजरात में आप अपना प्रभाव बढ़ाती है तो वह कांग्रेस की कीमत पर होगी। तब वहां के हालात कांग्र्रेस के लिये परेशानियां खड़ी कर देगे। कांग्रेस के लिये आगे की राह के लिये मुशकिलो का ढेर लग जायेगा। कर्नाटक का किस्सा दूसरे किस्म का है। वह कांग्रेस के दो दिग्गजों में आपस की टक्कर है। वहां के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारामैया और प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार अलग-अलग रास्ता पकड़े हुये है। खरगे को इन दोनो को साथ लाकर पार्टी के लिये काम करने के लिये तैयार करना पड़ेगा।
अगले साल राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव होेने वाले है। छत्तीसगढ़ में भी दो गुट है और राजस्थान में भी दो गुट है। हर गुट का मुखिया मुख्यमंत्री बनना चाहता है। खरगो की जिम्मेदारी होगी दोनो गुटो को एक रखके वहां कांग्रेस की सत्ता बनाये रक्खे। मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने बागवात की वजह से कांग्रेस ने सत्ता खो दी है। भाजपा ने कब्जा जमा रक्खा है। खरगे को मध्यप्रदेश में कांग्रेस राज्य लाने की जिम्मेदारी होगी।
खरगे को संगठन की ओर भी ध्यान देना होगा। संगठन का ढांचा बहुत ढीला पड़ गया है। कई पावर सेन्टर तो है ही। कार्यकर्ता और नेताओं में दूरी बनी हुई है। निचले कार्याकर्ताओं तक कोई निर्देश ठीक से नहीं पहुच पाते है। उनमें निराशा है। मनोबल गिरा हुआ हैं। खरगो को आम कार्यकर्त्ताओं तक जाकर अपनी उपलब्धि को उनके लिये सहज बनाना होगा। आसान सम्पर्क से उनकी निराशा को दूर करना होगा। उनको कुछ जिम्मेदारियां देकर उनका मनोबल बढ़ाना होगा। कार्यकर्ताओं को लगे कि उनकी कुछ उपयोगिता पार्टी के लिये है।
राहुल गांधी के उपाध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस में पावर सेन्टरों की संख्या बढ़ गई। ये पावर सेन्टर लगातार अपने प्रयासों में लगे हुये है कांग्रेस की दशा सोचनीय बनाते जा रहे है। इसके चलते कांग्रेस लगातार नुकसान उठाते चली जा रही है। पर यह समस्या दूर होते नही दिख रही है। यह कहना की परिवार का शिकंजा पार्टी पर अब ढीला होगा। सम्भव नही लगता। इन सबसे खरगे को निपटना है। अगर पार्टी में सफलता लानी है तो समस्याओ को असरदार ढंग से सबको साथ लेकर निपटाना होगा। देखना होगा कि खरगे अपने निर्णाय स्वतन्त्र रूप से ले पाते है या नही। पार्टी में खीचतान की वजह से कोई फैसला तुरन्त नही हो पाता है मामला अधर में लटकता रहता है। जिसका नुकसान पार्टी पंजाब में देख चुकी है। खरगे को इससे भी निजात दिलाना होगा।
ज्वलन्त समस्या राजस्थान है। जहां पायलट गुट और गहलौत गुट गलाकाट स्पर्धा में है। हाईकमान द्वारा भेजे गये लोगो की गहलौत गुट ने अवमानना भी की है। पर खरगे ने मामले को नर्मी से सुलझाया हाईकमान को समझाया तब सोनिया गांधी गहलौत से बात करने को राजी हुई। खड़गे सबको साथ लेकर चलने में विश्वास करते है। अहम नही पालते है। कार्यकर्ता उनसे आसानी से मिल सकेगे। इसका फायदा यह होगा की नेतृत्व को सही फीडबैक मिलता रहेगा तो सही और तुरन्त निर्णाय लेने में मदद मिलेगा। खडगे विनम्र भी है विरोधी पार्टीयों से समंजस्य बैठा भाजपा के खिलाफ सशक्त विपक्ष बनाने की जिम्मेदारी भी निभानी होगी। अभी कांग्रेस अन्य पार्टियो के लिये अछूत बनी हुई है।
खडगे के पास लम्बा राजनैतिक अनुभव है। दूसरे पार्टी के नेताओं से सम्बन्ध भी अच्छे है। देखना होगा वे इसका कितना फायदा उठा पाते है। अगर कांग्रेस की संस्कृति में वे बदलाव ला सके और आगे के चुनावो में कांग्रेस की स्थिति बेहतर बना सके तो उनकी गिनती कांग्रेस के बड़े नेताओ में होनी लगेगी। चूकि कांग्रेस देश की पुरानी ग्रैन्ड पार्टी है इस लिये सबकी निगाहे खड़गे पर लगी हुई है। समय बतायेगा खड़गे क्या कर पाते है। गांधी परिवार की छाया से पार्टी को कितना बाहर निकल पाते है। कांग्रेस को कैसे शिखर की ओर बढाते है।

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