1962 का भारत चिफिंग के दिमाग पर हावी रहता है। उसी से प्रेरित होकर चिनफिंग जब से गद्दी पर बैठे है भारत की संधियां तोड़ते रहते है। इस समय उनके देश में उनके खिलाफ विद्रोह का माहौल बना हुआ है उनसे इस्तीफे की मांग हो रही है। सबका ध्यान खीचने के लिये भारतीय सीमा पर तोड़ फोड़ कराना उन्हें आसान रास्ता दिख रहा है हालाकि वह ऐसा तभी से कर रहे है जबसे गद्दी पर बैठे है। चिनफिग के आने के बाद चीनी सेना ने पांच बार घुसपैठ की बड़ी वारदात की है। चीन जिस 1993 और 1996 समझौते की बात करता है वह तंग श्याओफिंग के काल में हुआ था। इस समझौते की भारत द्वारा तोड़ने की बात चीन कर रहा है। पर जब तक श्माओफिग रहे कुल मिलाकर सीमा पर शान्ती रही। दोनो तरफ के सैनिक सीमा पर गश्ती करते मिल जाते थे तो सलाम दुआ के साथ मिठाई भी बाटते थे, नाच गाना भी होता था। पर चिनफिंग के आते ही सब खत्म हो गया। चीन बार बार सीमा को तोड़ते रह कर भारत पर दबाव बनाये रखना चाहता है। पर भारतीय सैनिक पलटवार कर चीनी सैनिको खदेड़ते रहते है। हमारी सेना में भी कुछ लोग हताहत होते है पर भारतीय सेना की तुलना में चीनी सेना को भारी संख्या में नुकसान पहुचता है जिसे चीन दबाये रखने में यकीन रखता है और बहुत कम करके बताता है। 2020 की घुसपैठ में भारत के 20 सैनिक शहीद हुये थे जब की चीन के 40 सैनिक मरे थे। जिसे चीनी सेना बहुत कम करके बता रही थी। पर विदेशी मीडिया 40 से ज्यादा सैनिको को मरने की खबर दे रहा था।
अब नया हमला करके चीन एलएसी पर नया मोर्चा खोलने की चाहत दिखा रहा है। अरूणाचल के सीमान्त क्षेत्र के पास चीनी बस्तियां बसा रहा है जिससे अरूणाचल को चीनी इलका बता सके और विवाद को जिन्दा रख सके।
चीनी घटनाओं को विराम देने के लिये अन्तरराष्ट्रीय सीमा का स्पष्ट निर्धारित होना जरूरी है। चीन से इस सम्बन्ध में कई बार चर्चा की गई है पर चीन अपनी शर्ते थोपना चाहता है इसलिये वार्ताओं का कोई नतीजा नहीं निकला पा रहा है। चीन भारत के उभार को अपने लिये खतरा मानता है। उसे डर है कालान्तर में भारत उसके सर्वशक्तिमान होने का सपना तोड़ दे। भारत की उभरती अर्थव्यवस्था और अन्तरराष्ट्रीय मंच पर भारत का बढ़ता कद उसे नही भा रहा। इस समय अमेरिका और चीन में टक्कर है रूस पीछे छूट चुका है। चीन के बार बार के उल्लघंन का भारत को स्थायी हल ढूढना चाहिये। चीन महसूस करता है सीमा का निर्धारण भारत के लिये अहम है इसीलिये वह इसे उलझाये रखना चाहता है। क्योंकि अगर सीमा विवाद सुलझ गया तो भारत जो संसाधन अभी सीमा पर सेना के रखरखाव के लिये खर्च कर रहा है वह भारत के विकास में लगा देगा। इससे चीन के दबदबा पर खतरा पैदा हो सकता है। अभी सीमा पर भारत को हजारो करोड़ लगाना पड़ रहा है जिससे वित्तीय बोझ बढ़ता चला जा रहा है। पूर्वी लद्दाख पर सेना 31 महीना से तैनात है इसमें रोजाना तकरीब ढेड सौ करोड़ रूपये रोजाना खर्च होने का अनुमान है। अगर इस तरह के खर्चे सीमा पर बढ़ते रहे तो भारतीय अर्थव्यवस्था में असुन्तलन भी पैदा हो सकता है। इसलिये इस मसले को लेकर ऐसी नीति बनाई जाये जिससे चीन को इस तरह का आक्रमण महंगा पडे़। उसके अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा इसमें लगे। इस समय चीन की अर्थव्यस्था डवाडोल चल रही है देश में असन्तोष पनप रहा है। चिनफिंग की अपने एकक्षत्र राज्य की अन्तरराष्ट्रीय फलक फलक पर कमजोरी और नाकामी जाहिर हो रही है जिससे उनकी शान को बट्टा लग रहा है। चिनफिग को इसे सभालने के लिये भारत से उलझना ही आसान रास्ता दिख रहा है। पर भारत उनकी आशा के विपरीत माकूल जवाब दे रहा है। भारत जितना ही चीन पर दबाव बढ़ा पकेगा उतना ही उसके हित में होगा। अभी चीन से भारत में बहुत सा सामान आता है जिससे चीन की मोटी कमाई होती है। भारत इसका कोई तोड़ ढूढे। जब चीन को महसूस होगा कि आर्थिक श्रोत में भारी धक्का पहुंचा रहा है तभी चीन दबाव में आकर मजबुरी में भारतीय सीमा पर छेड़छाड़ बन्द करेगा और भाई भाई बनाने का रास्ता ढूढेगा। अभी चिनफिंग ने जीवन भर सत्ता में बने रहने के लिये जो जुगाड़ किया है उस पर चीनी जनता आंच पैदा कर रही है। चीनी जनता का ध्यान हटाने के लिए रास्ता खोज रहे है चिनफिंग
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