कमेटी ने परीक्षा के पैटर्न और प्रश्न पत्र के साथ ही स्कूलों की पढ़ाई के तौर-तरीकों और अभिभावकों की सोच में बदलाव लाने की जरूरत पर जोर दिया है। जिसमें स्कूलों से नीट जेईई या एनडीए जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले बच्चों को पहले से पहचान कर उन्हें पढ़ाई के दौरान उसके जुड़ी अतिरिक्त कक्षाएं लगाने जैसी व्यवस्था बनाने पर जोर दिया है।
डाक्टर या इंजीनियर बनने की दौड़ में शामिल बच्चों की कोचिंग के प्रति दिनों-दिन बढ़ रही निर्भरता से अभिभावक भले अनभिज्ञ है लेकिन शिक्षा मंत्रालय की चिंताएं इसे लेकर बढ़ी हुई हैं। वह बच्चों को रटने-रटाने के इस खेल से बाहर निकाल उन्हें स्कूली माहौल में पढ़ते व बढ़ते देखना चाहता है। जहां उनको पढ़ाई के साथ खेल-कूद जैसी दूसरी गतिविधियों के लिए भी समय मिलता है। यही वजह है कि मंत्रालय ने नीट-जेईई मेन जैसी परीक्षाओं के लिए पैटर्न में बदलाव को लेकर बड़ी तैयारी शुरू की है।
ज्यादा संभव है कि अगले साल नीट व जेईई मेन की होने वाली परीक्षाओं में यह बदलाव दिखाई भी दे। कोचिंग से बच्चों की निर्भरता को घटाने के लिए शिक्षा मंत्रालय की ओर से गठित नौ सदस्यीय समिति ने इस दिशा में काम शुरू कर दिया है। साथ ही संकेत दिए है कि इन परीक्षाओं के दौरान अब बच्चों की परख बुद्धि, दृष्टिकोण और व्यक्तित्व आदि स्तरों पर की जाएगी। प्रश्न पत्रों के स्तर को भी सीबीएसई सहित सभी राज्यों के शिक्षा बोर्ड के 11 व 12 वीं कक्षा के पाठ्यक्रम के अनुरूप ही रखा जाएगा।
रट्टा मारकर नहीं पाएंगे जवाब
समिति से जुड़े सदस्यों के मुताबिक इसका मतलब ये कतई नहीं होगा कि परीक्षाओं में आसान सवाल पूछे जाएंगे, बल्कि परीक्षा के प्रश्नों को कुछ इस तरह से तैयार होंगे कि कोई रट्टा मारकर उनके उत्तर नहीं दे सकेगा। मौजूदा समय में जेईई मेन में हर साल करीब 13 लाख व नीट-यूजी में करीब 23 लाख छात्र शामिल हो रहे है।
कमेटी ने परीक्षा के पैटर्न और प्रश्न पत्र के साथ ही स्कूलों की पढ़ाई के तौर-तरीकों और अभिभावकों की सोच में बदलाव लाने की जरूरत पर जोर दिया है। जिसमें स्कूलों से नीट, जेईई या एनडीए जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले बच्चों को पहले से पहचान कर उन्हें पढ़ाई के दौरान उसके जुड़ी अतिरिक्त कक्षाएं लगाने जैसी व्यवस्था बनाने पर जोर दिया है, ताकि बच्चों को इसके लिए कोचिंग की ओर रुख न करना पड़े।
अभिभावकों की काउंसलिंग पर भी होगा जोर
मौजूदा समय में नवोदय विद्यालयों में इस तरह के प्रयोग शुरू भी हुए है। कमेटी जिसका अध्ययन कर रही है। कमेटी की चिंता ये भी है कि यदि स्कूलों ने इस दिशा में ध्यान नहीं दिया तो नौवीं के बाद स्कूलों में बच्चे नहीं दिखेंगे। वे सिर्फ कागजों में ही चलेंगे। वहीं अभिभावकों की काउंसलिंग पर भी जोर देने की योजना बनाई जा रही है। जो बच्चों को डाक्टर और इंजीनियर बनाने के सपने में नौवीं कक्षा से कोचिंग में डाल दे रहे है। इससे बच्चों की न सिर्फ बौद्धिक और व्यक्तित्व विकास प्रभावित हो रही है बल्कि उनमें डिप्रेशन जैसी दिक्कतें भी बढ़ रही है।