वेदांता इंटरनेशनल स्कूल, के बच्चों ने हिंदी साहित्य के पितामह,  कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द  का 142 वॉ जन्मोत्सव मनाया

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अवधनामा संवाददाता

आजमगढ़। वेदांता इंटरनेशनल स्कूल के बच्चों ने हिंदी साहित्य के पितामह कलम के सिपाही और कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद धनपत राय का 142 वा जन्म उत्सव अपने विशिष्ट अंदाज में मनाया स इस अवसर पर प्रिंसिपल  आर एस शर्मा ने प्रेमचंद के जीवन और साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि – प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी शती के साहित्य का मार्गदर्शन किया। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक , सचेत नागरिक , कुशल वक्ता तथा सुधी संपादक थे। आगे उन्होने कहा किधनपत राय उर्फ़ मुंशी प्रेमचन्द जी का जन्म 31 जुलाई 1880 दृ 8 अक्टूबर 1936) । वो हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनमें से अधिकांश हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं। उन्होंने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिन्दी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में लिखा। उन्होंने हिन्दी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। इसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बन्द करना पड़ा। प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई आए और लगभग तीन वर्ष तक रहे। जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे। महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबन्ध, साहित्य का उद्देश्य अन्तिम व्याख्यान, कफन अन्तिम कहानी, गोदान अन्तिम पूर्ण उपन्यास तथा मंगलसूत्र अन्तिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है। उन्होंने कहां की

प्रेमचंद   ने   अपने   जीवन   के   कई   अदभूत   कृतियां   लिखी   हैं।   तब   से   लेकर   आज   तक   हिन्दी   साहित्य   में   ना   ही   उनके   जैसा   कोई   हुआ   है   और   ना   ही   कोई   और   होगा।   अपने   जीवन   के   अंतिम   दिनों   के   एक   वर्ष   को   छोड़कर   उनका   पूरा   समय   वाराणसी   और   लखनऊ   में   गुजरा ,  जहां   उन्होंने   अनेक   पत्र – पत्रिकाओं   का   संपादन   किया   और   अपना   साहित्य – सृजन   करते   रहे।   8  अक्टूबर , 1936  को   जलोदर   रोग   से   उनका   देहावसान   हुआ। पर उनकी कालजायी रचनाएं भारतीय साहित्य को उद्वेलित करती रहेगी। उनकी इस आश को वेदांता इंटरनेशनल स्कूल, आजमगढ़ के बच्चों ने आत्मसात करते हुए बड़ी उत्साह और उमंग से जन्मोत्सव को मनाया। कक्षा आठवीं के विद्यार्थीयों में ज़ैनब फातिमा, अंशिका सिंह, अनुष्का धवल, रीतिका, नैंसी, रोली, उत्कर्ष, अर्पित, स्वरीत् और गोबिंद यादव इत्यादि ने शिरकत की। विद्यालय के प्रबन्धक निदेशक शिव गोविंद सिंह जी ने बच्चों को अपने साहित्यिक पुरोधा के प्रति ऐसी उत्कृष्ठ भावों की रखने उन्हें याद करने का यह नायाब तरीका की भूरि भूरि प्रशंसा की और साधुवाद दिया।

 

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