शोहरतगढ़ सिद्धार्थनगर। विकास क्षेत्र शोहरतगढ़ के अन्तर्गत कम्पोजिट उच्च प्राथमिक विद्यालय लेदवा के छात्र छात्राएं एक दिवसीय शैक्षिक भ्रमण के लिए देवी पाटन मंदिर तुलसीपुर व बौद्ध धर्म के लिए प्रसिद्ध श्रावस्ती जिला के लिए समाजसेवी जितेंन्द्र गोस्वामी व एसएमसी अध्यक्ष दीनदयाल ने हरी झंडी दिखा कर बस को रवाना किया।
ब्लाक संसाधन केन्द्र शोहरतगढ़ क्षेत्र के अंतर्गत कंपोजिट उच्च प्राथमिक विद्यालय लेदवा के सैंकड़ों बच्चों ने शक्तिपीठ देवी पाटन मंदिर तुलसीपुर व श्रावस्ती का बौद्ध धर्म के लिए प्रसिद्ध स्थान का शैक्षिक भ्रमण किया। देवी पाटन मन्दिर तुलसीपुर में स्थित एक बहुत प्रसिद्ध मंदिर है,जो बलरामपुर के जिला मुख्यालय से करीब 25 किमी दूर है । यह मा पाटेश्वरी देवी का मंदिर है और देवी पाटन नाम से प्रसिद्ध है।
यह मंदिर मा दुर्गा के प्रसिद्ध ५१ शक्ति पीठों में से एक है कहा जाता है कि दाहिने कंधे (पैट के रूप में हिंदी में कहा जाता है), माता सती के यहां गिर गया था और इसलिए यह भी शक्ति पीठ् में से एक है और देवी पाटन के रूप में कहा जाता है। यह महान धार्मिक महत्व का एक स्थान है लोग अपने बच्चों के मुंडण समारोह के लिए यहां आते है। इसके लिए यहां बाल दान पवित्र माना जाता है । यह मंदिर तुलसीपुर शहर के पश्चिम में स्थित है । तुलसीपुर बस के जरिए बलरामपुर के जिला मुख्यालय से जुड़ा है और बलरामपुर से 25 किमी की दूरी पर है| भारत के सभी प्रमुख शहरों से बहुत अच्छी तरह जुड़ा है । यदि आप हवाई यात्रा कर रहे हैं, तो राज्य की राजधानी लखनऊ निकटतम हवाई अड्डा है।
बच्चों ने देवीपाटन मंदिर परिसर के शिव मंदिर व आकर्षक सरोवर का भी आनंद उठाया।जिला श्रावस्ती को बौद्ध धर्म के लिए जाना जाता है क्योंकि यहां भगवान बुद्ध ने कई चमत्कार किए थे और यहां से उन्होंने बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार किया था श्रावस्ती को बौद्ध धर्म के लिए पवित्र माना जाता है ऐसा माना जाता है कि भगवान बुद्ध ने यहां अपने जीवन के 25 साल बिताए थे।
यहां भगवान बुद्ध ने नास्तिकों को सही दिशा दिखाने के लिए कई चमत्कार किए थे यहां भगवान बुद्ध ने अपने कई रूपों के दर्शन कराए थे।यहां भगवान बुद्ध ने तीर्थिका विधर्मियों को भ्रमित करने के लिए अपने सबसे बड़े चमत्कार किए थे यहां भगवान बुद्ध ने हज़ार पंखुड़ियों वाले कमल पर बैठकर तथा अपने शरीर से अग्नि और जल उत्सर्जित करके लाखों बार अपने प्रकटीकरण से अविश्वासियों को आश्चर्यचकित कर दिया था।
श्रावस्ती से ही भगवान बुद्ध ने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार शुरू किया था। प्राचीन श्रावस्ती के अवशेष आधुनिक ‘सहेट’-‘महेट’ नामक स्थानों के जेतवान मठ भगवान बुद्ध की प्रेरणा से करुणा व प्रेम की शिक्षा तथा हिंसा का त्याग कर शांति अपनाने वाले अंगुलिमाल नामक कुख्यात डाकू के पक्की कुटी अंगुलिमाल स्तूप को भी देखा। महेत प्राचीन कालीन श्रावस्तीनगर के भवन,महल अवशेष, प्राचीन कालीन अन्य गृह, चौड़े दीवार, आदि को देख सांस्कृतिक, धार्मिक, भौगोलिक, सामाजिक ज्ञान के साथ श्रावस्ती के जीवंत हरियाली व शांतिपूर्ण वातावरण का आनंद उठाकर ख़ुश हुये।इस दौरान अमरेश कुमार,एआरपी मुस्तन शेरुल्लाह,राकेश कुमार राज,पवन कुमार चौरसिया, राकेश कुमार,सरोज श्रीवास्तव,रेनू मद्धेशिया, शशिकुमार, दीनदयाल,सिद्धार्थ,पृथ्वी पाल, नागेंद्र,आशीष श्रीवास्तव आदि शिक्षकों के साथ सैकड़ो छात्र -छात्राएं शामिल रहे।
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