एस. एन. वर्मा
सोनिया गांधी ने रायपुर में हुये कांग्रेस पार्टी के अधिवेशन में एलान किया कि उनकी पार्टी अध्यक्षता की पारी अब समाप्त होती है। फिर पार्टी जनो ने बताया कि वो सक्रिया राजनीति से अलग नहीं हो रही है। वह 1998 से 2017 तक यानी लगातार 19 साल फिर 2019 से 2022 तक यानी 23 साल तक कांग्रेस अध्यक्ष रही। 1984 में प्रधानमंत्री इन्द्ररा गांधी और 1991 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या बाद कांग्रेस पार्टी में जैसे खालीपन आ गया। नेता तो कई थे पर कोई ऐसा नहीं दिख रहा था जो गांधी परिवार की तरह सबको बांध कर रख सकें सबकी निराशा को दूर कर सके। नरसिंहा राव जरूर थे। हालाकि वह सब तरह से योग्य थे पर उनमें माास अपील नही थी। कांग्रेस पार्टी में कमजोरी आ गयी थी। 1991 में पार्टी अपनी पुरानी छवि की वजह से सत्ता प्राप्त करने में सफल रही। नरसिंहा राव प्रधानमंत्री बने मनमोहन वित्त मंत्री बने। मनमोहन सिंह की वजह से आर्थिक सुधारों का महत्वपूर्ण रास्ता अख्तियार कर फ्री टेªड कर दिया गया। पर पार्टी नेतृत्व पार्टी को मजबूत नहीं बना सका और 1995 में केन्द्र में सत्ता गवां बैठी। उसके बाद से पार्टी ढलान पर आ फिसलती गई। गांधी परिवार के सम्मोहन से लोग बाहर आ रहे थे। उस समय राहुल गांधी और प्रियांका गांधी कम उम्र के थे। सोनियां गांधी को लेकर विदेशी मूल का विवाद शुरू हो गया था। कांग्रेस के खिलाफ परिस्थितियां विषम थी। इन तमाम विपरीत परिस्थितियों के बीच पार्टी को फिर गांधी परिवार पर ही ध्यान केन्द्रित करना पड़ा। सोनियां गांधी पर ही पार्टीजनों का विश्वास जमा क्योंकि पार्टी के लोग भी गांधी परिवार के बिना उन्हें अपना आस्तित्व खतरे में दिख रहा था। इस हताशा भरे हाल में सोनिया गांधी के हाथों में अपने को सौपते हुये उन्हें पार्टी की अध्यक्षा बना दिया। सोनिया ने अपनी सूझबूझ से पार्टी का विश्वास जीत लिया जो पार्टी में उनके विरोधी थे वे भी उनके पीछे हो गये। विपक्ष के लोगों में भी अपनी ग्रहणशीलता बढ़ाई और सहयोगी दलों की गठबन्धन बनाया फिर अपने भाषणों और क्रिया कलापों से मतदाताओं में भी अपने अच्छी पैठ बनाई और कांग्रेस को केन्द्र की कुर्सी पर बैठा दिया।
2004 का चुनाव जीतने के बाद चूकि सोनिया के विदेशी मूल को लेकर पार्टी में कुछ मुखालफत थी इसलिये सोनिया ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनवाया। कहते है सारी फाइले पहले वह देखती फिर मनमोहन सिंह के पास जाती थीं। उसके बाद 2009 के चुनाव में मनमोहन सिंह को ही प्रधानमंत्री बनाने का वादा करते हुये कांग्रेस को सम्मानजनक जीत दिलवायी। इन सबसे लगता है कि सोनियां की सूझबूझ परिपक्वता में कोई कमी नहीं है। बड़े से बड़े पद के लिये हर तरह से योग्य है।
पार्टी एक व्यक्ति के प्रति इतनी केन्द्रित हो गई कि चाटुकारिता की संस्कृति पनपने लगी। नेता अपने अपने अस्तित्व को लेकर चिन्तित थे। येनकेन प्रकरण वे लाइम लाइट में बने रहना चाहते थे। जो कुछ अस्मिता वाले थे वे खामोश थे। नतीजा यह हुआ कि 2014 का चुनाव यद्यपि सोनियां के नेतृत्व में ही लड़ा गया पर कांग्रेस को बड़ी हार मिली। इसके बाद तो पार्टी चुनाव दर चुनाव कुछ अपवादों को छोड़ कर नीचे ही खिसकती गई। यह खिसकना आज भी जारी है।
सोनिया ने पार्टी अध्यक्षता यह कर छोड़ी कि वह ऐसे समय में अध्यक्षता से सन्यास ले रही है जब पार्टी की भारत जोड़ो यात्रा समाप्त हुई है। उनकी नजर में भारत जोड़ो से मिली उपलब्धियों सियात में टर्निंग प्वाइन्ट होगा।
कांग्रेसजनों ने भारत जोड़ो यात्रा से बहुत बढ़चढ़ कर उम्मीदें लगा रक्खी है। सोनियां जी भी उसी उम्मीद को दोहरा रही है कांग्रेसजन कहते है कि भारत जोड़ो यात्रा से राहुल गांधी के व्यक्त्वि में निखार आया है, उनकी ग्राहयता बढ़ी है, वह मोदी को टक्कर देने के काबिल हो कर उभरे है। हम देख रहे है मोदी जी की भारत में ग्रहयता है उसी के बल पर चुनाव दर चुनाव जीत रहे है। इसके अलावा उनकी अन्तरराष्ट्रीय ग्राहयता दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। और मोदी जी को किस हद तक टक्कर दे सकेंगे राहुल जी बहरहाल सोनिया जी अपनी कार्यकुशलता और कांग्रेस को उबारने के लिये हमेशा याद की जायेगी। शुभकामनायें।