नई दिल्ली। कांग्रेस और राहुल गांधी भले ही पूरे देश में जाति जनगणना को अपनी प्राथमिकता बता रहे हों, लेकिन कर्नाटक में कराई गई जाति जनगणना खुद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के गले की फांस बन गया है। एक तरफ उनके ऊपर 2015 में कराई गई जाति जनगणना की रिपोर्ट जारी करने का दबाव है, तो खुद उनके मंत्री इसके खिलाफ खुलकर सामने आ गए हैं।
उपमुख्यमंत्री डी शिवकुमार और कुछ दूसरे मंत्री भी इससे न सिर्फ असहमत हैं बल्कि सार्वजनिक बयान में आपत्ति जता रहे हैं। रिपोर्ट पर कांग्रेस के भीतर कलह ने भाजपा को हमलावर होने का मौका दे दिया है। केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने सिद्धारमैया पर तीखा कटाक्ष करते हुए रिपोर्ट जारी करने हो रही देरी पर सवाल उठाया है। तो राज्यसभा सदस्य लहर सिंह ने कहा कि राहुल गांधी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकाज्रुन खरगे अगर अपने बयान को लेकर गंभीर हैं तो उन नेताओं को निष्कासित करने का साहस दिखाना चाहिए।
दरअसल सिद्धारमैया की पिछली सरकार ने ही 170 करोड़ रुपए खर्च पर 2015 में कर्नाटक में आर्थिक-सामाजिक सर्वे कराया था, जिसे जाति जनगणना कहा जाता था। 2018 में इसकी रिपोर्ट बनकर तैयार है, लेकिन इसे जारी नहीं किया गया। मंगलवार को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि उनकी सरकार रिपोर्ट को जारी करने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन इसके खिलाफ दिये गए ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर डी शिवकुमार ने साफ कर दिया कि इसको लेकर सरकार के भीतर ही तीखा मतभेद है। वोकालिग्गा संघ की ओर दिये गए ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने वाले डी शिवकुमार के अलावा कांग्रेस के कई मंत्री और विधायक शामिल हैं।
डी शिवकुमार खुद वोकालिग्गा समुदाय से आते हैं, जो इस रिपोर्ट का विरोध कर रहा है। बात सिर्फ वोकालिग्गा समुदाय की ही नहीं है, कर्नाटक की राजनीति में सबसे प्रभावी माना जाने वाला लिंगायत समुदाय भी इसके खिलाफ खुलकर सामने आ गया है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने लिंगायत समुदाय को साधने की भरसक कोशिश की थी और इसमें उसे कुछ सफलता भी मिली थी।
वहीं डी शिवकुमार वोकालिग्गा समुदाय में भी कांग्रेस की पैठ बढ़ाने में सफल रहे थे। लेकिन वोकालिग्गा और लिंगायत दोनों प्रभावी समुदायों के विरोध के बाद सिद्धारमैया और खासकर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ गई हैं। दरअसल अगल आबादी का हिसाब से हिस्सेदारी की बात आएगी तो वोकालिग्गा चौथे नंबर पर आ जाएगा। प्रह्लाद जोशी ने सिद्धारमैया पर हमला करते हुए कहा कि नाटकबाजी और गांरटी के सहारे जनता को लंबे समय तक गुमराह नहीं किया जा सकता है। उन्होंने एक्स पर लिखे पोस्ट में कहा कि रिपोर्ट के अहम हिस्से पहले ही गायब कर दिये गए हैं और यह जिस उद्देश्य के लिए किया गया है, उसे कहीं से भी पूरी नहीं करता है।