काफ़ी लंबे इंतजार के बाद आईडीबीआई (IDBI) बैंक पर से रिजर्व बैंक ने प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (Prompt corrective action) यानी त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई से जुड़ी बंदिशें (Restrictions) हटा दी हैं।
रिजर्व बैंक (Reserve Bank) के बोर्ड फॉर फाइनेंशियल सुपरविजन (Board for Financial Supervision) के मुताबिक, आईडीबीआई (IDBI) की पूंजी की स्थिति, नेट NPA और लेवरेज रेश्यो (Levrage Rasio) में सुधार हुआ है और आईडीबीआई (IDBI) रिजर्व बैंक के पैमाने पर खरा उतरता है।
एलआईसी LIC का % हिस्सा खरीदने के बाद आईडीबीआई (IDBI) बैंक में तिमाही-दर-तिमाही लगातार सुधार हो रहा था और तीसरी तिमाही में बैंक ने अच्छे नतीजे पेश किए।
(Reserve Bank) रिजर्व बैंक ने मई 2017 में बैंक पर कर्ज बांटने समेत कई बंदिशें लगाई थीं। इसके तहत आईडीबीआई (IDBI) बैंक की नए ब्रांच खोलने (Open) और डिविडेंड जारी करने पर रोक लगा दी गई थी। बैंक के कामकाज को सुधारने के लिए यह पहल की गई थी। पीएसी (PAC) की कार्रवाई के बाद बैंक को प्रोविजनिंग (Provisioning) ज्यादा करना होता है। हालांकि, आरबीआई (RBI) के फैसले का बैंक (Bank) के कामकाज पर असर नहीं होता है।
अब PCA से बाहर आने के बाद आईडीबीआई (IDBI) बैंक बाकी बैंकों की तरह सभी कार्य सामान्य तरीके से कर पाएगा।
(LIC) एलआईसी ने खरीदी हिस्सेदारी
जून, 2018 में भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) को कर्ज के बोझ से दबे आईडीबीआई (IDBI) बैंक की 51 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने की अनुमति मिली थी। एलआईसी (LIC) ने 28 दिसंबर, 2018 को आईडीबीआई (IDBI) बैंक में 14,500 करोड़ रुपये डाले थे। उसके बाद 21 जनवरी, 2019 को LIC ने बैंक में 5,030 करोड़ रुपये और डाले थे।
सुधारात्मक कार्रवाई (Prompt Corrective Action-PCA)
त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (PCA) एक ऐसा सिस्टम (System) है जिसके तहत कमजोर वित्तीय तंत्र (Weak financial system) वाले बैंकों को आरबीआई (RBI) की निगरानी में रखा जाता है। आरबीआई (RBI) ने 2002 में PCA फ्रेमवर्क (Framework) को उन बैंकों के लिए तैयार किया था जो परिसंपत्ति की खराब क्वालिटी (Quality) या प्रॉफिट (Profit) के नुकसान के कारण खराब स्थिति में पहुंच चुके थे।
इसके तहत रिजर्व बैंक (Reserve Bank) कमजोर और संकटग्रस्त बैंकों पर आकलन, निगरानी, कंट्रोल और सुधारात्मक कार्रवाई के लिए कुछ बिंदु तय करता है। इस दौरान बैंक (Bank) के लोन देने पर भी कई शर्तें लगाई जाती हैं। बैंक को डिविडेंड पेमेंट (Devident Payment) रोकना पड़ता है और वह कोई नई ब्रांच नहीं खोल सकता है।