भूपिन्दर और कुछ यादें

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एस.एन.वर्मा
मो.7084669136

 

श्रद्धान्जली
82 के उम्र पर तुम्हें अलविदा कहते जबान लड़खड़ा रही है। तुम जैसे खुशदिल और जीवन्त इन्सान को कोविड ने जकड़ा फिर कर्डियाक ने मारा। तुम्हारी भावपूर्णा बडी बड़ी आंखे जो अपने में खोयी रहती थी और सुदर्शन व्यक्तित्व को देख मशहूर फिल्म निर्माता निर्देशक चेतानन्द तुम्हे एक्टर बनाने की भरपूर कोशिश की पर संगीत के आगोश ने तुम्हें निकलने नहीं दिया। हर बार पेशकश ठुकराते रहे। तुम ऐक्टर बन जाते तो अपने भावपूर्ण अभिनय से भी लोगो को इसी तरह प्रभावित करते रहते, दुखीजनो को सकून देते रहते जिस तरह तुम्हारे गाने और खासकर गज़ले जो लोगों को मरहम लगाती है सकून देती है।
भूमिन्दर अमृतसर से आये थे। संगीतकार की हैसियत से अपना कैरियर दिल्ली के आल इन्डिया रेडियो स्टेशन से शुरू किया। वह ग़ज़लो में ड्रम बास और गिटार इस्तेमाल करने के लिये मशहूर हुये। संगीतकार मदन मोहन उन्हें मुम्बई ले आये जहां मदन मोहन ने फिल्म हक़ीकत में उनसे पहली बार कई सिंगर के साथ बारी-बारी से गवाया। गाना था हो के मज़बूर मुझे उसने भुलाया होगा। उसमें तलत मोहम्मद मुकेश आदि सभी गा रहे थे जो उस समय हिट बैक सिंगर थे। इस लिये इस गाने से भूपिन्दर की पहचान नही बन पाई हालांकि कैफ़ी आज़मी द्वारा लिखा गया गाना बहुत ही भावपूर्ण और दिलकश है।
भूपिन्दर की पहचान 1970 के दशक में बनी। इससे पहले मोहम्मद रफी, तलत महमूद, मुकेश किशोर कुमार छाये हुये थे। इन सभी की पैदाइश 1920 के समय की है। पर उस समय भी जब ग़ज़ल गानें की बात होती थे। तो संगीत निर्देशक भूपिन्दर को ढूढते थे। भूपिन्दर, सुरेश वाडेकर, येसूदास, जगजीत सिंह ने रफी, मुकेश किशोर के बाद के पीढी की नुमाइन्दगी की। इस समय संगीत बैकसीट पर खिसक गई। एन्ग्री यंगमैन का जमाना आया जिसमें डायलाग और स्टन्ट के जरिये पर्दे पर नौजवानो का आक्रोश दिखाया जाने लगा था। फिल्मो में बहुत कम गाने होते थे।
भूपिन्दर की स्टाईल उस समय के समर्थ भावपूर्णा वाले अभिनेताओं जिसे तथा कथित आर्ट फिल्म भी कहा जाता था को सूट करती थी। जिसमें संजीव कुमार, फारूख शेख, अमोल पालेकर, नसीरूद्दीन शाह जैसे कलाकार आते थे। संगीतकारो में रवैयाम, जैदेव, आर डी वर्मन मदन मोहन के संगीत निर्देशन में कई हिट गाने गाये जो आज भी उतने ही चाव से सुने जाते है। कुछ उदाहरण इस तरह है। फिल्म मौसम का गाना दिल ढूढता है एक अकेला इस शहर में, (घरौदा) करोगे याद (बाजार) किसी नज़र को (एतबार), बीते न बिताये रैना (परिचय)। उनकी मांग बाघयन्त्रों को बजाने के लिये भी बहुत थी। गिटार बहुत आकर्षक ढंग से बजाते थे। गज़लो में भी गिटार का प्रयोग किया करते थे। उनके द्वारा बाजाये गये गिटार की आवाज फिल्म हरें कृष्णा हरे रामा के दममारो दम गाने में है, फिल्म यादो की बारत का गाना चुरालिया है दिल मेरा के गाने में है, फिल्म अमर प्रेम के चिनगारी कोई भड़क गाने में है।
1980 में भूपिन्दर पत्नी मिताली के साथ गज़ल गाने लगे। उन्होंने दूरदर्शन में मांग लेकर भी लोगो को लुुभाया। उनके कुछ एलबम भी है आरजू गुलमोहर गज़ल के फूल जिसमें मिताली भी है। अब परिवार में पत्नी और एक पुत्र रह गये है।
आशा भोसले उनको याद करते हुये कहती है बहुत बुरा लग रहा है सुनके वह नही रहा। एक फिल्म जया मादुरी की थी जिसमें हमने भूपिन्दर के साथ गाया है। उसके गाने की स्टाइल अलग थी। वह गानो को गज़ल की स्टाईल में गाता था। मैं उसे हमेशा बताती थी मुप्पी तू मुह खोल के गा। गज़ल मापक की तरह मत गा। मुह खोलकर वह कहता था हां जी मास्टरनी जी सिखा अब मुझे।
वह गजब का गिटार बजाता था फिर छोड़ दिया कहता था मै सिर्फ गायक रहना चाहता हॅू। पंचम के बनाये गाने हमने साथ गाये है। बप्पी लहरी के भी कुछ गाने हमने साथ गाये है। बहुत अच्छा दौर था गुलजार का लिखा गीत जिसे पंचम ने कम्पोज किया था जब अंधेरा होता था फिल्म थी राजरानी हम दोनो ने बड़ी शिद्दत से गाया था नौजवान पीढी उन गानो को नही सुनी होगी। जब हम म्यूजिक शो करते थे तो इन्ही सब गानो की बाराबर फरमाइश होती रहती थी। पंचमे और बप्पी बहुत गहरे दोस्त थे।
भूपिन्दर का ही गाना है करोगे याद तो हरबात याद आयेगी सचमुच हर बात याद आ रही है। विनम्र श्रद्धान्जली।

 

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