अवधनामा संवाददाता
स्वतंत्र भारत में समानता, भाईचारा और सामाजिक न्याय दिलाने में डॉ अम्बेडकर का महत्वपूर्ण योगदान
ललितपुर। बाबा साहब डा.अम्बेडकर की जयंती पर आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो.भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि 13 दिसम्बर 1946 को संविधान सभा के समक्ष एक सर्वसम्मत उद्देश्य प्रस्ताव प्रथम प्रधानमंत्री पं नेहरु ने प्रस्तुत करते हुए कहा था, यह प्रस्ताव संकल्प से कुछ अधिक है, यह एक घोषणा है और घोषणा से अधिक एक संकल्प है, एक दृढ़निश्चय है, एक वचन है और हम सभी के लिए एक समर्पण है। वस्तुत: यही उद्देश्य प्रस्ताव अँधेरे में प्रकाशित होने वाला ध्रुवतारा बना जो संविधान निर्माण की प्रारूप समिति के अध्यक्ष तथा स्वतंत्र भारत में समानता, भाईचारा तथा सामाजिक न्याय दिलाने के अनथके योद्धा की कलम से प्रस्फुटित ऐसे आदर्श संविधान के रूप में प्रकट हुआ जो कोरोना की वैश्विक महामारी के जनता द्वारा संगठित केन्द्र और राज्य सरकारों के अपेक्षित तालमेल की अग्निपरीक्षा के समान कसौटी पर पूर्व संकटों के निदान की तरह सफल सिद्ध हो रहा है। हमारे श्रृषियों और मुनियों ने वैदिक युग से ही जीवन को उद्देश्यपूर्ण बनाने के लिए कहा था सब निरोगी हो, सब स्वस्थ हो और सबका कल्याण हो। इसी सात्विक भावना को बाद्धकारी बनाने के लिए हमारा संविधान कानून का शासन और कानून के आगे सबको समानता का अवसर देता है। भारतरत्न बाबासाहब अम्बेडकर ने आगाह किया था कि संविधान कितना ही अच्छा हो, यदि उसको व्यवहार में लाने वाले उत्तरदायी सदस्य अच्छे न हो तो विधान निश्चय ही बुरा साबित होगा। वर्तमान आसन्न सभी समस्याओं का निदान प्रत्येक मनुष्य के मनुष्यत्व की अग्निपरीक्षा है कि वह सामूहिक प्रयास करते हुए संविधान द्वारा प्रदत्त संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करे। साथ ही साथ हमारे जो असंख्य साथी श्रमजीवी हैं उनकी पहले से भी डबडबायी हुई आँखों के आँसुओं को किसी भी तरह से और अधिक न बढऩे दे, इस प्रसंग में चारों ओर से जब सकारात्मक खबरें मिलती हैं कि रोज कुआ खोद कर पानी पीने वाले दिहाड़ी मजदूरों और कच्ची नौकरियों वालों को दिये गए रोजगार के संवैधानिक अवसरों पर आँच न आने देने हेतु जन-जन की नैतिक शक्ति के उभार और विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया की खबरपालिका सभी मोर्चों पर सक्रिय है, का सुखद अनुभव होता है कि समय रहते इस चुनौतीपूर्ण समस्या का समाधान होकर रहेगा। लगभग सम्पूर्ण भारत में स्थापित डॉ अम्बेडकर की स्टैचू के दाहिने हाथ की तनी हुई तर्जनी को देखते हुए महात्मा तुलसीदास महाराज की पंक्तियां याद आती हैं यहाँ कुमड़ बतियां (नवजात कद्दू का फल/जउआ) कोउ नाहि, जे तर्जनी देखत मुरझायीं जागृत और संगठित जनता जनार्दन को कमतर न समझें और संत कबीर की अमरवाणी को हम सभी कंठ में ही संचित न करते हुए, आचरण में उतारने के लिए तत्पर रहें दुर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय, मरी खाल की साँस सों, सार (स्टील) भसम हो जाय।