अवधनामा संवाददाता
मिल्कीपुर- अयोध्या।भारत के प्राचीन फलों में बेल का प्रमुख स्थान है भारतीय धर्म ग्रंथों में इसे भगवान शिव के वृक्ष के रूप में वर्णित किया गया है बेल की जड़ छाल पत्ते और फल औषधि रूप मैं भी उपयोगी है इसमें पाया जाने वाला मारमेलोसिन नामक पदार्थ उदर रोगों में बहुत ही लाभदायक है।
कृषि विश्वविद्यालय कुमारगंज के विकसित हो चुके नरेंद्र बेल-4, नरेंद्र बेल-5, नरेंद्र बेल-7, नरेंद्र बेल-9, नरेंद्र बेल 16 व 17 की जहां पूरे देश में डंका बज रहा है। वहीं कृषि वैज्ञानिकों ने तीन और प्रजाति को विकसित कर दिया है किसान बेल की खेती कर अब मालामाल हो सकते हैं।
अखिल भारतीय समन्वित सोच क्षेत्रीय फल परियोजना द्वारा आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज के उद्यान एवं वानिकी महाविद्यालय के डॉक्टर संजय पाठक, डॉ हेमंत कुमार सिंह, डॉक्टर भानु प्रताप एवं नंदलाल शर्मा ने वर्ष 2020-21 नरेंद्र बेल 10, व वर्ष 2021-22 नरेंद्र बेल- 8 , नरेंद्र बेल- 11 को विकसित किया है किसान जुलाई से पौध आसानी से उद्यान एवं वानिकी प्रक्षेत्र से ले सकते हैं।उद्यान एवं वानिकी महाविद्यालय के वैज्ञानिक हेमंत कुमार सिहं ने बताया कि नरेंद्र बेल रोपित करते समय किसान पेड़ से पेड़ की दूरी 8×8 मीटर व लाइन से लाइन की दूरी 8×8 मीटर यदि रखेंगे तो 3 से 4 साल के अंतराल पर फल देना शुरू कर देते हैं जब यह पेड़ 10 से 11 वर्ष पुराने हो जाते हैं तो 150- 200 फल लगते हैं जिनका वजन 100 से 150 किलोग्राम तक होता है।
किसान 1 हेक्टेयर क्षेत्र से लगभग 140 से 200 क्विंटल उपज आसानी से ले सकते हैं। बागवानी के किसान फलों का विक्रय कर लगभग 1-1.5 लाख तक की शुद्ध आय प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष प्राप्त कर सकते हैं।डॉ हेमंत कुमार सिंह ने बताया कि बेल में 100 ग्राम खाद्यांश से61.5 ग्राम नमी ,प्रोटीन 1.8 ग्राम, वसा 0.3 ग्राम, रेशा2.9 ग्राम, कार्बोहाइड्रेटस 31.8ग्राम, कैल्शियम पचासी मिलीग्राम, फास्फोरस 50 मिलीग्राम, लोहा 0.6 मिलीग्राम, निकोटिनिक अम्ल 1.10 मिलीग्राम तथा विटामिन सी 8 मिलीग्राम प्राप्त होते हैं। बेल का सेवन करने से 137 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है।
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