मनरेगा कार्यशैली से ना बीडीओ , एक सप्ताह मे सकारात्मक परीणाम देने का दावा।

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अवधनामा संवाददाता

मौदहा हमीरपुर। मौदहा विकासखंड की 63 ग्राम पंचायतों मे कल 43 के सापेक्ष मात्र 42 ग्रामीण पंचायतो में 6048 मजदूरों को रोजगार देकर एक बार फिर मौदहा विकासखंड को प्रदेश के मुखिया से सम्मान दिलाने के लिए कठोर परिश्रम करती कागजों में दिखाई दे रही हैं। हालाकि कल के मुकाबले आज 1 ग्रामीण सरकार ने भले ही मनरेगा योजना का लाभ त्यागकर पलायन रोकने मे अपना योगदान बन्द कर दिया हो किन्तु 42 ग्राम पंचायतों ने कल के मुकाबले आज 5972 मनरेगा मजदूरों के सापेक्ष 6048 मजदूरों को काम देकर खण्ड विकास अधिकारी के भ्रमण का बेहतरीन स्वागत किया है, हालाकि खण्ड विकास अधिकारी नम्बर वन पर बने ग्राम भवानी के बजाय फिलहाल सिर्फ चैथे स्थान पर काबिज ग्राम हिमौली आदि की व्यवस्थाये देख सके है। मामला विकास खण्ड मौदहा की ग्राम पंचायतों का है।

विकास खण्ड मौदहा के 63 ग्राम पंचायतों के सापेक्ष जहां 42 ग्राम पंचायतों ने कल के मुकाबले आज 76 मनरेगा मजदूरों को अधिक काम देकर कुल 6048 मजदूरो को काम पर लगा रखा है, ऐसा कागज बोल रहे है। जिसमे टाप 5 मे ग्राम भवानी लगातार 521 मजदूरों को काम देकर कब्जा जमाये है। जबकि ब्लाक प्रमुख का पैतृक गांव छिमौली 461 मजदूरो को काम देकर दूसरे पायदान मे मौजूद है । इसी क्रम मे छोटी सी ग्राम पंचायत रतौली भी 445 मजदूरो को काम देकर तीसरा स्थान छोडने को तैयार नहीं । जबकि ग्राम पंचायत हिमौली भी दमदारी से चैथे स्थान पर काबिज रहकर पलायन रोकने में अहम भूमिका निभा रही है। तो भले ही आबादी मे कम हो किन्तु ग्राम लरौद भी मनरेगा योजना से लाभ पहुंचाने मे किसी से कम नही और 336 मजदूरो को काम पर लगाकर पांचवे नम्बर पर आज भी काबिज है। जंबकि ग्राम करहिया, नरायच, छिरका व पढोरी सहित तमाम ग्राम पंचायतें भी पलायन रोकने में अपना अहम योगदान देते हुये मजदूरो को अच्छे दिनो का एहसास करा रही है, कम से कम कागज तो यही बोल रहे है। हालाकि उक्त विषय पर खण्ड विकास अधिकारी ने बेहद ईमानदारी से कुछ कमियो को स्वीकारते हुये कहा कि उनके द्वारा उठाये गये सार्थक कदम का परिणाम एक सप्ताह के अन्दर दिखाई देगा । अब कमियां कहां-कहां और क्या हैं यह समझना हमारे जैसो के लिये थोडा कठिन है।
हालाकि आरोपों की माने तो मनरेगा योजना का दुरूपयोग कर मजदूरों के बजाय जेसीबी से काम कराना ग्राम पंचायतों के लिये कोई नई बात नहीं है। लम्बे समय से ग्रामीण आरोप लगाते आ रहे हैं कि उनके गांव मे रातों को जेसीबी चलाकर मेडबन्दी खुदाई आदि के काम मनरेगा योजना से कराये जाते है और कहीं कहीं तो बिना किसी काम के भी मनरेगा निधि से काम कराके कागजो मे दर्ज कर भुगतान मनरेगा मजदूरों के खाते मे किये जाते हैं और बाद मे उन्हे बिना काम के ही 20 से 30 प्रतिशत सुविधा शुल्क देकर शेष राशि उनसे वसूल कर ली जाती है। जिससे मजदूर भी खुश और ग्रामीण सरकारों के जिम्मेदार भी खुश , किन्तु वास्तविक मजदूर काम के अभाव मे पलायन को मजबूर है, ऐसा सिर्फ ग्रामीणों के आरोपो तक ही सीमित हो सकता है।
यदि जांच की बात करें तो विकासखण्ड मौदहा के गांव भवानी मे लगातार 521 मजदूरों को मनरेगा योजना से काम देकर पलायन रोकने का प्रयास किया जा रहा है। 521 मजदूर 6 साईटों मे काम कर रहे हैं जिनमे 4 साइट सिर्फ क्षेत्रपंचायत से संचालित है जिससे खण्ड विकास अधिकारी सन्तुष्ट नहीं दिखे और भ्रमण प्रगति पर होने की बात कही है। फिलहाल उन्होने हिमौली आदि ग्रामो का निरीक्षण किया यहां के कामो से भी वह सन्तुष्ट नहीं दिखे। जिसके चलते उन्होने एक सप्ताह मे व्यवस्था सुधारने का दावा किया है। अब व्यवस्था कितनी सुधरती है यह तो भविष्य के गर्भ मे है किन्तु प्रश्न यह भी है कि इस मंहगाई के दौर मे जब मिनीमिम आम मजदूरी 400रू के लगभग है तब ऐसे मे मनरेगा योजना मे काम करने वाले मजदूर मात्र 236रूपये के एवज मे मजदूरी कर अपने परिवार को कैसे दो वक्त कमी रोटी का इन्तजाम करेंगे।
मनरेगा योजना की 236 रूपये मजदूरी देने वाली योजना सवालों के घेरे मे रहकर ग्राम पंचायतों को भ्रष्टाचार करने पर संजीवनी देने का काम कर रही है। ऐसा बुद्वजीवियों का मत है।

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