विशेष खबर (पुनः प्रेषित)– पुरुषोत्तम गुप्ता ने लड़ी कानूनी जंग, मिला ऐतिहासिक फैसला

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मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश सुश्रुत धर्माधिकारी एवं मान. न्यायाधीश गजेन्द्र सिंह ने 24 जुलाई को एक ऐतिहासिक मामले में महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया। एक सेवानिृत सरकारी कर्मचारी पुरूषोत्तम गुप्ता की याचिका पर केंद्रीय कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में भाग लेने पर लगे प्रतिबंध को न्यायालय ने गैरजरूरी मानते हुए निरस्त कर दिया। वस्तुतः केंद्र की मोदी सरकार ने 9 जुलाई, 2024 को जारी एक निर्देश में उन प्रतिबंधित नामों की सूची में से रा.स्व.संघ का नाम बाहर कर दिया, जिनकी गतिविधि में किसी भी शासकीय कर्मचारी को सेवानिवृत्त होने के बाद भी जाने पर रोक लगाई गई है । हालांकि यह प्रतिबंध राज्य स्तर पर कई राज्यों के कर्मचारियों पर लागू नहीं है, किंतु केंद्रीय सेवा के प्रत्येक कर्मचारी के लिए यह जरूरी था कि वह अपने आप को संघ की हर गतिविधि से दूर रखेंगे । इस कारण से या राजनीतिक कारण से शिकायत मिलने पर केंद्रीय सेवा में रहे कर्मचारी की पेंशन रोक देने के साथ उस पर अन्य कानूनी कार्रवाई का खतरा हमेशा मंडराता रहता था।

न्यायालय ने माना- केवल राजनीतिक कारणों से किया प्रतिबंधित

इस याचिका का निस्तारण केन्द्र सरकार के नए हलफनामे के बाद हुआ, लेकिन निर्णय में माननीय न्यायाधीशों ने जो टिप्पणी की है, वह बहुत गंभीर, ऐतिहासिक महत्व की और भविष्य के लिए एक संदर्भ होंगी। न्यायालय ने अपनी ओर से टिप्पणी करते हुए कहा है कि आरएसएस को किस सर्वेक्षण या अध्ययन के आधार पर सांप्रदायिक और धर्मनिरपेक्षता विरोधी घोषित किया गया था? किस आधार पर सरकार इस नतीजे पर पहुंची थी कि सरकार के किसी कर्मचारी के, सेवानिवृत्ति के पश्चात भी, संघ परिवार की किसी गतिविधि में भाग लेने से समाज में सांप्रदायिकता का संदेश जाएगा? न्यायालय के बार-बार पूछे जाने के बावजूद, इन प्रश्नों के कोई उत्तर प्राप्त नहीं हो सके। ऐसी दशा में न्यायालय यह मानने के लिए बाध्य है कि ऐसा कोई सर्वेक्षण, अध्ययन, सामग्री या विवरण है ही नहीं जिसके आधार पर केंद्र सरकार यह दावा कर सके कि उसके कर्मचारियों के आरएसएस. जो कि एक अराजनीतिक संगठन है कि गतिविधियों से जुड़ने पर प्रतिबंध आवश्यक है। जिससे कि देश का धर्मनिरपेक्ष तानाबाना और सांप्रदायिक सौहार्द अक्षुण्ण बना रहे। इस मामले की सुनवाई के दौरान अलग-अलग तारीखों पर हमने पांच बार यह पूछा कि किस आधार पर केंद्र के लाखों कर्मचारियों को पाँच दशकों तक अपनी स्वतंत्रता से वंचित रखा गया था?

इसके साथ ही यहां कोर्ट ने यह भी माना है कि यदि याचिकाकर्ता (पुरूषोत्तम गुप्ता) ‌द्वारा यह याचिका प्रस्तुत नहीं की जाती, तो ये प्रतिबंध आगे भी जारी रहते जो कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1) का खुला अपमान होता। उपरोक्त आधारों पर न्यायालय के सामने यह भी प्रश्न है कि क्या केंद्र सरकार के कर्मचारियों पर आरएसएस में प्रवेश पर प्रतिबंध किसी ठोस आधार पर लगाया गया था या सिर्फ एक संगठन, जो कि तत्कालीन सरकार की विचारधारा से सहमत नहीं था को कुचलने के लगाया गया था?

पुरूषोत्तम गुप्ता ने उठाया कदम

यही बात दो पीढ़ियों के स्वयंसेवक पुरुषोत्तम गुप्ता को अखर रही थी। उन्हें हमेशा लगता रहा, आखिर राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत, समाजिक सेवा कार्य में डूबा हुआ और भारत भक्ति में लगा रा.स्व.संघ कैसे किसी राजनीति का शिकार बनाया जा सकता है? उस पर कोई भी सरकार प्रतिबंध क्यों लगा होना चाहिए?

जब पुरुषोत्तम गुप्ता अपनी पढ़ाई पूरी करने के साथ केंद्रीय सेवा में आए तो उनके परिवारजनों एवं मित्र मण्डली ने हमेशा उन्हें संघ कार्य करने से यह कहकर रोका कि यदि किसी ने शिकायत कर दी तो नौकरी चली जाएगी, बाल-बच्चों का भरण-पोषण मुश्किल में आ जाएगा, आगे पेंशन भी नहीं मिलेगी, इसलिए संघ कार्य से दूर रहें। लेकिन जैसे ही पुरुषोत्तम गुप्ता नौकरी से रिटायर्ड हुए, उन्होंने स्वयंसेवकों को न्याय दिलाने और केंद्र की प्रतिबंधित संगठन सूची में से रा.स्व.संघ का नाम हटाने के लिए न्यायालय की शरण लेने में जरा भी समय नहीं गंवाया। अब उनके इस प्रयास का उसका सुखद परिणाम सामने देखने में आ गया है।

हिन्दुस्थान समाचार के डॉ. मयंक चतुर्वेदी ने पुरूषोत्तम गुप्ता ने संघ और अपनी विचारधारा के लिए लड़े गए इस न्यायिक युद्ध की पृष्ठभूमि और संघर्ष पर विस्तार से बात की। पुरूषोत्तम गुप्ता ने बताया कि वे केंद्रीय भंडारण निगम (सीडब्ल्यूसी) में दिसम्बर 1982 में शासकीय सेवा में आए और जून 2022 तक सेंट्रल वेयर हाउसिंग कॉर्पोरेशन की सेवा में रहे । उन्होंने बताया कि वे वे मध्य प्रदेश में जीरापुर (राजगढ़) में जहां उनका जन्म हुआ, वहां वे बचपन में संघ की शाखा जाया करते थे। शाखा में जो सिखाया जाता, जिस प्रकार की शिक्षा दी जा रही थी, उससे उनके अपने जीवन में देश के लिए सर्वस्व समर्पण कर देने का भाव जागृत हुआ। पिताजी शिक्षक थे और इसलिए परिवार में जन्म से ही अध्ययन और ज्ञान का माहौल मिला, किंतु शाखा लगाने में जो सुख और मित्रों के साथ राष्ट्रीय विषयों पर चर्चा करने एवं जरूरतमंद की सहायता करते रहने की जो आदत बनी उसने नौकरी में रहते हुए भी हमेशा संवेदनशील बनाए रखा। पुरूषोत्तम गुप्ता कहते हैं- ‘‘जब सरकारी सेवा में आए तो कहा गया कि आपको राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से दूर रहना है, यह बात मुझे कभी हजम नहीं हुई । मैं हर बार सोचता था आखिर ऐसा क्या है जो लोग रा.स्व.संघ के पीछे पड़े हुए हैं जबकि यहां तो सब कुछ सार्वजनिक है। प्रार्थना भारत माता की होती है, समर्पण किसके लिए तो अपने देश और भारतीय समाज के लिए, फिर भी नौकरी में आते ही मुझे बताया गया कि आप शाखा न जाएं। खैर, वक्त गुजरता रहा और मैं सेवानिवृत हो गया, लेकिन मन में यही सवाल कौंध रहा था कि आखिर संघ में जाने से क्यों सरकारी कर्मचारियों को रोका जा रहा है बल्कि इस हद तक प्रताड़ित किया जाता है कि यदि सेवानिवृत्ति के बाद भी कोई संघ की गतिविधि में शामिल होता हुआ पाया जाता है तो उसकी पेंशन तक को रोक दी जाए। इसलिए मैंने एडवोकेट मनीष नायर से बात की और उन्होंने आश्वासन दिया कि वह हर तरह से मदद करेंगे।’’

यह मौलिक अधिकारों के हनन का मामला

पुरुषोत्तम गुप्ता कहते हैं, ‘‘केंद्र सरकार का संघ से मुझे दूर रखना मेरे मौलिक अधिकारों का हनन था । मैंने संघ पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ न्यायालय की शरण ली। यह एक भारतीय नागरिक होने के नाते मेरे मौलिक अधिकार का हनन था, जो मुझे सेवानिवृति के बाद भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़कर सामाजिक जीवन में सेवा कार्य करने से रोक रहा था। यह निर्णय सरकार कैसे ले सकती है?’’

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने जो रा.स्व.संघ पर प्रतिबंध लगाया था, उसका ठोस आधार वह कभी नहीं बता पाई थी। हमने सवाल उठाया था कि, ‘‘क्या संघ देश विरोधी गतिविधियां करता है? क्या संघ समाज से दूर रहता है? क्या हमेशा पीड़ित मानवता की सेवा करने के लिए आगे खड़ा हुआ दिखाई नहीं देता? सभी यह बार-बार देखते हैं कि देश में कहीं भी भूकंप, रेल दुर्घटना, बीमारी प्रकोप, कोरोना महामारी जैसा बुरा वक्त ही क्यों न हो, सभी जगह संघ के स्वयंसेवक बिना किसी का मत, पंथ, मजहब, धर्म जाने सेवाकार्य करते रहे और सतत कर रहे हैं । वास्तव में रा.स्व.संघ अपने जन्मकाल से भारत के गौरव को नित्य प्रति आगे बढ़ने का कार्य कर रहा है। यदि स्वयंसेवक अपना सर्वस्व देश के लिए समर्पित करने को तत्पर रहते हैं, तब फिर कोई कैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा सकता है ?’’

पुरूषोत्तम गुप्ता ने कहा कि मैं न्याय पाने के लिए 09 सितंबर 2023 को न्यायालय की शरण में गया। मैंने इंदौर न्यायालय में पिटीशन में यही मांग रखी कि मैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में रिटायरमेंट के बाद कार्य क्यों नहीं कर सकता हूं, जबकि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश समेत विभिन्न राज्य सरकारें सरकारी कर्मचारियों के आर.एस.एस. से जुड़े होने पर प्रतिबंध को पहले ही हटा चुकी हैं। वहां संघ की शाखा में जाने की अनुमति है। केंद्र सरकार की तरफ से यह अनुमति अब तक नहीं दी गई, यह अनुमति सभी को मिले। इसके लिए मैंने सभी प्रमुख तथ्य जुटाए और न्यायालय के सामने यह मांग रखी कि सभी सरकारी कर्मचारियों को रा.स्व.संघ की गतिविधियों में भाग लेने की छूट दी जाए। याचिका में कहा गया था कि संघ गैरराजनीतिक संगठन है और अन्य संगठनों की तरह इसकी गतिविधियों में शामिल होने का उनका अधिकार है।’’

केंद्र सरकार ने न्यायालय को उत्तर देने से पूर्व ही रा.स्व.संघ का नाम प्रतिबंधित संगठनों की सूची से हटा दिया था। इस संदर्भ मैं बता दूं कि यह उत्तर केंद्र सरकार द्वारा न्यायालय को वैसे 11 जुलाई तक दिया जाना था, इससे पहले ही केंद्र का सार्वजनिक सूचनादेश सभी के सामने आ गया। अभी इस बारे में इंदौर न्यायालय का निर्णय भी आ गया है। जिसमें कि माननीय न्यायाधीशों ने जो निर्णय दिया है, उसे बढ़कर अब उम्मीद की जा सकती है कि भविष्य में कोई भी सरकार हो, वह जरूर इस तरह का असंविधानिक निर्णय लेने से बचेगी।

एक ऐतिहासिक निर्णय

पुरूषोत्तम गुप्ता ने कहा कि ‘‘मेरे इस छोटे से न्यायालय जाने के प्रयास का परिणाम अब सामने यह भी है कि हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा प्रतिबंधित संगठनों की सूची के बारे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में उसका उसके अभिमत को और और सरकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर क्या सोच रही है, उसकी इस सोच के पीछे का कारण क्या है? जब यह सब जानने के लिए माननीय न्यायालय ने प्रयास किए तो इंदौर उच्च न्यायालय में गुरुवार को सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से डिप्टी सॉलिसिटर जनरल हिमांशु जोशी, डिप्टी एडवोकेट जनरल अनिकेत नायक ने शपथ पत्र पेश किया, जिसमें बताया गया कि केंद्र ने 09 जुलाई 2024 को ही आदेश जारी कर संघ को प्रतिबंधात्मक संगठन से बाहर कर दिया है।’’

इसके बाद 25 जुलाई को इंदौर हाईकोर्ट द्वारा आए निर्णय में जो बातें न्यायालय ने कहीं, वह बहुत गंभीर हैं। आज न्यायालय ने साफ कहा है कि सरकार कोई भी हो उसे इस आधार पर निर्णय कतई नहीं लेना चाहिए कि उस समय की सरकार में राजनीतिक पार्टी की विचारधारा से दूसरे की सहमति नहीं है। इसलिए न्यायालय कहता है, ‘‘सार्वजनिक और राष्ट्रीय हित में काम करने वाले किसी भी प्रतिष्ठित स्वैच्छिक संगठन को वर्तमान सरकार की सनक और पसंद के आदेश से सूली पर नहीं चढ़ाया जाए, जैसा कि आरएसएस के साथ हुआ है। बीते पांच दशकों से इसके साथ हो रहा है।’’

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