अवधनामा संवाददाता
आयुर्वेद विशेषज्ञ डाक्टर हरीश वर्मा ने दी जानकारी
बांदा। गुदा क्षेत्र में दर्द या जलन, मल त्याग के समय गुदा मार्ग से खून गिरना, गुदा में खुजली, सरसराहट आदि बवासीर रोग के मुख्य लक्षण होते हैं। अधिकांश व्यक्ति चमकीले लाल रक्त की कुछ मात्रा अपने मल अथवा टॉयलेट पेपर पर देखते हैं । कुछ रोगी यह भी शिकायत करते हैं कि मल त्याग के समय बवासीर के मस्से गुदा के बाहर आ जाते है तथा बाद में अपने आप अंदर चले जाते है। बवासीर रोग में गुदाद्दार के भीतर और बाहर की नंसे फूलकर मस्सों का रूप धारण कर लेती है। यह रोग अक्सर उन व्यक्तियों को ज्यादा होता है जिन्हें मल त्याग करते समय जोर लगाना पड़ता है। गुदा मार्ग से खून का गिरना गंभीर बीमारी का सूचक भी हो सकता है। जैसे बड़ी आंत का अल्सर, कैंसर या भगंदर इत्यादि बीमारियों की अनदेखी घातक हो सकती है। डाक्टर वर्मा ने बताया कि गुदा रोगों में डायग्नोसिस बहुत महत्वपूर्ण होता है। कई रोगियों को गुदा के इर्द-गिर्द एक फोड़े की शिकायत होती है। जो बार दृबार फूट जाता तथा भर जाता है। यह रोग भगंदर हो सकता है। इसी तरह कई रोगियों को कब्ज के कारण मल त्याग के बाद गुदा में जलन की शिकायत होती है वह बीमारी एनल फिशर हो सकती है।
जिन व्यक्तियों को कब्ज की शिकायत होती है। या चटपटी तथा मसालेदार चीजें खाने, अधिक शराब पीने, रात में जागने, शारीरिक श्रम करने, लम्बे समय तक बैठे रहने तले हुये पदार्थाे का अधिक सेवन करने बार-बार जुलाब लेने से बवासीर या पाईल्स रोग उत्पन्न हो जाता है। डाक्टर वर्मा बताते हैं कि स्त्रियों में आमतौर पर गर्भावस्था के दौरान बच्चे के भार से खून की नसें दब जाने से बवासीर रोग उत्पन्न होने की संभावना रहती है। यह जानकारी एक बेविनार में आयुर्वेदाचार्य एवं कैनेडियन कालेज आफआयुर्वेद एंड योग के प्रमुख डाक्टर हरीश वर्मा ने दी। गुदा क्षेत्र में दर्द या जलन के उपचार के लिये सबसे पहले कब्ज को दूर करना चाहिये तथा शौच करते समय जोर न लगाये। कब्ज को दूर करने के लिये भोजन में हरी या सलाद खाए या दो अंजीर रात को पानी में भिगों दे और सुबह चबाकर खाएं ऊपर से पानी पी लें। इसके अलावा ईसवगोल का बुरादा दो बडे चम्मच ताजे पानी में घोलकर शाम 5 से 6 बजे रात्रि भोजन से पहले सेवन करें। बवासीर के रोगी को बिना मिर्च मसाले के सुपाच्य भोजन करें तथा मीट, अंडा, मछली एवं शराब से परहेज करें। कड़े आसन पर देर तक ना बैठे। हल्का व्यायाम तथा टहलने की क्रिया भी करें। मल त्याग के समय रोगी को गुदा में जलन की शिकायत हो तो सिट्ज़ बाथ राहत दिलाने में मदद करता है। मल त्याग के बाद गर्म पानी के टब में 15-20 मिनट तक बैठने से तुरन्त लाभ होता है। पाईल्स या बवासीर के मस्सों को दूर करने के कई तरीकों से इलाज किये जाते है जैसे इंजेक्शन, रबर बैंड लाईगेषन, कार्याे सर्जरी (गैस द्दारा) या लेजर इत्यादि। डा. हरीश वर्मा ने दो प्रकार जड़ी बूटियों के समूह जैसे रसोंत, अरीठा, जिमीकंद और अन्य जड़ी बूटियों को एक खास अनुपात के मिश्रण से फार्मूला तैयार किया है। यह फार्मूला गुदा क्षेत्र में दर्द या जलन रोग में बेहद प्रभावशाली है। डा. वर्मा ने गुदा क्षेत्र में दर्द या जलन, बवासीर या एनल फिशर रोगियों के लिये हेल्पलाइन नबंर 9910672020 भी जारी किया है। डाक्टर वर्मा ने बताया कि रसौंत, अरीठा, जिमींकंद और अन्य जड़ी बूटियों का यह फार्मूला एक ही समय पर दिया जाता है तथा बवासीर या गुदा क्षेत्र में दर्द को जड़ से खत्म कर डालने में रामबाण है। कुछ सप्ताह तक लेने से बवासीर के मस्से सूख जाते हैं।और परहेज करने से रोग दोबारा नहीं होता है।