एस एन वर्मा
विपक्ष भाजपा की उलब्धियों से परेशान कई बार विपक्ष में एकता स्थपित कर नया मोर्चा बनाने की कोशिश करता आ रहा है। पर उनका हर प्रयास अभी तक सफल नही हो पाया। विपक्षी प्रयास में कांग्रेस को तवज्जों नहीं दी गयी या यों कहे कांग्रेस खुद दूरी बनाये हुये है। राष्ट्रीय नेतृत्व को लेकर पार्टियों में मोर्चा नहीं बन पाया है। कांग्रेस कब से राहुल गांधी को अघोषित प्रधानमंत्री बनाने की कसरत कर रही है। उधर बिहार में नितीश कुमार भाजपा से सम्बन्ध तोड़े लालू की पार्टी से मिल बैठे। उनमें भी राष्ट्रीय नेतृत्व की कुलबुलाहट है हालाकि वह शब्दों में इनकार करते रहते है। विपक्ष में एकता बनाने के लिये वे कई विपक्षी नेताओं से मिल चुके है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री पूर्व में ममता से मिल विपक्षी मोर्चा बनाने की पहल कर चुके हैं पर बीच में ही वह शान्त हो गये।
अब तेलंगाना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव ने फिर विपक्षी मोर्चा बनाने की कमान संभाल ली है। उन्होंने भारत विकास समिति की रैली आयोजित की जिसमें कई महत्वपूर्ण विपक्षी नेता शामिल हुये। क्योकि उन्हें अहसास है अकेले भाजपा को वे हरा नहीं सकते। इस रैली में तेलंगाना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजेयन, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवन्त मान, सीपीआई के.डी राजा शामिल हुये। इसबार विपक्ष के कई चेहरे एक मंच पर दिखे।
सभी ने अपनी अपनी भड़ास निकाली। केरल के मुख्यमंत्री ने केन्द्र सरकार पर आरोप लगाया। देश में लोकतन्त्र की नीव को कुचला जा रहा है। धर्म निरपेक्षता, लोकतन्त्र और संविधान की रक्षा के लिये नये प्रतिरोध की बात कही। सपा अध्यक्ष ने भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में प्रधानमंत्री के वक्तव्य कि 2024 के चुनाव में सिर्फ 400 दिन रह गये है पर तंज कसते हुये कहा भाजपा में अपने दिन गिनने शुरू कर दिये है। चूकि मोदी जी ने एक दिन पहले 400 दिन की बात कही थी। उसे याद दिलाते हुये अखिलेश ने कहा भाजपा देश को पीछे ढकेल रहीं है। यह समय सभी प्रगतिशील नेताओं को एक साथ आने का है और देश के विकास के लिये काम करने का है।
अब इस रैली के बाद देखना है विपक्ष कब मिलता है और आगे का रोड मैप कैसा बनाता है। अभी उड़ीसा के मुख्यमंत्री, बिहार के मुख्यमंत्री, पंश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री, की उपस्थिति नही दिखी। यों भी विपक्षी एकता की राह आसान नहीं दिखती इसलिये कि सबके अपने-अपने सपने है। भाजपा भी व्यूह भेदने में लग गयी है। कई विपक्षी नेता उससे हाथ मिला रहे है और कई तैयार है।
वैसे यह रैली अखिलेश के लिये अहम हो सकती है और चन्द्रशेखर राव के लिये भी। सपा भाजपा और कांग्रेस से दूर रह कर मोर्चा बना रही है। सपा की सोच है अगर केन्द्र में गैर भाजपा सरकार बनती है तो वह अपने दल की भागीदारी बढ़ा सकेगे। पर रैली में अखिलेश जिन नेताओं से जुड़े उनका उत्तर प्रदेश में कोई जनाधार नहीं है। तो इनसे अखिलेश को क्या फायदा मिलेगा।
अगर तीसरा मोर्चा बन पाता है तो अखिलेश को कुछ ज्यादा फायदा मिल सकता है। चुनाव में सीटों के बटवारे में अखिलेश अपनी स्वतन्त्र हैसियत रख सकेगे। अखिलेश से चन्द्रशेखर राव को बड़ा फायदा मिल सकता है। क्योकि तेलंगाना में यादवों की बड़ी संख्या है और वे सम्पन्न भी है। मोर्चा यद्यपि केसीआर बना रहें पर महत्वपूर्ण नेता अखिलेश रहेगे यादवों के संख्या बल की वजह से।
अभी तो सब कयास है। आगे आगे देखिये क्या होता है। उधर कांग्रेस भारत जोड़ों यात्रा करके बड़ी उम्मीद लगाये बैठी है। राहुल की बयानबाजी, नया कलेवर, जैराम रमेश की वाचालता क्या गुल खिलाती है। सभी अपनी-अपनी आशाओं में लिप्त है। किसी भी प्रोफेशनल में महत्वाकांक्षा होनी स्वभाविक है और होनी भी चाहिये क्योंकि इस इससे कुशलता बढ़ती है।