असम चुनाव: सीएए और एनआरसी पर आखिर क्यों चुप हैं बीजेपी नेता

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अवधनामा डेस्क 

साल 2019 में भारतीय जनता पार्टी ने दुबारा बहुमत हासिल कर मोदी 2.0 की शुरूआत होने के बाद भाजपा सरकार ने कई कड़े फैसले लिए चाहे वह कश्मीर से जुड़ा हुआ आर्टिकल 370 रहा हो या फिर नागरिकता संसोधन बिल (सीएए/एनारसी) रहा हो। अब साल 2021 के मध्य में देश के दो राज्यों में विधान सभा चुनाव होने है। सभी राजनीतिक दल चुनाव की तैयारियों में जुट चुके है। जलसे और रैलियों का दौर शुरू हो गया है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के लिए असम में सत्ता बचाए रखना एक बड़ी चुनौती इसलिए बनती चली जा रही है क्योंकि साल 2019 में  पारित सीएए-एनआरसी बिल भाजपा के लिए बड़ी चुनौती बनती दिख रही है। 126 सीटों वाली असम विधानसभा में साल 2016 के चुनाव में बीजेपी ने 60 सीटों पर जीत दर्ज की थी और असम गण परिषद को 14 सीटें, कांग्रेस को 26 और एआईडीयूएफ को 13 सीट हासिल की थी।

जलसे में भाजपा नेता जहां हिंदुत्व के मुद्दे पर जोर देर है वही धारा 370 और श्रीराम का मंदिर निर्माण की भी बात कर रही है लेकिन एनआरसी और सीएए के मुद्दे पर चुप्पी अख्तियार किये हुए हैं।

इलाकाई भाजपा नेताओं के साथ केन्द्रीय नेतृत्व भी इस मुद्दे से दूरी बनाए हुए हैं। बीते रविवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह असम दौरे पर थे। नलबाड़ी में विजय संकल्प समारोह में असम की जनता से खिताब करते हुए शाह ने घुसपैठियों का जिक्र तो किया, लेकिन नागरिकता कानून का जिक्र नहीं किया।

 

शाह घुसपैठिओं पर बोले, धारा 370 पर बोले, बोडो शांति समझौते पर बोले, राम मंदिर पर बोले सिर्फ एनआरसी और सीएए पर कुछ नहीं बोले।

शाह ने इस मौके पर सवाल करते हुए कहा, आप लोग असम को घुसपैठियों से मुक्ति चाहते हो या नहीं। ये कांग्रेस और बदरुद्दीन अजमल असम को घुसपैठियों से सुरक्षित रख सकते हैं क्या?

उन्होंने कहा- ये जोड़ी सारे दरवाजे खोल देगी और घुसपैठ को असम के अंदर आसान कर देगी, क्योंकि ये उनका वोटबैंक है। घुसपैठ को अगर कोई रोक सकता है, तो भारतीय जनता पार्टी की नरेंद्र मोदी सरकार रोक सकती है। हमने ये करके दिखाया।”

शाह यहीं नहीं रूके। आगे उन्होंने कहा कि “धारा 370, जिसे 70 साल से कोई छूने की हिम्मत नहीं करता था, 5 अगस्त 2019 को हमने इसे खत्म कर, कश्मीर को भारत के साथ जोडऩे का काम किया। 550 साल से श्रीराम का मंदिर बनाने के लिए देश भर से आवाज उठती रही। किसी ने हिम्मत नहीं की। आपने दूसरी बार पूर्ण बहुमत से नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने का मौका दिया, तो प्रभु श्रीराम के गंगनचुंबी मंदिर बनने की शुरुआत हो चुकी है।”

 

शाह के इस भाषण के बाद से सवाल उठना लाजिमी है। क्योंकि यह वही शाह हैं जो पहले ये कहते नहीं थकते थे कि “दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है, जहां कोई भी जाकर बस सकता है। देश के नागरिकों का रजिस्टर होना, यह समय की जरूरत है। हमने अपने चुनावी घोषणा पत्र मे देश की जनता को वादा किया है। न केवल असम, बल्कि देश भर के अंदर हम एनआरसी लेकर आएंगे। एनआरसी के अलावा देश में जो भी लोग हैं, उन्हें कानूनी प्रक्रिया के तहत बाहर किया जाएगा।” लेकिन चुनाव से पहले असम में जाकर अमित शाह को न तो उन्हें अपना घोषणा पत्र याद रहा और ना ही अपना पुराना बयान। जाहिर है यह चुनाव की वजह से ही है।

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