पाकिस्तान हार गया, नफरत की हुई शिकस्त, हिन्दोस्तान जीत गया

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वकार रिजवी
मीर तक़ी मीर ने बरसों पहले यह शेर शायद उन लोगों के लिये ही कहा था जिन्हें आज दिल्ली के चुनाव में सींटे नहीं मिली, ख़ासतौर से दिल्ली में एकबार फिर कांग्रेस का जो बुरा हाल हुआ। कांग्रेस का जि़क्र इसलिये क्योंकि उसने अपने इश्तेहार बहुत अच्छे बनाये थे, दिल्ली की तरक़्क़ी में शीला दीक्षित की याद दिलायी थी और यह कोशिश की थी कि दिल्ली का चुनाव विकास पर लड़ा जाये, अपने किये काम पर लड़ा जाये, दिल्ली की बेहतरी के लिये लड़ा जाये क्योंकि केजरीवाल इन्हीं मुद्ïदों पर चुनाव लड़ रहे थे, मगर कांग्रेस की बदकि़स्मती कि उसके पास कोई जि़ंदा नेता ही नहीं था इसलिये वह पूरी तरह शीला दीक्षित के नाम पर चुनाव लड़ रही थी लेकिन दिल्ली की जनता जानती थी जो कांग्रेस नहीं जानती थी कि शीला दीक्षित अब इस दुनियाँ में नहीं हैं जो वह दिल्ली को विकास के रास्ते पर आगे ले जायेंगी।
दूसरी तर$फ पाकिस्तान का नाम एकबार फिर चुनाव में सरगर्म था जबकि पाकिस्तान नाम है न$फरत का, बेरोजग़ारी का, आर्थिक मंदी, आतंकवाद का, जो किसी हिन्दोस्तानी को पसन्द नहीं। दिल्ली की जनता बाक़ी हिन्दी भाषी प्रदेशों के मुक़ाबले कम अंधविश्वासी है, वह पढ़ी लिखी है, वह यहां पर काम करने आयी है, यहां पर पढऩे आयी है अपना कैरियर बनाने आयी है, इसलिये वह भलिभांति जानती है कि हिन्दोस्तान नाम है ऐसे गुलिस्तां का जहां हर रंग के फूल खिलते हैं, हिन्दोस्तान नाम है मोहब्बत का, भाई चारे का, मेलमिलाप का, क़ौमी यकजहती का, सभी धर्मो के प्रति विश्वास का, यहां पाकिस्तान का नाम लेने वाले की कोई ज़रूरत नहीं, जो हिन्दोस्तान का नाम लेकर चुनाव लड़ेगा, उसकी तरक़्क़ी के लिये लड़ेगा, उसे शिक्षित बनाने के लिये लड़ेगा, उसे सेहतमंद बनाने के लिये लड़ेगा, उसकी गऱीबी दूर करने के लिये लड़ेगा, उसे आत्मनिर्भर बनाने के लिये लड़ेगा, उसमें रोजग़ार पैदा करने के लिये लड़ेगा, उसकी आर्थिकमंदी दूर करने के लिये लड़ेगा, उसके रंगबिरंगे गुलिस्तां को आबाद रखने के लिये लड़ेगा, हम दिल्ली में उसे ही जितायेंगे शायद इसीलिये 100 एम.पी., कई प्रदेश के मुख्यमंत्री और केन्द्रीय नेतृत्व की अटूट मेहनत भी कोई काम न आ सकी।
दिल्ली के चुनाव के नतीजे भारतीय राजनीति का दृष्टिकोण बदलने पर मजबूर करेंगे, अब उन्हें समझना होगा कि अब कोई भी पार्टी सि$र्फ डराकर, धमका कर, धर्म के नाम पर, आस्था के नाम पर, आपस में बांटकर वोट नहीं हासिल कर सकते बल्कि देश के विकास के लिये कुछ करना होगा, इसे आर्थिकमंदी से निकालना होगा, रोजग़ार पैदा करने होंगे, देश से अशिक्षा को समाप्त करना होगा, देश को स्वस्थ्य बनाना होगा।
क्रिकेट के जानकार जानते हैं कि जैसी पिच होती है वैसे खिलाड़ी मैदान में उतारे जाते हैं, अगर स्पिन पिच होती है तो ज़्यादा स्पिनर खिलाये जाते हैं और जब विदेशों में तेज़ गेंदबाज़ों को मदद करने वाली पिच होती है तो तेज़ गेंदबाज़ ज़्यादा रखे जाते हैं। हालांकि केजरीवाल को सियासत में आये बहुत वक़्त नहीं हुआ लेकिन उन्होंने विपक्ष को इस दिल्ली के चुनाव में अपनी कम्पेन से बहुत कुछ सीखने को छोड़ दिया, वह उतना ही बोले जितना बोलने की ज़रूरत थी जबकि कांग्रेस ज़्यादातर चुनाव अपने अधिक बोलने की वजह से हार गयी, गुजरात के चुनाव में मणिशंकर का वह एक ‘नीचÓ शब्द ही हार की वजह बना था, दूसरे केजरीवाल ने न सि$र्फ शाहीनबाग़ को अपने विरोधियों को कैश नहीं कराने दिया बल्कि सी.ए.ए. और एन.सी.आर. पर भी नपातुला जवाब दिया, विरोधियों ने एकबार वंदेमातरम कहा उन्होंने हर जगह वंदेमातरम कहा, विपक्ष ने अगर जय श्रीराम कहा तो उन्होंने उससे ज़ोर जय हनुमान कहना शुरू कर दिया, विपक्ष ने एकबार पाकिस्तान मुर्दाबाद कहा, केजरीवाल ने हर जगह पाकिस्तान मुर्दाबाद कहा यानि केजरीवाल ने अपने विपक्ष के शस्त्रों को ही अपनी ढाल बनाया, नतीजा आपके सामने है, इसीलिये व्हाटसअप यूनीवर्सिटी पर सरगर्म है कि जब किसी ने दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी से जानना चाहा कि यह विश्वास भरा 48 सीटों का आंकड़ा आप कहां से लाये थे तो उन्होंने बड़ी मासूमियत से कहा कि क्या करें जिससे पूछता था कि वोट आपने किसको दिया तो सब कहते थे कि आपको, हम समझे कि हमको लेकिन जब चुनाव नतीजे आये तो पता चला कि वह ‘आपÓ हम नहीं ‘आपÓ पार्टी थी।
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