भारत अपने नागरिकों को सेहतमंद रखने के लिए तुरंत एक अहम कदम यह उठा सकता है कि वह केन्द्र और राज्य सरकारों की सेवाओं से जुड़े सरकारी डॉक्टरों की रिटायरमेंट की उम्र को बढ़ा दे। पिछले कुछ दशकों में भारतीयों की औसत उम्र में भी लगातार सुधार हो रहा है। भारत ने स्वास्थ्य सेवा, प्रौद्योगिकी और जीवन स्तर में महत्वपूर्ण प्रगति की है। भारत में औसत उम्र का दर 1950 में लगभग 37 वर्ष से बढ़ कर अब लगभग 70 वर्ष की हो गई है। हालांकि, डॉक्टरों की रिटायरमेंट की आयु इन परिवर्तनों के साथ तालमेल नहीं बैठ पाई है। डॉक्टरों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष कर दी गई है, पर इसे और बढ़ाने की गुंजाइश है, क्योंकि सरकारी अस्पतालों में अनुभवी डॉक्टरों की कमी है। वक्त का तकाजा है कि डॉक्टरों की रिटायरमेंट की उम्र को 70 वर्ष तक कर दिया जाए। आपको देशभर में हजारों अनुभवी डॉक्टर मिल जाएंगे जो 70 साल तो छोड़िए 75 और उससे भी अधिक उम्र में प्रैक्टिस कर रहे हैं। राजधानी के राममनोहर लोहिया अस्पताल से जुड़े हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. आर.के. करौली तो 90 साल की उम्र तक रोगियों को रोजाना चार-पांच घंटों तक देखा करते थे। वे नेहरू जी से लेकर शास्त्री जी के भी चिकित्सक थे। मुंबई में भी 80 से ज्यादा वसंत देखने के बाद भी मशहूर डॉक्टर डॉ. बी.के. गोयल एक्टिव थे। इस तरह के सैकड़ों उदाहरण आपको मिल सकते हैं।
भारत में आने वाले सालों में अनेकों नए मेडिकल कॉलेज स्थापित होने जा रहे हैं। सरकार की कोशिश है कि हर साल देश के विभिन्न मेडिकल क़ॉलेजों से 50 हजार से ज्यादा डॉक्टर देश को मिलें। इनके अलावा वे डॉक्टर भी हैं जो भारत के बाहर जाकर मेडिसन की डिग्री लेकर आते हैं। आप मान सकते हैं कि देश के हेल्थ सेक्टर में डॉक्टरों की संख्या में वृद्धि लगातार होती रहेगी। इस बात को ध्यान में रखते हुए यह भी सुनिश्चित करना होगा कि अनुभवी और वरिष्ठ डॉक्टरों के अनुभव का लाभ देश के हेल्थ सेक्टर को मिलता रहे। यह बात इसलिए कही जा रही है, क्योंकि अनुभव का कोई विकल्प नहीं हो सकता है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. विनय अग्रवाल मानते हैं कि सरकारी डॉक्टरों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ा कर 70 करने से न केवल अनुभवी डॉक्टरों की कमी दूर होगी, बल्कि युवा चिकित्सकों को जरूरी मार्गदर्शन भी मिलता रहेगा।
दरअसल, मेडिसन की दुनिया में अनुभव का बहुत अधिक महत्व है। यहां जब कोई नौजवान मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेता है, उसके बाद वह अपने अध्यापकों के अलावा मार्गदर्शन के लिए वरिष्ठ और अनुभवी डॉक्टरों के संपर्क में लगातार रहता है। इसलिए बहुत जरूरी है कि वरिष्ठ डॉक्टरों के अनुभव का लंबे समय तक लाभ उन्हें मिलता रहे, जो इस पेशे में आ रहे हैं। वरिष्ठ डॉक्टरों के अनुभव और इस पेशे में आए नए डॉक्टर मिलजुल कर मरीजों के रोगों के उपचार को बेहतर तरीके से कर सकते हैं। इस रोशनी में सरकारी डॉक्टरों की रिटायरमेंट उम्र को बढ़ाना जरूरी कदम हो सकता है। चूंकि डॉक्टर अपने स्वास्थ्य पर बहुत ध्यान देते हैं इसलिए वे 70 साल की उम्र तक तो पूरी तरह से काम करने लायक होते हैं।
क्या किसी को बताने की जरूरत है कि अब भी देश के ग्रामीण हिस्सों में अनुभवी डॉक्टरों की भारी कमी है? ग्रामीण भारत की जनता बीमार होने पर बड़े शहरों के अस्पतालों में पहुंचती है। हर रोज राजधानी दिल्ली के एम्स, राममनोहर लोहिया अस्पताल, लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल, गंगाराम अस्पताल वगैरह में हजारों ग्रामीण दूरदराज के राज्यों से इलाज के लिए पहुंचते हैं। अगर उनके गांवों के पास पर्याप्त डॉक्टर और श्रेष्ठ सुविधाएं उपलब्ध हों तो वे क्यों सैकड़ों मील का सफर कर यहां आयेंगे? सरकारी डॉक्टरों की उम्र बढ़ाने से गांवों में डॉक्टरों की कमी को कुछ हद तक पूर किया जा सकता है। ग्रामीण भारत में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी है। यह बहुत चिंताजनक स्थिति है। इस समस्या का एक हल यह भी है कि रिटायरमेंट की आयु बढ़ने से वहां पर तैनात डॉक्टरों को सेवा करने का मौका मिलता रहेगा। डॉ. विनय अग्रवाल कहते हैं कि देश के ग्रामीण भागों में सर्जनों, प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञों, फिजीशियनों और बाल रोग विशेषज्ञों की मांग को भी पूरा करने की जरूरत है। डॉक्टरों के सेवा विस्तार से गांवों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी को एक हद तक तो दूर किया ही जा सकता है।
वरिष्ठ डॉक्टर अक्सर हेल्थ सेक्टर मैनेजमेंट और नीति निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनका सेवा विस्तार करने से उनकी विशेषज्ञता का उपयोग नीतियों को आकार देने और अस्पताल प्रबंधन को बेहतर बनाने में किया जा सकेगा। जैसा कि ऊपर कहा गया कि जब भारत में डॉक्टरों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु निर्धारित की गई, तो हिन्दुस्तानियों की औसत उम्र काफी कम थी। 1950 और 1960 के दशक में जब औसत उम्र कम थी तो 55 वर्ष की सेवानिवृत्ति की आयु उचित मानी जाती थी। 1970 के दशक में बढ़ कर 58 वर्ष हुई और फिर 1990 के दशक में 60 वर्ष। 2017 में केंद्र सरकार के डॉक्टरों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष कर दी गई थी, ताकि अनुभवी चिकित्सा पेशेवरों को अधिक समय तक बनाए रखा जा सके। अब वक्त का तकाजा है कि केन्द्र और राज्य सरकारों के अस्पतालों से जुड़े डॉक्टरों की रिटायरमेंट की उम्र को बढ़ाया जाए।
अमेरिका और यूरोप के देशों में शोध कार्यों से जुड़े डॉक्टर जीवन भर सेवा में रहते हैं। जब यह व्यवस्था अन्य देशों में हो सकती है तो फिर भारत में क्यों नहीं। भारत में तो अनुभवी डॉक्टरों की हमेशा ही मांग बनी रहती है। भारत के लिए अपने डॉक्टरों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु की समीक्षा करने का समय आ गया है। उम्मीद करनी चाहिए कि इस लिहाज से सरकार जल्दी कोई फैसला लेगी।