अवधनामा संवाददाता
लखनऊ,: जो रोगी अंग्रेजी दवाओं से भी ठीक नहीं हो पाते हैं, वे प्राकृतिक चिकित्सा से राहत पाने के लिए गोरखपुर के विश्वस्तरीय आरोग्य मंदिर पहुंचते हैं। प्रकृति के पंच-तत्वों की मदद से उपचार के लिए बच्चों से लेकर बड़ों तक हर तरह के मरीज इस प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र में पहुंचते हैं, जहां 100 बेड का एक अस्पताल संचालित है। उपचार की कोई फीस नहीं ली जाती है, बस ठहरने और भोजन का शुल्क देना होता है। अब तक एक लाख से अधिक लोग इस सुविधा का लाभ ले चुके हैं। ऐसा कहना है आरोग्य मंदिर के निदेशक डॉ. विमल कुमार मोदी का।
डॉ. मोदी कहते हैं कि आरोग्य मंदिर में अधिकतर दमा, कब्ज, मधुमेह, सिरदर्द, थकान, कोलाइटिस, अल्सर, रक्तचाप, एसिडिटी, गठिया, एक्जिमा, मोटापा और एलर्जी आदि से परेशान लोग उपचार हेतु आते हैं। इलाज के लिए औषधियों की जगह, एनिमा, मिट्टी के लेप, स्नान, धूप, उपवास, फलाहार, योगासन और व्यायाम आदि का सहारा लिया जाता है। उपचार के लिए एक से दो माह तक रहना पड़ सकता है।
आरोग्य मंदिर की स्थापना 1940 में विट्ठलदास मोदी ने की थी। छात्र जीवन में वह अत्यधिक बीमार हो गए और जब एलोपैथी की दवाओं से ठीक नहीं हुए, तब उन्होंने प्राकृतिक चिकित्सा को अपनाया और स्वस्थ हो गए। पंडित दीनदयाल उपाध्याय की प्रेरणा से उन्होंने किराए के एक भवन में केंद्र की शुरुआत की। फिर 1960 में यह मेडिकल कॉलेज रोड पर शहर से पांच किलोमीटर दूर स्थापित किया गया। संस्थान आरोग्य नामक एक मासिक पत्रिका और स्वास्थ्य संबंधी पुस्तकों का भी प्रकाशन करता है। आरोग्य केंद्र में चिकित्सा ही नहीं, प्रशिक्षण की भी व्यवस्था है। यहां प्राकृतिक जीवन शैली की शिक्षा दी जाती है।
उल्लेखनीय है कि संस्थान की उपयोगिता और जन कल्याण में इसके भारी योगदान के बावजूद सरकार की ओर से इसके संस्थापक को अभी तक उचित सम्मान नहीं दिया गया है। इतने महान जनसेवक की भारी अनदेखी हुई है, जबकि वह भारत के एक महान रत्न हैं और बड़े से बड़े सम्मान के हकदार हैं। यह सर्वविदित है कि मौजूदा प्रदूषण भरे शहरी जीवन में आरोग्य मंदिर जैसे संस्थानों का अत्यधिक महत्व है।