सन्तूर का दूसरा नाम शिवकुमार शर्मा

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एस.एन.वर्मा
मो.7084669136

 

श्रद्धान्जली

शिवकुमार शर्मा 1938 में जम्मू के गायक पन्डित उमा दत्ता शर्मा के यहां हुआ थाउन के संगीत का सफर पांच वर्ष की उम्र में तबला वादक की हैसियत से शुरू हुआ। जब वह 13 के उम्र में पहंुचे तो पिता ने उन्हें एक वाद्य यन्त्र दिया जिसे वह भी नहीं जानते थे कि यह कया है। पिता ने कहा तुम्हें इस यन्त्र को विकसित करना है। यह यन्त्र सन्तूर कहा जाता है। तब शास्त्रीय संगीत के महफिलों में यह अनजान था। इसे कश्मीर में सूफी संगीत मे बजता था। 17 साल की उम्र में 1955 में शर्मा जी ने जनता के सामने आये। इस महफिल में बड़े गुलाम अली खां, रीवशंकर, अल्लाहरक्खा खां, जैसे दिग्गज मौजूद थे। इस महफिल में पंडित जी के सन्तूर वादन को बहुत अधिक सराहना मिली। पन्डित जी जब अपने शिखर पर पहुंच गये तो फिल्मवालों का ध्यान आकर्षित किया। वी शान्ताराम ने अपनी फिल्म झनक झनक पायल बाजे में इन्हें पहली बार मौका दिया और फिल्म में पहली बार सन्तूर बजा। 1967 में बासुरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया और गिटार वादक बृजभूषन काबरा के साथ मिलकर, काल आफ दवैली अलबम बनाया जो संगीत के क्रद्रदानों के कलेक्शन में पहुंचा। पन्डित जी ने बासुरीवादक हरि प्रसाद चौरसिया के साथ मिलकर टीम बनाई और 1981 में पहली बार फिल्म सिलसिला के लिये हिट संगीत दिया। इसके बाद कई हिन्दी फिल्मों में इस जोडी ने संगीत दिया। चान्दनी फिल्म के गाने बहुत ही लोकप्रिय हुये थे जिसे आज भी लोग सुनते है। फिर हम दोनों बीस साल बाद गाइड वगेरह में बैक ग्राउन्ड म्युजिक दिया। 1986 में शर्मा जी को संगीत नाटक अकाडमी अवार्ड मिला। 1991 में मद्मश्री से नवाजे गये और 2001 में पद्मविभूषन से नवाजे गये। 10 मई 2002 वह मनहूस दिन था जिस दिन वह बाथरूप में बेहोश पाये गये और दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई। पन्डित जी को कई बिमारी थी। रोज डायलसिस लेते थे। किडनी भी खराब थी।
शर्मा जी अपने बारे में बताते थे मेरी कहानी दूसरे शास्त्रीय संगीतकारों से अलग है। क्योंकि इन्हें अपनी काबलियत साबित करने के लिये संघर्ष करना पड़ा था। पर मुझे अपने वाद्य को लोगों में स्वीकार कराने के लिये संघर्ष करना पड़ा। पन्डित जी ने अपने लगन और हुनर से अपरचित वाद्य को लोगों के घर-घर तक पहंुचा दिया। आज हर बच्चा जानता है सन्तूर क्या है। शास्त्रीय संगीत के महफिलों में यह लोेकप्रिय वाद्य बन गया है।
जिस समय पन्डित जी नं संगीत महफिलों में सन्तूर बजाना शुरू किया तो संगीत समीक्षक इसे पूर्ण वाघयन्त्र। मानने को तैयार नही थे क्योंकि इस पर अलाप नहीं लिया जा सकता था। समीक्षकों को सन्तूर के रेन्ज पर भरोसा नहीं था। पन्डित जी ने मेहनत करके सन्तूर को सुधार कर विकसित किया और एक खास बाजा बना दिया।
शर्मा जी पिता की इच्छा के विरूद्ध 1960 में बाम्बे आ गये एक फ्रीलान्सर संगीतकार के रूप में अपना कैरियर बनाने के लिये। पन्डित जी अपने मिशन में सफल ही नहीं रहे सफलता की ऊंचाइयां हासिल की। शर्मा जी ने खुद, वासुरी वादक चौरसिया और गिटारवादक बृजभूषन काबरा के साथ मिलकर जो काल आफद वैली एलबम बनाया था। वह उनके लिये मील का पत्थर साबित हुआ।
जब शास्त्रीय संगीत के महाफिलों में सितार, सरोद, वायलिन का बोलबाला था। उस महफिल में शर्मा जी ने कड़े संघर्ष के बाद 100 तार के वाद्य यन्त्र को इन महफिलों में लोकप्रिय बनाया। यह उनके संगीत साधना का सबसे बड़ा इनाम है। क्योंकि लोगों में शंका थी की सन्तूर से किस तरह की झंकार निकलेगी। भीड़ जिसमें नोट एक दूसरे नोट में सरक जाता है, बिना किसी ब्र्रेक के कैसे सम्भव होगा, गमक जिसे घु्रपद से लिया गया है कैसे सन्तुर पर बज सकेगा। पर पन्डित जी ने अपनी तरह सन्तूर को विकसित करके हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के हर राग के अनुकूल बना दिया। यही नहीं लोग इसके मुरीद हो गये। वह मुंगरी जिससे तार छेड़ा जाता है को दाहिने हाथ के अंगूठे से सन्तूर के तार पर इस तरह फिसलाते थे कि गमक का अमास देता था। सन्तूर के लिये सबसे सही शब्द होगा लयकारी जो भीड़ का आवाहन करती है।
पन्डित जी बहुत शान्त स्वभाव के विनम्र शख्स थे। कार्यक्रम देने के पहले ग्रीनरूम में बैठ कर सोचते सोचते ध्यानमग्र हो जाते थे कि उन्हें क्या बजाना है। अपने टयूनिंग पर ध्यान देते थे। वह कहा करते थे कुछ बाते सन्तूर से ही आ सकती है। लोग उन्हें संगीतकारों का संगीतकार कहते है। सन्तूर जो उनके पहले अविकसित और पिछड़े इलाकों मे छोटे-छोटे समूहो मे ंसूफी कार्यक्रमों में बजता था पन्डित जी ने उसे अगली पांक्ति मे ंला दिया केवल अपने अकेले के मेहनत से यह असाधारण प्रतिमा उन्हीं में थी। पन्डित जी लयकारी में सात बांट के सापकल में कई नोट बजाते थे झपताल जो 10 वीट का होता है, एकताल ताल 12 मात्रा का होता है तीन ताल 16 मात्रा का होता है। अगर वह रूपक ताल, जो सात मात्रा का होता है बजाते थे उसमें लयकारी के माध्यम से कई तालों का करिश्मा दिखा देते थे।
अवधनामा परिवार की ओर से श्रद्धाजलि

 

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