Tuesday, October 28, 2025
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दीयों-मोमबत्तियों को फिजूलखर्ची बताने में घिरे अखिलेश, लोगों ने कहा- राम भक्तों के खून से रंगे हैं सपा के हाथ

अखिलेश यादव दीयों और मोमबत्तियों को फिजूलखर्ची बताने पर विवादों में आ गए हैं। लोगों ने उनकी आलोचना करते हुए समाजवादी पार्टी पर राम भक्तों के खून से हाथ रंगे होने का आरोप लगाया है। सोशल मीडिया पर उनकी टिप्पणी की कड़ी निंदा हो रही है, और इसे हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला बताया जा रहा है। इस बयान से राजनीतिक माहौल गरमा गया है।

लखनऊ। दीपावली पर दीये और मोमबत्ती की खरीद को फिजूलखर्ची बताने वाले समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को इंटरनेट मीडिया पर भी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। लोगों ने उनके बयान को सनातन विरोधी मानसिकता का सबूत बताया। इस बयान को धार्मिक और सांस्कृतिक भावनाओं का अपमान बताया जा रहा है।

सपा अध्यक्ष ने अयोध्या में दीये जलाने को लेकर बयान दिया था कि पूरी दुनिया में क्रिसमस के दौरान शहर महीनों तक जगमगाते रहते हैं, हमें उनसे सीखना चाहिए। उनका ये बयान जब इंटरनेट मीडिया पर प्रसारित हुआ तो बड़ी संख्या में लोगों ने कहा कि सपा के मूल में ही सनातन विरोध है।

वोट बैंक और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण इस पार्टी के वैचारिकी का आधार है। इनका डीएनए सनातन विरोधी है। सपा के हाथ रामभक्तों के खून से रंगे हुए हैं। मुलायम सिंह यादव हों या अखिलेश यादव या फिर पार्टी के अन्य नेता।

इनके बयान और निर्णय अक्सर धार्मिक भावनाओं के विपरीत रहे हैं। इंटरनेट मीडिया का लोगों का कहना है कि ये केवल एक बयान नहीं, बल्कि सपा की नीति और राजनीतिक सोच का हिस्सा है।

विश्लेषकों के अनुसार, अखिलेश यादव ने बीते वर्षों में कई बार विवादास्पद टिप्पणी की है। एक बार उन्होंने कहा था कि हिंदू धर्म में कहीं भी पत्थर रख दो, पीपल के नीचे लाल झंडा लगा दो तो मंदिर बन जाता है। उन्होंने ये भी कहा था कि मठाधीश और माफिया में कोई ज्यादा फर्क नहीं होता।

सपा शासनकाल में कब्रिस्तानों की बाउंड्री पर करोड़ों रुपये खर्च करना, कांवड़ यात्रा पर रोक लगाना और राममंदिर की प्राण प्रतिष्ठा से दूरी बनाए रखने को भी अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और सनातन विरोधी होने से जोड़ा जाता रहा है।

विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा जहां धर्म और आस्था को अपने वैचारिक आधार के रूप में प्रस्तुत करती है, वहीं सपा बार-बार ऐसे बयान देती है जो परंपरागत प्रतीकों से टकराते हैं। अखिलेश अपने पिता मुलायम सिंह यादव से आगे बढ़ते हुए अब खुलकर ऐसी राजनीति कर रहे हैं, जिसमें धार्मिक प्रतीकों और सांस्कृतिक परंपराओं के साथ टकराव को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है।

भाजपा नेताओं ने इसे सनातन परंपराओं और धार्मिक भावनाओं की रक्षा का मुद्दा बनाया है, वहीं सपा इसे अपनी राजनीतिक आलोचना का हिस्सा बता रही है।

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