अकबर ने मुक़म्मल किया कुरआन-ए-पाक

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अवधनामा संवाददाता

बाराबंकी। महज़ सात साल की उम्र में बाराबंकी के अकबर अब्बास किदवाई ने कुरआन-ए-पाक का पाठ मुकम्मल कर लिया। कुरआन के सभी तीस पारें (अध्याय) को उच्चारण सहित पूरा कराने में उनके उस्ताद हाफिज़ मो. सलीम का सहयोग रहा। कुरआन का पाठ पूरा करने पर जनपद के कानून गोयान में दुआ का कार्यक्रम आयोजित हुआ। इसमें अकबर को बुजुर्गों और परिजनों ने दुआओं से नवाज़ा। वहीं, बच्चे ने कुरआन की सूरह फ़ातिहा पढ़कर सुनाया। स्वतंत्र भारत संवाददाता से बात करने पर अकबर के पिता सैफ किदवाई ने बताया कि यह उनके, उनकी बीवी, खानदान व रिश्तेदारों के लिए बेहद ही खुशी का मौका है। उन्होंने बताया कि कुरआन को किरत के साथ मुकम्मल कराने में हाफिज मो. सलीम का भी अहम क़िरदार रहा। फिलहाल अकबर अभी शहर के चंद्रशेखर आज़ाद स्कूल में कक्षा एक का छात्र है। वह अपने बेटे को दीनी और दुनियावी दोनों तालीम दिलाएंगे। अकबर के उस्ताद हाफिज़ मो. सलीम ने बताया कि कुरआन की तालीम हर मुसलमान के लिए ज़रूरी है क्योंकि कुरआन एक किताब नहीं बल्कि दुनिया में जीने का तरीका है। अल्लाहताला ने अपनी उम्मत को कुरआन को उठाने की वह ताकत दी है, जो बड़े बड़े पहाड़ों को भी नहीं मिली। जब कुरआन नाज़िल हुआ था तो पहाड़ भी लरज गए थे। अंत में अकबर की माता नाज़िया किदवाई ने बताया कि वे बेहद ही खुश हैं और अकबर जैसा होनहार बेटा पाकर वह बहुत गौरान्वित भी महसूस कर रहीं हैं। साथ ही उन्होंने अकबर की इस कामयाबी के लिए अल्लाह पाक का शुक्रिया भी अदा किया। इस मौके पर सभी परिजनों सहित समस्त मोहल्ला वासी मौजूद रहें।
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