Wednesday, December 17, 2025
spot_img
HomePoliticalबिहार के बाद झारखंड के भी राजगमय होने की सुगबुगाहट, हेमंत सोरेन...

बिहार के बाद झारखंड के भी राजगमय होने की सुगबुगाहट, हेमंत सोरेन की BJP के शीर्ष नेता से हुई मुलाकात

बिहार में एनडीए की जीत के बाद झारखंड में राजनीतिक बदलाव की चर्चा है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और भाजपा नेता के बीच मुलाकात हुई है, जिसमें गठबंधन की संभावना पर बात हुई। डिप्टी सीएम पद को लेकर भी चर्चा है। सरकार को वित्तीय संकट के कारण वादे पूरे करने में दिक्कतें आ रही हैं। भाजपा भी राज्य में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है। राजनीतिक गलियारों में नए गठबंधन की चर्चा है।

बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की प्रचंड जीत के बाद राजनीतिक हलचल की धुरी अब झारखंड की ओर घूमती दिख रही है। यहां सत्ता का समीकरण भले स्थिर दिखता हो, लेकिन भीतरखाने बदलाव की आहट तेज है।

विश्वसनीय सूत्र का दावा है कि दिल्ली में दो दिन पहले झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेता एवं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन की भाजपा के एक शीर्ष नेता से मुलाकात हुई है। दावा यह भी है कि बातचीत केवल औपचारिक नहीं थी, बल्कि साथ आने की प्रारंभिक सहमति बन चुकी है।

चर्चा तो यहां तक है कि डिप्टी सीएम पद पर भी विमर्श आगे बढ़ चुका है और यह भूमिका बाबूलाल मरांडी या चम्पाई सोरेन में से किसी एक को दी जा सकती है। यह पूरा घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है, जब झारखंड में सत्ता संतुलन बदलने की वास्तविक आवश्यकता नहीं दिखती है।

किसके पास है बहुमत?

झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंन के पास बहुमत सुरक्षित है और असहमति की किसी भी स्थिति में झामुमो अपने दम पर सरकार चला पाने की स्थिति में है। कांग्रेस भी भाजपा को रोकने के लिए बाहर से समर्थन देने की मजबूरी में होगी, लेकिन राजनीति केवल अंकगणित नहीं होती।

यह परिस्थितियों, दबावों और मौके की समझ का खेल भी है। हाल के दिनों में हेमंत सरकार की मुश्किलें बढ़ी हैं क्योंकि विधानसभा चुनाव के दौरान किए गए कई वादे वित्तीय संकट के कारण अधर में लटके हुए हैं। मइयां सम्मान योजना के तहत महिलाओं को 2,500 रुपये प्रतिमाह देने और धान का समर्थन मूल्य बढ़ाकर 3,200 रुपये प्रति क्विंटल करने के वादे को पूरा करने में सरकार को दिक्कत आ रही है।

केंद्र से पर्याप्त निधि के बिना इन्हें पूरा करना कठिन है। ऐसे में भाजपा से निकटता झामुमो के लिए व्यावहारिक विकल्प के रूप में सामने आ सकती है। दूसरी ओर भाजपा भी अपने राजनीतिक समीकरण दुरुस्त करने के दौर से गुजर रही है। विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद पार्टी का आंतरिक आकलन है कि मौजूदा राजनीतिक संतुलन में लौटना आसान नहीं होगा।

भाजपा की आदिवासी समाज में पकड़ कमजोर हुई है और राजनीतिक स्पेस भी सिकुड़ता दिख रहा है। ऐसे समय में झामुमो के साथ संभावित तालमेल भाजपा को नई ताकत दे सकता है। कम से कम यह संदेश तो अवश्य जाएगा कि पार्टी राज्य की प्रमुख सामाजिक श्रेणियों के साथ संवाद और साझेदारी के लिए तैयार है।

भाजपा के साथ सकारात्मक रिश्ते की चर्चा को हवा इससे भी मिलती दिख रही है कि झारखंड की राजनीति में अरसे से दो विपरीत ध्रुव माने जाने वाले हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी पिछले कुछ महीनों से असामान्य रूप से शांत हैं। न कोई तीखा हमला, न तीव्र आरोप। दोनों की चुप्पी ने राजनीतिक प्रेक्षकों को ज्यादा सजग कर दिया है।

किस ओर मुड़ेगी झारखंड की राजनीति

राजनीति में चुप्पी अक्सर संकेतों की भाषा होती है। यह रणनीतिक संयम का संकेत भी हो सकती है। जाहिर है, झारखंड की राजनीति उस मोड़ पर खड़ी है, जहां किसी भी क्षण नया गठबंधन, नई दिशा और नए शक्ति-संतुलन की घोषणा हो सकती है। यह केवल सत्ता परिवर्तन का मामला नहीं, बल्कि राज्य की सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों के समाधान की दिशा में भी बड़ा कदम बन सकता है। फिलहाल शीर्ष स्तर पर चर्चा तेज है और परिवर्तन की आहट भी साफ सुनाई देने लगी है।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img
- Advertisment -spot_img
- Advertisment -spot_img
- Advertisment -spot_img

Most Popular