एक अनार सौ बीमार

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एस.एन.वर्मा
मो.7084669136

2024 के आम चुनाव में विरोधी पार्टियों में कई दावेदार है प्रधानमंत्री पद के लिये पर मोदी के अखिल भारतीय अपील के आगे सभी बौने है। दूसरे दावेदारों का प्रभाव सिर्फ उनके राज्य तक ही सीमित है। कोई दूसरे को यह पद देने के लिये तैयार नहीं है।
महाराष्ट्र सरकार का पतन, शिवसेना का विभाजन बिहार में एनडीए सरकार का पतन विरोध पक्ष में नई आशायें अंकुरित कर दिया है महाराष्ट्र और बिहार मिलाकर लोकसभा की 88 सीटे है जो सत्ताधारी और विपक्ष के लिये अहम हैं। नितीश ने भाजपा का साथ छोड़ विरोध पक्ष को पकड़ कर लिया और यह बताने में लगे है कि भाजपा दोस्तविहीन है। हकीकत यह है कि 2019 से और बाद में भाजपा ने पंजाब में शिरोमनी आकाली दल महाराष्ट्र में शिवसेना और अब बिहार में जेडीयू का साथ खो दिया है। पर सबके बावजूद क्या विरोधी पार्टियों प्रधानमंत्री के पद के लिये एक हो सकेंगी। अगर एक हो भी जाये तो क्या मोदी के कद का कोई उम्मीदवार खड़ा कर सकेगी। उनके पास राष्ट्रीय छवी वाला कोई नेता नही है। नीतीश की खन्डित लोकप्रियता बिहार तक ही सीमित है।
कांग्रेंस तो लगातार नीचे खिसकती जा रही है। दूसरे विरोधी नेता ममता, केजरीवाल, चन्द्रशेखर राव, शरद पवार में महात्वाकांक्षा तो है पर इनका प्रभाव केवल उनके राज्यों तक ही समिति है। पर सभी किसी दूसरे को जगह देने के लिये तैयार नहीं दिखते है। इनकी धारणा है कि चुनाव के पहले किसी को प्रोजेक्ट करना या चुनाव के पहले गठबन्धन बनाना उल्टा असर डालेगा। हम लोग मोदी के जाल में फंस जायेगे। विरोध पक्ष के पास कोई भी राष्ट्रीयस्तर का नेता नही है जो मोदी की बराबरी कर सकें।
जीतन मांझी के थोड़े समय को छोड़ कर नितश 2005 से बिहार के मुख्यमंत्री है। विचारधारा में समाजवादी है और बिहार में गवर्नेस का उनका अच्छा रिकार्ड है। तटस्थ दृष्टिकोण के नीतीश ने बिहार में जातिसमीकरण को अपने पक्ष में अच्छी तरह से साधा है। हवा का रूख भांपने में माहिर है इसीलिये जब तब दलों की दोस्ती बदलते रहे है। इसी के बल पर अल्पमत में रहते हुये भी 14 साल से बिहार के मुख्यमंत्री बने हुये है। प्लस प्वाइन्ट यह है कि उन पर भ्रष्टाचार का कोई छींटा नही है। पर बार-बार दोस्ती बदलते रहने से उनमें लोग विश्वसनीयता की कमी देखते है। ममता और केजरीवाल ने नितीश के इस कदम पर चुप्पी ओढ़ रक्खी है जो कुछ इशारे करती है। गांधी परिवार भी नितीश के नये बदलाव पर खामोश है। सिर्फ शरद पवार ने तारीफ की है इसलिये की भाजपा विरोध को तोड़ने मे लगी है इसे लेकर डीएमके तेलंगाना, राष्ट्र समिथा उत्साहित है। पूर्व प्रधानमंत्री देव गौड़ा ने भी पूर्व में कई दलों के मिलकर बने जनता दल की याद दिलाई है। कहा है जनता दल परिवार ने तीन प्रधानमंत्री दिये है। कोई नौजवान प्रधानमंत्री का बनाया जाना अच्छा विकल्प होगा। सब खयाली खिचडी पका रहे है। वैसे देव गौड़ा, गुजराल, एक्सीडेन्टल प्रधानमंत्री रहे है। नितीश कह रहे है उन्हें प्रधानमंत्री का चाह नही है। जबकि उनके चेले चपाटी और कुछ छोटी मोटी पार्टियों उनका नाम चाल रहे है। तेजस्वी कह रहे है अगर मोदी प्रधानमंत्री बन सकते है तो नितीश क्यों नही टीएमसी ममता का नाम बढ़ाने में लगी है। हर एक के अपने अपने ख्वाब है। महात्वाकाक्षा बुरी चीज नहीं है हर योग्य आदमी में होती है और रखनी भी चाहिये। पर महात्वाकांक्षा रेशनल होनी चाहिये। लालच और महात्वाकांक्षा का फर्क तो सभी जीनते है।
कांग्रेस ममता, पवार, केसीआर सभी कहते है सभी विरोधी दल के एक होना चाहिये पर इसके आगे एका के लिये कोई ठोस कदम नही उठा रहा है सिर्फ बयानबाज चल रही है। पश्चिम बंगाल की विधानसभा में चुनाव का करिश्मा उनके सर चढ़ कर बोल रहा है। इनके यहां पर 42 लोकसभा सीट है, सोचती है कुछ और सीट दूसरी जगहों से मिल जायेगी। कांग्रेस का ग्राफ लगातार नीचे जा रहा है उसका फायदा उन्हें मिल सकता है। यह सब सोच ममता अपने को सबसे आगे करने में लगी है। जहां तक केसीआर का सवाल है उनके पास 17 सीटे है वह सिर्फ विरोधी पार्टियों को एक करने में कुछ अतिरिक्त जोर लगा सकते है। इन सबमें सबसे पवार कद्दावर नेता है, पर उम्र में काफी बड़े हो गये है और अपना स्वर्णा काल बिता चुके है। उनकी सोच है बिना कांग्रेस को लिये विरोधी पार्टियों का एका ब्योहरिक नही होगा।
कांग्रेस भ्रमजाल में है। राहुल सोचते है परिवार को सदस्य को पावर में वापस आना चाहिये। उन्हें कांग्रेस प्रेसिडेन्ट बनाने की मुहिम कब से चल रही है। अगर वे प्रेसिडेन्ट बनते है तो उनके पार्टी का दावा प्रधानमंत्री के लिये होगा पर राहुल व्यक्तिगत रूप से मोदी के भिड़न्त से किनाराकशी कभी चाहते है।
कांग्रेस पार्टी राष्ट्रपति और उम्मीदवार के चयन में मुखर नही रही है। क्योंकि क्षेत्रीय पार्टियों कांग्रेस को उभरने नही दी। कांग्रेस यूपीए को फिर से जिन्दा करना चाहती है और नान कांग्रेस नेता को समर्थन दे सकती है। पर ममता का आक्रमक रूख से गोवा चुनाव में घुसना और राष्ट्रपति के लिये उम्मीदवार के चयन में उनका विरोध उनके माफिक कुछ भी असर नही पैदा कर सका। पर ममता पवार और नीतीश का सामना सशक्त ढंग से कर सकती है। नीतीश ने अपने बयान से ममता को सन्देश भी इशारे से पहुचाया है कि वह प्रधानमंत्री पद के दावेदार नही है। यह विरोधाभास लगता है
कांग्रेस का एक घड़ा सोचता है कांग्रेस जरूरत से ज्यादा पार्टी प्रेसिडेन्ट चुनने में व्यस्त है जबकि उसे 2024 चुनाव के लिये विरोधी पार्टियों को एकजुट करने में मेहनत करनी चाहिये। यह सब मोदी के लाभकारी होगा। वह अडिग और खामेशी के साथ अपने और पार्टी के तयशुदा रणनीति पर चल रहे है। कार्यकर्ता अपने हिस्से के काम को अन्जाम देने में लगे है। लोग लाख कहे 2024 मोदी के लिये मुशकिल होगा। पर हालात ऐसा नही कहते। बिहार में कुछ क्षति हो सकती है तो दूसरी जगहों से पूरी भी हो सकती है। फिर कांग्रेेस के खाली स्पेस में सबको कुछ न कुछ मिलेगा ऐसी सम्भावना है।
कांग्रेस कन्याकुमारी से कश्मीर तक सात सितम्बर से पदयात्रा शुरू करने वाली है। उसकी धारणा है इससे कुछ चीजें उसके पक्ष में मुडे़गी और उसे वन्छित लाभ मिलेगा। वक्त ही बतायेगा वैसे कोई खास सम्भावना नहीं दिखती।
हालाकि बिहार की घटना से नान बीजेपी एलायन्स उत्साहित है महात्वाकांक्षा है। केन्दीय रोल पाने के लिये टकराहट है। इसलिये मोदी का रास्ता सुलभ बनता जा रहा है। एक अनार और सौ बिमार का फायदा मिलना तय है।

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