बे नमाजी कभी मोमिन हो ही नहीं सकता – मौलाना अख़्तर अब्बास “जौन”

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अवधनामा संवाददाता

मोमिन सिर्फ वही है जो सिर्फ अल्लाह पर भरोसा करता है
बाराबंकी । अमीरल मोमनीन की एक झलक पर भी अगर ग़ौर कर लिया जाए तो हर निशानियों में परवरदिगार नज़र आए, ईमान में इजाफ़ा हो जाए । मुनाफ़िक को अगर सारी दुनियां की दौलत भी देती जाए तो भी वह अली से मोहब्बत नहीं कर सकता । जिस्म की हरकत का नाम अमल है,अमल को देखकर इंसान के ईमान का पता चलता है।हर वो अमल जो अल्लाह तक पहुंचाए वही इबादत है । जो जिक्रे परवरदिगार सुनकर  बाग़ बाग़ हो जाता है क़ुरआन की नज़र में वही मुत्तक़ी व ईमान वाला कहलाता है।यह बात दयानन्द नगर स्थित अली कालोनी में डा0 शारिब मौरानवी के अजाखाने पर सालाना मजलिस को ख़िताब करते हुए आली जनाब मौलाना अख़्तर अब्बास ” जौन  साहब ने  कही। मौलाना ने यह भी कहा किआखेरत को कामयाब बनाना चाहते हो तो अमल व ईमान के मैदान में बाकी रहो। जो बाक़ी नहीं रह पाते वही आखेरत में घाटा उठाते हैं ।जिस तरह अहलेबैत व कुरआन अलग नही हो सकते,उसी तरह ईमान और अमल  भी अलग नही हो सकते । ऐसे मोमिन बनो जो हक़ के आईने में सही करार पाये ताकि आख़ेरत बखैर  हो जाए। मोमिन सिर्फ वही है जो सिर्फ अल्लाह पर भरोसा करता है । बे नमाजी कभी मोमिन हो ही नहीं सकता । आखिर में शहीदाने करबला व असीराने करबला के मसायब पेश किए जिसे सुनकर सभी रोने लगे ।मजलिस का आग़ाज तिलावत ए कलाम ए पाक से मौलाना हिलाल अब्बास साहब ने किया ।मजलिस से पहले डॉक्टर रज़ा मौरानवी ने पढा- ग़मे शह ने दिले मोमिन पे जब पैगम्बरी की है , तखय्युल ने समां बांधा ज़बां ने ज़ाकिरी की है । अजमल किन्तूरी ने पढा- जिसको भी आले मोहम्मद से मोहब्बत हो जाए । उसकी तकदीर में भी कौसरो  जन्नत  हो जाए । डाक्टर मुहिब रिज़वी ने पढ़ा-पलकों को ग़मे शाह से नम करते है   , खुशियों को सिपुर्दे यदे ग़म करते हैं । जो छोड़ के सजदों को  करे ज़िक्रे शह, वो मक़सद ए सरवर पे सितम करते हैं। आरिज  जरगांवी ने पढा – ग़मे शब्बीर में ही ज़िन्दगी की शाम हो जाये ,सुकून ए क़ल्ब मिल जाए  मुझे आराम हो जाये। मो0 मेहदी नक़वी ने पढ़ा- उनके आने से हमे ये फ़ायदा हो जायेगा , कौन हक़ है कौन बातिल फ़ैसला हो जायेगा । हाजीसरवर अली करबलाई  ने पढ़ा-कितनी  क़ुरबत  है  खुदा   से   तेरी  मेरे   मौला , हमने  महफिल  से  तेरी   खुल्द  का  रस्ता  पाया । अमान  लखनवी ने पढा -दीन में हम आप गर अपनी चलाना छोड़ दें  , कितने शायर कितने ज़ाकिर अपना धन्धा छोड़ दें । बादे मजलिस अता मौरानवी व  उनके साथियों ने नौहा ख्वानी व सीनाज़नी की ।बानिये मजलिस ने सभी का शुक्रिया अदा किया।
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