अवधनामा संवाददाता
मसौली बाराबंकी। ग्राम हरिपुरवा में चल रही साप्ताहिक संगीतमयी श्री राम कथा के तीसरे दिन कथा व्यास महेन्द्र मृदुल ने धनुष महोत्सव की कथा को सुनाते हुए कहा कि जो व्यक्ति शक्ति व पराक्रम से परिपूर्ण होता है वह अपने बल का बखान नही करता है।
उन्होंने कहा कि जिस धनुष को बड़े बड़े बलशाली राजाओं ने अभिमान बस बलपूर्वक उठाना चाहा लेकिन उठा न पाए उस धनुष को श्री राघव ने गुरु कृपा से क्षण मात्र में उठा लिया और उसका भंजन कर दिया। धनुष उठाने के बाद श्री राघव को कोई हर्ष या अहंकार न हुआ बल्कि उनको दुख हुआ क्योंकि धनुष श्री दधीच जी की अस्थियों से निर्मीत था जो संबंध में राम जी के बाबा थे। लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें। काहुँ न लखा देख सबु ठाढ़ें। मृदुल जी ने कहा कि राम जी की विनम्रता उनके विजय का प्रमुख अंग है। जो विनम्रता से कार्य सिद्ध होता है वह कार्य अधिक क्रोध व आवेश में नही हो सकता।
मृदुल जी ने कहा कि परशुराम जी के क्रोध करने पर राम जी बड़ी विनम्रता से वार्ता करते है जबकि लक्ष्मण उग्र स्वभाव से वार्ता करते है, जिससे परशुराम का क्रोध बढ़ता जाता है। उस बढ़े हुए क्रोध को राम जी ने अपनी विनम्रता से ही जीता और अपने अवतारी होने का जब बोध कराया तो जिन परशुराम जी ने अधिक क्रोध दिखाया वे ही अपने अपराध की क्षमा याचना करके और राघव तथा माता जानकी को आशीर्वाद देकर पुनः अपने गंतव्य को चले गए। जय सीता जय लखन, जय राघव सुखकंद, परशुराम वन को गए हुआ पूर्ण आनन्द। भारी संख्या में उपस्थित भक्त गण कथा को श्रवण कर आनंदित हो आरती व प्रसाद ग्रहण किया।
ग्राम के समस्त आयोजक भक्तो ने कथामण्डप को सुंदर साज सज्जा से अलंकृत किया।