ऐतिहासिक धरोहरों की दुर्दशा

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अवधनामा संवाददाता

जहाॅं पर जो जैसा है, वैसा ही रहने दो, बस ऊपर से पुताई कर दो

लखनऊ|  आसिफ़ी मस्जिद ईद-उल-अज़हा की नमाज़ अदा करने गया तो मस्जिद और इमामबाड़े की ऊपरी नई पुताई देख कर और उसकी असली दुर्गत देख कर दिल रोया कि जीर्णोधार के नाम पर कैसे बेवक़ूफ़ बनाया जा रहा है। आसिफ़ी मस्जिद और इमामबाड़े पर G-20 के आगंतुकों के दर्शन हेतु कराई गई पुताई से इमारत का दृश्य दूर से जितना आकर्षक लग रहा है, वास्तव में वो उससे कहीं ज़्यादा भयावह है, हुसैनाबाद ट्रस्ट की इमारतों के साथ जिस तरह खिलवाड़ हो रहा है ये अति अति निंदनीय है, इमामबाड़े और मस्जिद पर मौजूद वास्तुकला के अतुल्य एवं बेजोड़ नमूनों को ऐसे मिटाया जा रहा है जैसे कोई बात ही नहीं, जो पुताई हड़बड़ हड़बड़ में हुई भी है तो सिर्फ़ सामने की तरफ़ से ही, न मस्जिद के अंदर हुई है न इमामबाड़े के पीछे वाले भाग में, क्योंकि न मस्जिद के अंदर पर्यटक जाते हैं, न इमामबाड़े के पीछे वाले भाग की ओर, यूंही हम रोज़ के रोज़ ट्रस्ट की ज़मीनें गंवाते जा रहे हैं, ट्रस्ट की ज़मीन गोल दरवाज़े के अंदर तक है, इन सारी ज़मीनों का किराया कितना आता है, या आता भी है या नहीं, इस बात की जानकारी किसी को नहीं है, तमाम सरकारों में इस ट्रस्ट को बुरी तरह से लूटा गया है, पिछले कुछ सालों में ट्रस्ट की ज़मीन पर अवैध रूप से कितने धार्मिक स्थल भी बन गए हैं जो कि दिन प्रतिदिन काफ़ी विख्यात भी होते जा रहे हैं, नेहरू युवा केन्द्र और विद्युत उपकरण ग्रह भी सरकारों ने इसी निजी ज़मीन पर बनाए, जिससे आसिफ़ी मस्जिद अब हुसैनबाद की सड़क से भी नहीं दिखती है (इसका भी फ़ोटो संलग्न कर रहा हूं), हैरत तो ये है कि क़ौम के ज़िम्मेदार, नेता, वरिष्ठ लोग और विद्वान वर्ग हुसैनाबाद एवं संबंधित ट्रस्ट की मस्जिदों, करबलाओं, इमामबाड़ों, मक़बरों को लुटता मिटता देख मूक दर्शक बना है जैसे क़ौमी मिल्कियत से उसे कोई ग़रज़ ही नहीं, समुदाय के अधिकतर लोग अपने व्यक्तिगत और निजी स्वार्थों के कारणों से इन मामलों पर नहीं बोल रहे हैं, आने वाले समय में हालात और बद से बदतर होने वाले हैं

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