देखा एक ख़्वाब तो यह सिलसिले हुए

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Waqar Rizvi, Avadhnama

18 साल पहले एक ऐसे अख़बार का ख़्वाब देखा जो सिफऱ् अवाम की आवाज़ और उसकी तरजुमान हो। यह मुश्किल ही नहीं नामुमकिन अमल था लेकिन पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. कलाम की कही बात ने राह दिखायी कि जो ख़्वाब ख्ुाली आंखों से देखे जाते हैं वह ज़रूर पूरे होते हैं। इस ख़्वाब की ताबीर में अवधनामा वजूद में आया जिसका मक़सद था समाज को जोड़ा जाये और समाज को तोडऩे वालों का डटकर मुक़ाबला किया जाये, यह गऱीब, मज़दूर, बेसहारा, मज़लूम, लाचार की आवाज़ बने और आपसी सौहार्द, नेशनल इण्टीगिरेशन, अमन, इत्तेहाद, दोस्ती, रवादारी, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण आदि के लिये कार्य करे।

इसी मक़सद को हासिल करने के लिये अवधनामा ने अख़बार के साथ साथ अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस, शिक्षक दिवस, एजूकेशनल डे, अन्तर्राष्ट्रीय मानवधिकार दिवस एवं अन्तर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर प्रोग्राम करके उन लोगों की खि़दमत मे एज़ाज़ पेश किया जो अपनी बेमिस्ल खि़दमात से दूसरों के लिये नमुन-ए-अमल हैं। इतने सालों में अवधनामा बस निष्पक्ष ही नहीं रह पाया और शायद कभी रह भी न पाये क्योंकि अगर हम भी निष्पक्ष हो जाते तो गऱीब, मज़दूर, मज़लूम, बेसहारा का पक्षधर कौन होगा।

बरसों पहले देखे गये इस ख़्वाब का सिलसिला यहीं ख़त्म नहीं हुआ, इन सालों में अवधनामा नेे एक ”अवधनामा एजूकेशनल एण्ड चैरिटेबिल ट्रस्ट की भी स्थापना की जिससे किसी की भी पढ़ाई उसके फ़ीस के पैसे न होने की बिना पर अधूरी न रह जाये, इस ट्रस्ट की ख़ास बात यह रही कि इसनें कभी भी किसी से किसी भी तरह की कोई माली मदद नहीं ली जो कुछ भी किया अपने निजी सीमित संसाधनों से किया। आज लगभग 200 से अधिक बच्चों के पूरे साल स्कूल की फ़ीस इस ट्रस्ट द्वारा दी जा चुकी है यही नहीं अवधनामा को यह भी सौभाग्य प्राप्त है कि 2014 में जब कश्मीर में भयंकर बाढ़ आयी और शहर व गांव पानी में डूब गये, तब न वहां बिजली थी और न कुछ खाने को, वह पानी में थे लेकिन पीने के पानी को तरस रहे थे ऐसे समय में अवधनामा की टीम ख़ुद वहां गयी और अपने सीमित संसाधनों से वहां उनके लिये खाने का इंतेज़ाम, पानी का इंतेज़ाम, रौशनी का इंतेज़ाम और सर्दी से बचने के लिये कम्बल का इंतेज़ाम अपनी हैसियत के मुमाबिक़ कराने की कोशिश की।

आज मीडिया हाउस के सबसे खऱाब दिन हैं फिर भी इस ट्रस्ट की यही कोशिश है कि किसी की भी पढ़ाई फ़ीस न देने की बिना पर रूकने न पाये।

इन सालों में अवधनामा ने एक उर्दू राईटर्स फ़ोरम की स्थापना की जिससे अदबी सरगरमियां बनी रहें एक इंटेलेक्चुअल फ़ोरम की स्थापना की जिससे समाज जागरूक रहे, एक अमन कमेटी की स्थापना की जिससे शहर को फ़साद से बचाया जा सके और आपसी सौहार्द बना रहे। एक उर्दू दोस्त अंजुमन की स्थापना की जिससे जो लोग उर्दू नहीं जानते लेकिन उर्दू प्रेमी हैं, उन्हें आपस में जोड़ा जाये।

अवधनामा उर्दू में पेज 3 का कंसेप्ट लाया, उर्दू में लाईव रिपोर्टिगं को अपनाया अनगिनत विशेषांक प्रकाशित किये और साहित्यकारों के निधन पर शोक सभा का आयोजन कराया। अख़बार के प्रमोशन में भी अवधनामा ने अपनी अलग जगह बनाई जहां किसी ने बर्तन बाटे तो किसी ने थर्मस वहीं अवधनामा ने अपने पढऩे वालों को देश के सभी तीर्थस्थानों पर ले गया और उमराह और जिय़ारत पर जाने का मौक़ा भी फऱाहम किया…

अवधनामा का यह कामयाबी भरा सफऱ किसी एक की मेहनत नहीं बल्कि आफि़स के इंचार्च शकील रिज़वी और उनकी पूरी टीम की कड़ी मेहनत का नतीजा है जिन्होंने नौकरी को नौकरी नहीं बल्कि एक मिशन समझकर काम किया, लेकिन अवधनामा की सोच को तब्दील करने का श्रेय आलिम नक़वी को जाता है जिन्होंने अपने तर्जुबे और अपनी वुसअते नजऱ से अवधनामा का रूख़ ही बदल दिया, और यहीं से शुरू हुआ अवधनामा के कामयाबी का सिलसिला।

इस सफऱ में मुख़्तसर ही सही लेकिन मरहूम आबिद सुहैल, मुस्तफ़ा ज़ैदी, शहनवाज़ क़ुरैशी, रिज़वान फ़ारूक़ी, अहसन अयूबी, उबैदुल्ला नासिर, शबाहत हुसैन विजेता, उत्कर्ष सिन्हा जैसे बड़े सहाफिय़ों के योगदान को हम कभी नजऱअंदाज़ नहीं कर सकते, लेकिन अवधनामा को फ़र्श से अर्श तक पहुंचाने में मोहतरम हफ़ीज़ नोमानी का नाम सरे वरक़ है वहीं एक क़लम से सिलसिलेवार जिनकी 70 किश्ते होने को आ गयी, लिखे जाने वाले आयतुल्लाह हमीदुल हसन साहब के मज़मून भी हैं जिन्होंने पूरी उर्दू दुनियां में अवधनामा की शिनाख़्त करायी, हमें इनके तआवुन और दोस्ती पर फख़़्र है यहां पर हम मोहतरम आरिफ़ नक़वी का नाम क्योंकर भूल सकते हैं जो इन्टरनेशनल मीडिया और अवाम में अवधनामा की पहचान हैं इसके साथ मौलाना अब्बास इरशाद साहब और डा. हैदर मेंहदी के उस एहसान को हम कभी नहीं भुला सकते

जब अवधनामा के सबसे मुश्किल दौर में उन्होंने हमारा साथ दिया, हमारे मस्जिद के साथी जिनके लीडर आरिफ़ हैदर ज़ैदी थे को कभी फऱामोश नहीं किया जा सकता क्योंकि वह इसकी बुनियाद हैं उन सब ने जगह जगह स्टाल लगाकर अवधनामा की मेम्बरशिप बनायी, अवधनामा की हमारे नाम के साथ शिनाक़्त करायी। इनसब के बावजूद हम कभी अदब का हिस्सा न बनते अगर हमारी जि़न्दगी में प्रोफ़ेसर शारिब रूदौलवी न होते और तमाम बड़ी महफि़लों में न पहचाने जाते अगर प्रोफ़ेसर साबरा हबीब की सरपरस्ती हमें न मिली होती। इसी के साथ तहक़ीक़ी मज़मून के लिये अवधनामा हमेशा मौलाना दुरूल हसन साहब और मज़हबी मज़मून के लिये मौलाना जाबिर जौरासी साहब का हमेशा शुक्रग़ुज़ार रहेगा।

घर के अन्दर जहां हर मुश्किल वक़्त पर शरीक-ए-हयात तक़दीस फ़ातिमा ने मुश्किल कुशाई की वहीं घर के बाहर बेपनाह मोहब्बत करने वाले पाठकों के साथ हुज्जतुल इस्लाम मौलाना मुर्तज़ा पारवी साहब, इक़तेदार हुसैन फ़ारूक़ी साहब, हैदर नवाब जाफऱी साहब, डा. सरवत तक़ी, मुजाहिद सैयद, निहाल चौधरी साहब, प्रोफ़ेसर जमाल नुसरत, डा. असद अब्बास, एच.एम. यासीन, नज्म फ़ारूक़ी जैसे तमाम अफऱाद ने हमारी हमेशा हौसला अफज़़ाई की। हम इन सब के बेहद शुक्रग़ुज़ार व ममनून हैं। इन तमाम अफऱाद की बेपनाह मोहब्ब्तों के बावजूद हमारी मक़बूलियत का सेहरा हमारे मुक़ालेफ़ीन के ही सर है उन्होंने अगर इतनी शिददत से दिल लगाकर मुक़ालेफ़त नाकि होती तो हमें यह मुक़ाम कभी हासिल नहीं होता जो आज है।

इस सब की कड़ी मेहनत का नतीजा आप जैसे बेपनाह मोहब्बत करने वाले पाठक मिले। हम आज भी इसी ख़्वाब को अमली सूरत देने की जददोजहद में लगे हैं कि हमारी सफ़ो में इत्तेहाद, मुल्क में अमन, दोस्ती, भाईचारा और यकजहती की फिज़़ा हर तब्कें और मिल्लत के बीच क़ायम रहे और हम फिर वैसे ही पूरी दुनियां में अपने इज़्ज़तो व़क़ार के लिये जाने पहचाने जायें।

आओ मिलकर इंकि़लाब-ए-ताज़ह तर पैदा करें
दहर पर इस तरह छा जायें कि सब देखा करें

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