नीतीश की हताशा

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एस. एन. वर्मा

कभी नीतीश कुमार को सुशासन बाबू कहा जाता था। वह राजनीति में पार्टियां तो बदलते रहे पर गवर्नेस को लेकर हमेशा सतर्क रहे। जब से भाजपा का साथ छोड़ा है तब से काफी असहज दिख रहे है। लालू की पार्टी से उनका गंठजोड़ इसी हताशा का नतीजा है। क्योंकि लालू राज में बिहार की जो दुर्गति हुई थी, कानून व्यवस्था जिस तर छिन्न भिन्न हुई थी उसे वह पटरी पर लाये थे। भाजपा का डर उन्हें इतना सता रहा है कि पहले तो वो विपक्षी एकता पर सबसे मिल रहे है। कहते है हम प्रधानमंत्री की दौर में नहीं है। पर जानते है उन्हें विपक्ष इस होड़ में आगे नहीं रक्खेगा। उधर तेजस्वी नीतीश को जल्दी से जल्दी बिहार से हटा केन्द्र में भेजना चाहते है जिससे मुख्यमंत्री की कुर्सी उन्हें जल्दी से जल्दी मिल जाये। भाजपा को उच्च जातियो का ज्यादा समर्थन प्राप्त है उसने पिछड़ी जातियो में भी पैठ बना रक्खी है इस ओर प्रयास भी जारी है।
नीतीश सवर्ण जातियांे में पैठ बनाने के लिये सवर्ण जाति के माफिया को जो एक आईएएस की हत्या के जुर्म में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहा था उसे छुड़ा कर उसकी हमदर्दी और सर्पोर्ट प्राप्त करने के लिये जेल नियमों में सुधार कर जेल से बाहर निकाल लिया। हालाकि कि इससे अन्य कैदियो को भी लाभ मिला है। पर आम लोगो के दिमाग में यह प्रश्न बार बार कुरेद रहा है कि इस कदम से जनहित को क्या लाभ मिलेगा। हालाकि सभी राजनैतिक माफिया डान का इस्तेमाल चुनाव जीतने के लिये करते आ रहे है। पर इस हद तक आगे बढ़ कर पहले जेल कानून में संशोधन करना फिर आनन्द मोहन को रिहा करवा देना तो हद दर्जे के राजनैतिक और नैतिक चरित्र का हनन ही कहा जायेगा। यह कह कर इससे मुक्त नहीं हुआ जा सकता कि आज की राजनीति में सभी दल माफिया डान का सहारा लेते रहते है। पर इस तरह अन्धा हो के सहारा लेना तो घोर हताशा का परिचालक है।
हर राजनीतिक पार्टी पर इसके उपयोग को लेकर छीटें है पर नीतीश और उनकी पार्टी पर तो यह गहरा दाग है। क्या नीतीश अब सुशासन बाबू से हट कर कुशासन बाबू बनना चाहते है। अभी तक जिस तरह का उनका आचरण रहा है जैसा कि उनका स्वभाव है उसे देखते हुये कुर्सी बचाये रखने की लालच में इस तरह नीचे उतरना आश्चर्य से ज्यादा अफसोस पैदा करता है। राजनीति से उच्च नैतिकता वाले कुछ गिने चुने नेता है जिनमें नीतीश भी शामिल है पर अब तो उन्होनंे इस कारनामें से अपनी छवि खराब कर ली है। एक संस्कार वालो, सचरित्र इन्सान का सत्ता के पीछे इस तरह फिसल जाना संवेदनशील नागरिको के दिल में अफसोस पैदा करता है। नीतीश के कारनामे से यह शेर याद आता है।
क़द्रदानो की तबियत का आजब रंग है आज।
बुलबुलो को ये हसरत है कि हम उल्लू न हुये।।
क्षमा करे नीतीश जी आस्था पर चोट है।

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