अवधनामा संवाददाता
कथाकार रणेंद को प्रेमचंद्र स्मृति सम्मान से किया गया सम्मानित
बांदा। शहर के हार्पर क्लब सभागार में रविवार को हिंदी के चर्चित कथाकार रणेंद् को 14वें प्रेमचंद स्मृति कथा सम्मान से सम्मानित किया गया। उनके उपन्यास ‘गूंगी रूलाई का कोरस’ के लिए उन्हें यह सम्मान प्रदान किया गया । रणेंद् को मानपत्र, अंगवस्त्र के साथ 21000 रूपये भी प्रदान किए गए।
इस अवसर पर ’ देवेंद्र नाथ खरे व्याख्यानमाला’ का आयोजन भी किया गया बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रहे अवधेश प्रधान ने ’ वेदव्यास की द्रोपदी’ विषय पर अपना सारगर्भित वक्तव्य दिया। डा. प्रधान ने अपने वक्तव्य के प्रारंभ में कहा कि हमारी सबसे बड़ी संपत्ति भाषा है जिसकी रक्षा जनता ने की है ,और ऐसा उदाहरण किसी और देश में नहीं मिलता जहां इतनी भाषाओं को बचा कर रखा गया है। महाभारत के विस्तार की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यह बाल्मीकि रामायण से 4 गुना विस्तार लिए हुए है जिसमें 1 लाख श्लोक हैं और यह एक ऐसी रचना है जिसके भीतर से हजारों रचनाएं निकलती हैं। महाभारत में द्रोपदी की भूमिका का विश्लेषण करते हुए उन्होंने कहा की द्रोपदी तेज की प्रतिनिधि है । वह कृष्णा है जिसे कोई भी निर्णय लेने में तनिक भी देर नहीं लगती।
अवधेश प्रधान ने कहा यह आश्चर्यजनक है की महाभारत का पात्र कर्ण जो सबसे अधिक अपमानित हुआ था वही द्रोपदी के अपमान का सबसे बड़ा कारण बनता है । कर्ण कहता है की द्रोपदी वेश्या है उसका कोई अधिकार नहीं है उसे किसी भी दशा में चाहे वह रजस्वला ही हो घसीट कर लाया जा सकता है। महाभारत में सबसे अधिक बोलने वाली दूसरी स्त्री द्रोपदी के अलावा कोई नहीं है और जहां वह नहीं बोलती वहां उसके केश बोलते हैं और उनके केशों की चित्कार आज तक विद्यमान है। इसके पहले विषय प्रवर्तन करते हुए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफेसर गरिमा श्रीवास्तव ने कहा क्षमा ना करने का भाष्य द्रोपदी का है यदि कोई बारंबार अपराध करता है तो उसे क्षमा नहीं किया जाना चाहिए। द्रोपदी चुप्पियों का पाठ है तथा द्रोपदी आज के संबंध में ज्यादा प्रासंगिक है।
हिंदी के जाने-माने कथाकार और पूर्व आईपीएस एवं कुलपति रहे विभूति नारायण राय ने बांदा से अपने संबंधों को ताजा करते हुए कहा की हमारी सरकार जैसा नैरेटिव गढ़ रही है हालिया घटनाएं उसी का परिणाम है।
वरिष्ठ कथाकार और नाटककार असगर वजाहत ने अपने वक्तव्य की शुरुआत एक सूफी कथा से करते हुए कहा की संवेदनशीलता के बिना कोई भी साहित्य निरर्थक है । साहित्य और कला ही संवेदनशीलता की वाहक हैं इससे बड़ा कोई और विचार भी नहीं उन्होंने अपने तुलसीदास नाटक की चर्चा करते हुए कहा कि तुलसीदास में रामचरितमानस के रूप में ज्ञान से उस जमाने में लगे संस्कृत के ताले को खोला । उन्होंने कहा कि पुराने साहित्य के प्रति एक वैज्ञानिक और संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। बनारस के डाक्टर संजय श्रीवास्तव ने सभी का आभार ज्ञापन किया।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राध्यापक जनार्दन ने नरेंद्र के कथा लेखन पर लंबी बात की।देवेंद्र नाथ खरे की पत्नी शांति खरे ने अपने पति के योगदान की चर्चा करते हुए स्वयं को साहित्य के सरोकारों से जोड़ा। कार्यक्रम के प्रारंभ में अमिताभ खरे ने अतिथियों का स्वागत किया एवं प्रेमचंद सम्मान के संयोजक मयंक खरे ने इस सम्मान की परंपरा और प्रासंगिकता पर बातें रखीं। सुधीर सिंह ने कार्यक्रम का संचालन किया । इस अवसर पर नगर के गण्यमान्य लेखक रचनाकार और विभिन्न वर्गों के लोग बड़ी संख्या में उपस्थित थे।