अवधनामा संवाददाता
नतीजा मिलीभगत का या फिर व्यापारियों में नही है विभागीय डर
बाराबंकी। बाराबंकी। सूप बोले सूप बोले चलनी का बोले… लेकिन मिलीभगत और आपसी साठ गांठ सारे रास्ते आसान कर देती है। उन्हे भी उंगली उठाने का मौका दे देती है जो अपने पैरों पर चंद कदम बिना इजाजत के चल भी नहीं सकते। कुछ ऐसा ही हाल है जिले के एफएसडीए विभाग का, जिसने एक मांस विक्रेता पर नियमानुसार कार्रवाई की, तो उस विक्रेता ने विभाग को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। उसने बाकायदा राजधानी में बैठे अफसरों को नोटिस जारी कर कार्रवाई पर ही सवालिया निशान खड़ा कर दिया। विक्रेता की यह हिमाकत चर्चा का विषय बनी है।
कुछ ही दिन पहले एफएसडीए ने पीरबटावन स्थित एक मांस बिक्री की दुकान पर छापेमारी की। यहां पर बाइस हजार रूपए से अधिक की कीमत का मांस बिना लिखा पढ़ी के मिला साथ ही अन्य कई कमियां भी मिलीं। दुकान सीज न कर और जिम्मेदार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई न कर सिर्फ बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया और मिला मांस जमीन में दफन करवा दिया गया। हाल फिलहाल अफवाह यह कि मांस विक्रेता ने जमीन में दफन मांस खुदवाकर उसकी बिक्री करवा दी है। वहीं दुकान फिर चलाने के लिए संचालक एफएसडीए में करीबियों के चक्कर काट रहा है। सबसे बड़ा सवाल तो छापेमारी अभियान के थम जाने पर उठ रहा है, एक ओर इस एकमात्र छापेमारी से मांस विक्रेताओ में दहशत का माहौल बन गया था, वहीं अभियान के थम जाने से मांस विक्रेता एफएसडीए की हंसी उड़ाने लगे।
उस पर तुर्रा यह कि अब कार्रवाई के लपेटे में आया मांस विक्रेता विभाग को ही चुनौती दे रहा है। सुनने में आया है कि विक्रेता ने विभाग के दो अधिकारियों की उपस्थिति में हुई कार्रवाई को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। जबकि सभी जानते हैं कि छापेमारी के दौरान विभाग की सहायक आयुक्त द्वितीय प्रियंका सिंह भी मौजूद रहीं। उन्हे शिकायत में मौजूद नहीं दिखाया गया। दूसरे लखनऊ स्थित एफएसडीए के आयुक्त को भेजे गए पत्र में कार्रवाई के तरीको को गलत बताते हुए सारा सामान लिखा पढ़ी में दिखाया है। पत्र पर ध्यान दिया जाए तो विभागीय मिलीभगत साफ जाहिर होती है। कहने का मतलब यह कि एक ओर विभागीय अफसर कार्रवाई का दिखावा करते हैं तो दूसरी ओर लुक छिप कर आरोपी को ही बचने की सारी तरकीब भी बताते हैं। पीरबटावन में कार्रवाई की लपेट में आया मांस विक्रेता अब विभाग को ही चुनौती दे रहा जो अपने आप में कम गंभीर बात नहीं। इसमें कोई संदेह नहीं कि अगर विभागीय कार्रवाई जारी रहती तो नियम कायदे ताख पर रखकर कारोबार कर रहे मांस विक्रेताओ की हिम्मत इतनी न बढ़ती।