अवधनामा संवाददाता
ललितपुर। बढ़ती जनसंख्या का दबाव और विकास की तेज रफ्तार और वन विभाग की लापरवाही वेटलैंड (आर्द्रस्थल) को तेजी से निगल रहा है। विकास की गति से दिनोंदिन नम भूमि की कमी होती जा रही है। देश में अब इसका दुष्प्रभाव भी देखने को मिलने लगा है। हमारे आसपास पशु-पक्षियों और वन्य जीव-जन्तुओं के अलावा पशुओं की प्रजातियाँ लुप्त हो रही हैं। विभिन्न मौसमों में देश के अन्दर प्रवासी पक्षियों के आने की संख्या में भी कमी आई है। वेटलैंड के कम होने का सीधा असर जन-जीवन और वनस्पतियों पर पड़ रहा है। हालात यह हैं कि देश के अधिकांश राज्यों में लगातार वेटलैंड का वजूद खत्म हो रहा है। वेटलैंड की वजह से न सिर्फ पारिस्थितिकी तंत्र बना रहता है बल्कि भूजल भी रिचार्ज होता है। इसके साथ ही अन्य कई प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा भी मिलती है। वेटलैंड क्षेत्र के सिकुडऩे के कारण भूजल कम होता जा रहा है। जिससे आने वाले दिनों में पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ सकता है। हमारे आसपास पशु-पक्षियों और वन्य जीव-जन्तुओं के अलावा पशुओं की प्रजातियाँ लुप्त हो रही हैं। विभिन्न मौसमों में देश के अन्दर प्रवासी पक्षियों के आने की संख्या में भी कमी आई है। वेटलैंड के कम होने का सीधा असर जन-जीवन और वनस्पतियों पर पड़ रहा है। हालात यह हैं कि देश के अधिकांश राज्यों में लगातार वेटलैंड का वजूद खत्म हो रहा है।