केवल चार्जशीट फाइल करना जमानत रद्द करने का आधार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

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केस मजबूत हो तो बेल रोकी जा सकती है

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि केवल चार्जशीट फाइल करना किसी आरोपी की जमानत रद्द करने का आधार नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि अगर चार्जशीट में आरोपी के खिलाफ खास और दमदार केस बनता है तो उसकी डिफॉल्ट बेल रद्द की जा सकती है।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने कहा कि महज चार्जशीट दायर करने से जमानत रद्द नहीं हो सकती, जब तक कि कोर्ट इस बात से संतुष्ट नहीं हो जाता कि आरोपी ने गैरजमानती अपराध किया है और उसके खिलाफ एक मजबूत केस बन रहा है। इसके अलावा दूसरी अदालतों को भी जमानत रद्द करने की याचिका पर विचार करने से नहीं रोका जा सकता है।
आंध्र के पूर्व मंत्री की हत्या के मामले पर की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश के पूर्व मंत्री वाईएस विवेकानंद रेड्डी की हत्या के मामले में एरा गंगी रेड्डी की जमानत रद्द करने से जुड़ी याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। स्ष्ट ने सीबीआई की याचिका पर तेलंगाना हाईकोर्ट को विचार करने का निर्देश भी दिया।
गौरतलब है कि आंध्र प्रदेश के दिवंगत मुख्यमंत्री वाई एस राजशेखर रेड्डी के छोटे भाई और मौजूदा मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी के चाचा विवेकानंद रेड्डी की 15 मार्च, 2019 को पुलिवेंदुला स्थित उनके आवास पर हत्या कर दी गई थी।
5 जनवरी को सुनवाई खत्म हो गई
गांगी रेड्डी की जमानत रद्द करने को लेकर जिरह इसी महीने की पांच तारीख को खत्म हो गई थी। जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने पिछली सुनवाई के दौरान फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाईकोर्ट को यह तय करने का निर्देश दिया है कि केस मैरिट के आधार पर जमानत रद्द की जाए या नहीं।
ऐसे मामले जिनमें उम्र कैद, फांसी या 10 साल से ज्यादा की जेल होती है, उनमें पुलिस को 90 दिनों के भीतर चार्जशीट पेश करनी होती है। अन्य मामलों में ये समय महज 60 दिन होता है। अगर इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर इस तय वक्त में चार्जशीट पेश करने असफल रहता है तो सीआरपीसी धारा 167(2) के तहत किसी भी गिरफ्तार आरोपी को जमानत दी जा सकती है। इसे डिफॉल्ट बेल कहा जाता है।

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