अवधनामा संवाददाता
प्रयागराज। सनातन धर्म मे सनातन परम्परानुसार अनुष्ठान का आयोजन व्यक्तिगत व सामूहिक रूप से किया जाता है। इसी क्रम मे प्रयाग मे माघ कल्पवास भी एक अनुष्ठान है।इसका मूल उद्देश्य त्याग है। यह त्याग मन वाणी और विचार से अपने सामर्थ्य के अनुसार धन का दान, अन्न का दान, श्रमदान, सद्विचार का दान करते हुए यह ध्यान देने को कहा गया है। यह बातें एमडी पीजी कॉलेज प्रतापगढ़ के पूर्व प्राचार्य डॉ विनोद शुक्ला ने कहीं।
डॉ शुक्ला ने बताया कि महाराज हर्ष के समय से यह चला आ रहा है। मेले मे हर तरह के व्यक्ति आते है दान देने वाले और दान लेने वाले। किसी के पास जो कुछ भी है वह देने को तैयार होता है कि लेने वालो की लाइन लग जाती है। यहां प्रतीक्षा नही करनी पड़ती है। लोग प्रतीक्षारत रहते है। दान देने वाले का सामान खत्म हो जाता है पर लाइन खत्म नही होती है। यह पर्वो पर और अधिक हो जाता है। मकर संक्रान्ति, अमावस्या, बसन्त पंचमी, अचला सप्तमी, तिलखण्डनी एकादशी माघी पूर्णिमा जैसे पर्व मुख्य आकर्षण के केन्द्र होते है। क्रमानुसार भीड़ भी बढती जाती है। माघ मास मे हिन्दू धर्म के साधू सन्त भी बडी मात्रा मे आते हैं। उनके कथाओं का भी आयोजन होता रहता है। एक तरफ भागीरथी का प्रभाव और दूसरी तरफ कथा। भागीरथी का प्रवाहमान वाणी को लोग अपने को श्रवण इन्द्रिय से पान करते रहते है। यह परम्परा प्राचीनतम समय से चली आ रही है। भीषण शीतकाल मे बिना शिकायत के लोग यहा पहुंच कर आनन्द का अनुभव करते है। इस मेले मे देश विदेश से लोग आते है और परम्परा का अनुशरण करते है। अज्ञान और असावधानी से लोग गन्दगी का भी प्रेषण करते रहते है जो समस्या को जन्म देता है।प्रशासन के दायित्व बोध से इस पर अंकुश लगाया जा रहा है, पर अभी और जनजागृति की आवश्यकता है।