गुरुदेव की दूर दृष्टी……चरखा, हथकरघा, एवं हस्तशिल्प

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अवधनामा संवाददाता

स्वरोजगार बढ़ाकर आत्मनिर्भर बनने की सिखाती है कला

ललितपुर। जैनाचार्य १०८ श्री विद्यासागर जी महाराज (आचार्य श्री) के आशीर्वाद एवं प्रेरणा से कई संस्थाएं संचालित हैं जो चरखा, हथकरघा, एवं हस्तशिल्प के माध्यम से ग्रामीण युवाओं, महिलाओं एवं समाज के निचले तबके के जरूरतमंद एवं उपेक्षित लोगों को प्रशिक्षण देकर उनके रोजगार की व्यवस्था करती हैं।
गुरुजी के पवित्र विचारों से प्रेरित होकर कई उच्च शिक्षित सन्यासी युवा एवं बहनें ग्रामीण गरीबी, शहरी पलायन व श्रमशोषण जैसे गहरी समस्याओं को दूर करने के उद्देश्य को लेकर कार्य प्रारंभ कर चुके हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका का मुख्य स्रोत्र कृषी ही है। इसमें वुबाई, सिंचाई और कटाई के समय परिवार के सभी लोग कार्य करते हैं। ऐसे में उनको कुछ दिनों और कुछ माह के लिए गांव में रहना आवश्यक हो जाता है। मगर बॉकी समय परिवार के ज्यादातर लोग एक दम खाली हो जाते है। गुरुदेव की योजना इन्हीं कृषकों के व्यर्थ होने वाले समय का सदुपयोग कर उनको आर्थिक मजबूती के साथ परिवार में रहकर सुख शांति प्रदान करता है। गुरुदेव के आर्शीवाद से कई गांवों में *”श्रमदान केंद्र”* खोले गए हैं। जिन गांवों में ये केंद्र खुल गए हैं, शहर पलायन कर चुके ग्रामीण युवा इस सुंदर जीवन शैली को अपनाने के लिए वापस लौट रहे हैं। ऐसे शहर से वापस लौटे युवा अपने आत्मविश्वास को वापस पाकर अपने परिवार और गांव के लिए सकारात्मक भूमिका निभा रहे हैं।
ग्रामीण महिलाओं को काम करने की आवश्यक्ता तो बहुत है किंतु समाज की ओर से उन्हें प्रोत्साहन नहीं मिला। अत्यंत आवश्यक्ता के चलते ये महिलाएं अपने घरों से दूर जाकर, असुरक्षित वातावरण में भी काम करती हैं। इन महिलाओं के श्रम का शोषण होना बहुत आम बात है। ऐसी महिलाओं को वात्सल्यमय वातावरण में *”चल चरखा केंद्रों”* द्वारा प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है उनके घर पर ही रोजगार की व्यवस्था की जाती है। गुरुदेव की करुणा की पराकाष्ठा तो तब ज्ञात होती है जब समाज का सबसे अछूता वर्ग जिसे सभी अपराधी कहकर उपेक्षा करते हैं उन पर गुरुदेव की दृष्टी पड़ी। जेलों में खुले “अपनापन केंद्रों” द्वारा प्रशिक्षित बंदियों एवं उनके परिवारों को न केवल एक आय का साधन मिला है अपितु जीवन जीने की एक नई राह मिल गई है। दिल्ली का तिहाड़ जेल अब गंभीर अपराधियों के लिए नहीं बल्कि हथकरघा के लिए जाना जाएगा। प्रशिक्षण प्राप्त कर ग्रामीण युवा, महिलाएं एवं कैदी खादी, हथकरघा एवं हस्तशिल्प के सभी आयामों के विषय मे सक्षम हो जाते हैं जैसे कि चरखा यंत्र चलाना, हथकरघा यंत्र, धागा योजना, ताना बनाना, भरन/जोड़नी करना, बुनाई शिल्प, हस्त कलाकारी, डॉबी, जकॉर्ड यंत्रों कि सेटिंग, बूटी एवं अन्य हस्त कलाकारी। यानी कि ये बन जाते है भारत के “समक्ष कलाकार” जो विवध, अति आकर्षक वस्त्र एवं अन्य उत्पाद बनाते हैं। ये हस्त निर्मिति वस्त्र बहुत आरामदायक, वातनकूलित होने के साथ आनंद दायक भी होते है शायद इसलिए कि ये गुरु के वात्सल्य के प्रभाव से बनते हैं।

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