नसीरूद्दीन शाह का उर्दू से इश्क

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एस.एन.वर्मा

नसीरूद्दीन शाह बालीउड के बहुत सशक्त अभिनेता है। उन्हें जिस भी चरित्र को फिल्मों में निभाने का अवसर मिला उसमें जान डाल दिया। फिल्म समीक्षक और फिल्म दर्शक भी उनके अभिनय कला का लोहा मानते है। काम करते अर्सा हो गया उम्र भी ज्यादा हो गई अब यदा कदा पर्दे पर दिखाई देते है।
हाल में वह उर्दू फेरिस्टवल जश्ने रख्ता में भाग लेने लखनऊ आये थे। उर्दू कद्रदानों की यहां भीड़ देख कर हतप्रभ हो गये। उनमें उन दिनो की याद कौंध गयी जब दिल्ली में नेशनल स्कूल आफ ड्रामा में नाटकों के ज्ञान में प्रतिभा के धनी गुरू और डायरेक्टर से उन्हें शिक्षा मिली। उस समय कई प्रतिभावान लड़के अल्का जी स्कूल में नाटकों के लिए प्रतिक्षण ले रहे थे। उनमें से कई ने वालीउड में आकर दमदार रोल निभाये है। रोहणी हंटगरणी ओमपुरी वगैरह की लम्बी लिस्ट है अभिनेता शाहरूख खां भी इस स्कूल में रहे है।

वो जश्ने रेख्ता में उर्दू कद्रदानों की भीड़ देखकर इतने अभिभूत हुये कि अपने एनएसडी दिनों की याद करते हुये भावुक हो गये। कहने लगे जब हम दिल्ली में प्रशिक्षण के दौरान नाटक करते थे तो कोई देखने नहीं आता था। नसीरूद्दीन शाह को तो मालुम ही होगा कि लखनऊ उर्दू अदब की जरखेज जमीन है। उर्दू शायर, गीतकार, संगीतकार, फिल्म निर्देशक, फिल्मी कहानीकार, डायलाग लेखक, प्लेबैक सिंगर, अभिनेता कब से वालीउड का खजाना भर रहे है। और उनकी पहचान बरकरार है।

नसीरूद्दीन शाह ने यहां आकर कहा मुझे बेइन्तहा दिली खुशी हो रही है लखनऊ आकर यहां मैने तीन साल पढ़ाई की है। लखनऊ के उन दिनों की याद में शाह रह रह के खोते दिख रहे थे। अपने सीखने के समय को याद करते हुये बताया। गुलजार साहब मिर्जा गालिब पर फिल्म बना रहे थे। फिल्म में संजीव कुमार से गालिब का रोल करवा रहे थे। शाह ने गुलजार के चिट्ठी लिखी कि गालिब का रोल मुझे दीजिये। सजीव कुमार को गालिब का रोल देकर बहुत बड़ी गल्ती कर रहे है। मै वह ऐक्टर हॅू जिसकी आप को तलाश है। बाद में मुम्बई पहंुच कर शाह फिल्मों में काम करते हुये शोहरत कमाने लकगे। कई बार वहां गुुलजार से मुलाकात होती रही पर कभी अपने इस पत्र की चर्चा उनसे नही की। बहुत बाद में मालुम हुआ कि यह पत्र कभी गुलजार को मिला ही नही है। कही से उल्टा सीधा गुजजार साहब का पता पाकर शाहने पत्र लिखा था।

फिर बाद में गुलजार ने 1988 में मिर्जा गालिब फिल्म बनाई। इस फिल्म के लिये गुंलजार ने शाह से पूछा क्या वे मिर्जा गालिब का रोल करेगे। इस सीरियल में रोल करने के आफर को लेकर शाह बताये कि मुझे लगा फोन मेरे हाथ से गिर जायेगा। आगे कहा अगर यह रोल दोबारा करने को मिले तो उसे बेहतर कर सकता हॅंू। क्योंकि उस समय मुझे मालुम नही था कि शेर किस तरह पढा जाता है।

गालिब का रोल आफर होने पर शाह ने उर्दू शायरी से यारी की और उसके इश्क में गिरफ्तार हो गये। वह कहते है इससे पहले मै सोचना था कि कवि केवल बर्डसवर्थ, कीटस, ब्रउनिंग वगैरह है और नाटक व लेखक शेक्सपीयर हैं। सभी अंग्रेजी सहित्य की विभूतियां है। शाह कहते है ग़ालिब को पढ़कर वह दंग रह गये। स्वीकारते है कि उर्दू से उनका इश्क वही से शुरू हुआ जो दिनो दिन बढ़ता ही गया। गालिब का किरदार करके उन्हें ऐसा लगा कि उनका ख्वाब सच हो गया। गालिब का रोल वह फिर करना चाहते है।

गा़लिब को पढ़कर लोग उनके दिवाने बनते रहते है यह सिलसिला लगातार चलता रहता है चलता रहेगा। उनका दो शेर मुलाहिजा फरमाइयें।
यह मसायले तसव्वुफ तेरा बयान ग़ालिब
तुझे हम बली समझते जो न बादाख्वार होता
तेरेरवादे पै जिंये तो ये जान झूठ जाना
कि खुशी से मर न जाते जो ये एतबार होता

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