जयंती विशेष पं. जवाहरलाल नेहरु

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अवधनामा संवाददाता

ललितपुर। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की जयंती पर आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि भारत के महान शिल्पी प्रथम प्रधानमन्त्री तथा आजादी के गांधीयुगीन सत्याग्रह संग्राम के महान योद्धा पं. जवाहरलाल नेहरू का सत्य और प्रेम, अभय और अहिंसा के सिद्धान्तों में गहरा विश्वास था। अपने इन्हीं सिद्धान्तों के कारण वे जनता के सुख और दुख में भागीदार रहे। उन्होंने कहा कि उनके सामने भावी भारत का एक विशाल चित्र था, जिसका उदय हमारे इतिहास की गहराइयों में हुआ था। वे अब हमारे बीच नहीं हैं पर उनके आदर्श हमारे साथ हैं। उनका मानना था कि संसार में मनुष्य से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं है, इसलिए तरक्की के अवसर और सहूलियतों की बौछार से कोई भी वंचित न रहे। किसी ने कहा था कि वे लेनिन के समान अनीश्वरवादी और टाल्सटाय के समान ईसाई थे। यह मिथ्या कथन है। वे कभी कभी अपने को मूर्तिपूजक कहते थे। लेकिन गहराई में वे एक सच्चे आध्यात्मिक व्यक्ति थे। वे तर्क के ईश्वर में ही विश्वास करते थे। स्वतंत्र भारत में आर्थिक समानता और सामाजिक न्याय के लिए उन्होंने लोकतान्त्रिक समाजवाद का जो ट्रेक बिछाया था, उसे पूरा कर दिखाने में वे प्राणपण से जुटे रहे। वे अपने जीवन में व्यक्तिगत सुख और धनसंग्रह के प्रति सदा उदासीन रहे। उनका मानना था कि कतिपय नैतिक सिद्धान्तों का जब तक हम पालन नहीं करते, तब तक हम अपने अतीत के गौरव को प्राप्त नहीं कर सकते। प्रो. शर्मा ने आगे कहा कि संसद में एक सच्चे लोकतंत्रवादी नेता की छवि उनमें झिलमिलाती रही। उनकी आत्मकथा पढऩे पर हमें ऐसा अनुभव होता है कि उनका विवरण व्यक्तिगत होते हुए भी सारभौमिक है। इसमें उनका आत्मपरिचय और ऐतिहासिक घटनाओं का समावेश भी है। साथ ही एक महान मस्तिष्क इसके पीछे कार्यरत दिखाई देता है, जो जीवन के संग्राम में खो गया है। एक कलाकार और दार्शनिक की तरह उनमें भावना, शक्ति और उत्साह से लवरेज किन्तु धैर्यपूर्वक लिखने और बोलने की शक्ति सन्निहित है। विश्व की आगुंतक महान विभूतियों द्वारा पं. नेहरू के निधन पर आयोजित शोकसभा में तत्कालीन भारत के राष्ट्रपति एवं गांधी जी की बेसिक शिक्षा के सशक्त प्रसारक डा.जाकिर हुसैन ने अपनी दिल की गहराईयों से जो अल्फाज आहत होकर व्यक्त किये थे उनका स्मरण इस तरह से कर रहा हूं। नेहरूजी आवाम के ऐसे महबूब थे कि जो एक साथ जनता के आशिक भी थे और मासूक भी थे। देश के सभी स्त्री-पुरुष इस कारण सदैव निश्चिन्त रहते थे कि वे जो भी करेंगे वह आखिरी पायदान पर खड़े आदमियों के हालात को खुशियों से भर देंगे। आमजन उनको बहुत बहुत भरोसेमंद नेता के रूप में तरजीह देता रहता था। संसद में जब उनका भीषण विरोध प्रतिपक्षी करते थे तो वे ठहाका लगा हंसते थे और मिर्जा गालिब का यह शेर अक्सर सुना देते थे, मैं आह भी भरता हूं तो हो जाता हूं बदनाम, वो कत्ल भी कर देते हैं तो चर्चा नहीं होती।

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