स्ववित्त पोषित महाविद्यालयों पर हो रहा भेदभाव बंद होना चाहिए  : हरिश्चंद्र सिंह पटेल

0
67

अवधनामा संवाददाता

प्रयागराज : महाविद्यालयों की अपनी समस्या है , कम फीस पर पर प्रवेश लेते हैं जिसमें से बड़ा हिस्सा विश्वविद्यालय को जाता है,  और शिक्षकों को वेतन तक नहीं मिल पाता है , जिसकी वजह से लगभग 25  महाविद्यालय अपने यहाँ प्रवेश नहीं लेना चाहते हैं और बंद होने के कगार पर हैं .
उपर्युक्त बात कहते हुए महाविद्यालय संघ के नेता हरिस्चन्द्र सिंह पटेल ने बताया कि क्षिक्षा लाभ का कारोबार नहीं है , लेकिन जो महाविद्यालयों की स्थिति है उसपर सरकार को विचार करना चाहिए .
एक सवाल पर हरिश्च चंद्र सिंह पटेल ने कहा कि,  स्ववित्त पोषित 126  महाविद्यालयों की विश्वविद्यालय ने सम्बद्धता रोक दिया है ,  जबकि महाविद्यालयों ने सम्बद्धता के लिए निरिक्षण शुल्क जमा किया हुआ है , निरिक्षण मंडल को पैसा न मिलने के वजह से नहीं हो पाया , जबकि दो अध्यापक को 200  विद्यालय के निरिक्षण का काम दिया गया जो 15  दिन में होना संभव नहीं था . महाविद्यालय संघ के नेता का कहना यह भी था कि महाविद्यालय ने इस सत्र के लिए  आवेदन किया था लेकिन अगले सत्र के लिए सम्बद्धता की बात हो रही है जो अन्याय है ,जबकि कोर्ट का निर्णय है की हर साल सम्बद्धता की क्या जरूरत है एक बार हो गया तो वह रहना चाहिए .
नक़ल विहीन परीक्षा का समर्थन करते  हुए हरिश्चंद्र सिंह पटेल ने बड़ा आरोप यह लगाया और जाँच की मांग किया कि,  जब उड़न दस्ता विश्वविद्यालय और जिला अधिकारी द्वारा बनाये जाते हैं , तब मूल्याङ्कन के समय एक प्रोफोर्मा के तहत मॉस नक़ल की कॉपी क्यों डेक्लेर की जाती है जिससे 40 से 45 हजार बच्चों को डिबार कर दिया गया है , उड़न दस्ते ने जिन  लगभग एक हजार छात्रों को पकड़ा उनका डिबार होना तो माना जा सकता है,  लेकिन एक प्रोफोर्मा देकर मूल्याङ्कन कर्ता अध्यापकों के ऊपर दबाव बना कर मॉस नक़ल घोषित करना कितना सही है  ?
हरिश्चंद्र सिंह पटेल ने आरोप लगाया कि एडेड महाविद्यालओं और स्ववित्त पोषित महाविद्यालयों के बीच भेदभाव किया जा रहा है डिबार करने में इसकी जाँच होनी चाहिए .
हरिश्चंद्र सिंह पटेल का कहना था कि जिस विषय  में मॉस कॉपी पकड़ी गयी उसका ही निरस्त हो बात समझ में आती है लेकिन हर विषय का निरस्त करना सही नहीं लगता है .
स्ववित्त पोषित महाविद्यालओं पर बात करते हुए प्रबंधक नेता ने कहा कि स्ववित्त पोषित महाविद्यालयों की कोई नियमावली नहीं बनी है जो होनी चाहिए , और इसके अलावां सरकार के मानक के अनुसार टीचर रखे जाते हैं फिर उनके वेतन के लिए सरकार को नियम बनाना चाहिए कि एक वेतन तय करे ,
जिसमें से आधा वेतन सरकार दे और आधा वेतन स्ववित्तपोषित विद्यालय दें , लेकिन ऐसी कोई नियमावली न होने की वजह से टीचरों का शोषण होता है .
प्रबंधक नेता का कहना था कि सारी मांगों को लेकर वे सम्बंधित मंत्रियों और कुलपति से मुलाकात कर चुके हैं बाकी लड़ाई लम्बी है निचले स्तर पर ही समाप्त हो जाय तो सही है नहीं तो कॉर्क का दरवाजा ही खटखटाना होगा .

Also read

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here