अवधनामा संवाददाता
लखनऊ। समाजवाद के खोखले नारे दिए जाते हैं। यादवों से दोगुना वोट देने वाले पसमांदा मुस्लिम समाज से न किसी को राज्यसभा भेजा गया और न ही संगठन में ही प्रदेश अध्यक्ष एव पार्टी फ्रंटलो में राष्ट्रीय अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी दी गई। जबकि नही के बराबर वोट देने वाली बिरादरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा रहा हैं। संगठन से लेकर सत्ता तक से पसमांदा समाज को दूर रखकर समाजवादी पार्टी ने स्वार्थप्रियता का उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया है।
यह बात आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के प्रदेश अध्यक्ष वसीम राईन ने अपने एक बयान में कही है। उन्होंने कहा कि जरूरत के समय वोटबैंक की भांति जमकर इस्तेमाल करने के बाद पार्टी ने इस समाज को किनारे पहुंचा दिया। उन्होंने कहा कि सपा चाहती तो संगठन का नेतृत्व पसमांदा समाज के किसी चेहरे को सौंप सकती थी पर उसने ऐसा नही किया। स्वार्थ में आकंठ डूबी समाजवादी पार्टी के काम उतना यादव समाज नही आया जितना पसमांदा मुस्लिम समाज ने सहयोग किया व झंडा डण्डा उठाया। इसके बावजूद सपा ने न पसमांदा समाज से किसी को राज्यसभा भेजा और न ही सरकार से लेकर संगठन एव टिकट में आबादी के अनुपात हिस्सेदारी दी न ही किसी पद से नवाजा। अब जब सपा संरक्षक स्वर्गीय मुलायम सिंह के न रहने पर संगठन के गठन की बात चली तो एक बार फिर जिम्मेदारी भरी कुर्सी परिवार में ही जा रही है।पसमांदा मुसलमानो का अस्सी फ़ीसदी तक वोट लेनी वाली सपा ने लोकसभा व राज्यसभा कभी पसमांदा मुसलमानो के साथ हो रही न इंसाफ़ी आर्टिकल341/3 पर लगी धार्मिक पाबंदी पर कोई आवाज़ उठाई सिर्फ़ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया हैं आने वाले लोकसभा के आम चुनाव में सपा को उनकी औक़ात पता चल जाएगी। हिस्सेदारी नही तो वोट नहीं। वोट हमारा राज़ तुम्हारा अब नहीं चलेगा।
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