नई दिल्ली। (New Delhi)श्रीलंका (Sri Lanka) की मुश्किलों का दौर खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। पहले से ही आर्थिक कंगाल हो चुके श्रीलंका में अब सरकार ने लोगों के ऊर करों का नया बोझ डाल दिया है। इसकी वजह से एक बार फिर से जनता सड़कों पर उतरने को मजबूर हो गई है। करों को लेकर बुधवार से शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन सरकार के लिए एक नई मुसीबत बन सकता है। पहले से ही देश की जनता आर्थिक दिक्कतों से परेशान है और कई तरह की किल्लतों से जूझ रही है।
2022 की शुरुआत से ही परेशानी
श्रीलंका (Sri Lanka) में वर्ष 2022 की शुरुआत से ही आर्थिक दिक्कतें शुरू हो गई थीं। जरूरी चीजों की कमी के बाद सरकार ने विदेशों से उर्वरक खरीद पर रोक लगा दी थी। इसकी वजह से खेती पर असर पड़ा और सरकार किसानों की जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ दिखाई दी।
श्रीलंका (Sri Lanka) की सरकार विदेशी कर्ज के ब्याज की रकम चुकाने में असमर्थ रही और 12 अप्रैल 2022 को सरकार ने देश को डिफाल्टर घोषित कर दिया था। इसके बाद देश में जहां विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हुआ वहीं सरकार ने देश में इमरजेंसी की घोषणा कर जनता के गुस्से को और भड़का दिया।
देश में जरूरी चीजों की भारी कमी होने लगी। नतीजतन देश की जनता सड़कों पर उतर आई और राजपक्षे सरकार से इस्तीफा देने की मांग करने लगी।
मार्च 2022 में देश में दवाओं, खाने-पीने की चीजों, पेट्रोल-डीजल और गैस समेत बिजली उत्पादन की किल्लत सामने आ चुकी थी। इसकी वजह से देश में विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत भी हो चुकी थी।
31 मार्च को विरोध-प्रदर्शन कर रही भीड़ ने राजपक्षे के निवास को घेर लिया था। 3 अप्रैल को राजपक्षे समेत पूरी कैबिनेट ने इस्तीफा दे दिया और एक राष्ट्रीय सरकार बनाने की मांग की।
18 अप्रैल को 17 सदस्यों वाली एक नई कैबिनेट बनाई गई। लेकिन सड़कों पर जनता का विरोध प्रदर्शन लगातार उग्र हो रहा था। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के घरों को प्रदर्शनकारियों ने घेर लिया था।
9 जुलाई को प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति के घर को घेर कर आग लगा दी। हालांकि इससे पहले ही राष्ट्रपति अपना घर छोड़कर पहले नेवल बेस चले गए थे। वहां से वो 13 जुलाई को एयरपोर्ट गए और देश छोड़कर मालद्वीप भाग गए थे। 14 जुलाई को राजपक्षे सिंगापुर गए और वहां से ही अपना इस्तीफा भी सौंप दिया था। इसके बाद वो बैंकाक चले गए थे, जहां से 2 सितंबर को वो स्वदेश वापस लौटे थे।
इस पूरे घटनाक्रम के दौरान देश की सत्ता रानिल विक्रमसिंघे के हाथों में रही। गोटाबाया राजपक्षे ने राष्ट्रपति रहते हुए उन्हें कार्यवाहक पीएम नियुक्त किया था। लेकिन बाद में राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में उन्होंने जीत दर्ज की थी।
रानिल के राष्ट्रपति बनने के कुछ दिन बाद तक भी देश की आर्थिक और राजनीतिक स्थिति काफी खराब रही। इस दौरान सरकार ने आईएमएफ से कर्ज के लिए काफी कोशिश भी की। भारत ने श्रीलंका (Sri Lanka) को कई तरह से मदद भी दी और स्थिति को सामान्य करने में अपना पूरा योगदान दिया। हालात, कुछ सामान्य भी हो रहे थे, लेकिन सरकार के लगाए करों के बोझ ने एक बार फिर से हालातों को खराब करने का काम किया है।
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