लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका

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शुभेन्द्र सिंह

 

जब बात लोकतंत्र में विपक्ष की होती है तो दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां याद आती है “सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।”
विपक्ष की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए यह पक्तियाँ विपक्ष के कर्तव्य का बोध कराती हैं।

यह कथन सत्य है, ‘विपक्ष अंधी सरकार की आँख’ है । विपक्ष की भूमिका होनी चाहिए कि सरकार शासन में मनमाना न कर सके । विपक्ष का काम सरकार के किसी गलत निर्णय से होने वाले दुष्परिणामों से सरकार तथा आम जनता दोनों को आगाह करना है। बावजूद इसके सरकार अपना अड़ियल रूख छोड़ने को तैयार न हो तो विपक्ष सदन के भीतर और बाहर अपना विरोध प्रकट कर सकता है। विपक्ष को यह अधिकार है कि अगर सरकार जनहित की भावनाओं को अनदेखी करते हुए कोई नीतिगत फैसला लेती है तो वह सदन में सरकार से उस पर बहस की मांग कर सकता है। इसके अलावा जरूरत पड़ने पर सरकार को रोकने के लिये सदन के भीतर कार्य-स्थगन प्रस्ताव ला सकता है।

परन्तु आजकल विपक्ष का एक अलग ही रूप देखने को मिल रहा है, सभी राजनितिक दल, सत्ताधारी दल को छोड़ कर, एक हो चुके है लेकिन विपक्ष की भूमिका के नाम सिर्फ हंगामा देखने को मिल रहा है। सरकार द्वारा सदन में एक साथ कितने विधेयक पास कर दिए जाते है परन्तु विपक्ष बहस तक नही कर पा रहा और वो मुद्दे जिनका स्वागत करना चाहिए उन्हें निशाना बना सरकार को अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है। विपक्ष सिर्फ किसी राज्य में अपनी सरकार बना कर ही खुश है जबकि चाहिए ये की वो अपनी स्थिति और मजबूत करे और अन्य राज्यो और केंद्र में सत्ताधारी सरकार की कमियों को दृढ़ता से उजागर करे।

संसद और विधान मण्डलों में विपक्षी दल की सक्रियता से सरकार सजग होकर लोककल्याणकारी कार्य सजगता से करने को बाध्य रहती है। विपक्षी दल संसद और विधान सभाओं में सरकार की आलोचना भी करते है और नवीन नीतियों तथा कार्यों के सुझाव भी देते हैं।
विपक्ष की उपस्थिति से सरकार जनता के प्रति अधिक सजगता से अपने दायित्वों का निर्वहन करती है। विधायिका में कोई भी कानून पारित होने से पूर्व उस पर विचार विमर्श और चर्चा होती है। विपक्ष के सहयोग से कानून के दोषों को दूर किया जा सकता है। विधान मण्डल और संसद की बैठकों के समय विपक्ष की भूमिका और बढ़ जाती है। विपक्ष सदन में प्रश्न पूछकर स्थगन प्रस्ताव लाकर सरकार पर दबाव बनाता है।
इस प्रकार विपक्ष जनता के सामने अपनी योग्यता को स्थापित करता है तथा विपक्ष सरकार की त्रुटियों को जनता के सामने लाता है ।
सरकार की नीतियों और कार्यों की आलोचना करके सरकार को भूल सुधार के लिये बाध्य करता है। विपक्ष द्वारा अपने दायित्व का पालन करने से सरकार प्रभावित होती है। यह दबाव समूह के रूप में कार्य करता है तथा सत्तारूढ़ दल के कामकाज पर निगरानी रखता है।विपक्ष सरकार की त्रुटियों को जनता के सामने लाता है।

परंतु आज के परिप्रेक्ष्य में प्रश्न यह उठता है कि राहुल गांधी की “पद-यात्रा” या ममता बनर्जी का विपक्ष को एकजुट करना, विपक्ष की क्या मात्र यही भूमिका रह गयी है?

ग़ैर-सत्तारूढ़ सभी छोटी बड़ी पार्टियाँ स्वयं को सबसे बड़े विपक्षी पार्टी के रूप में दिखाने और अपने पार्टी प्रमुख को विपक्ष का अगला प्रधानमंत्री पद का दावेदार प्रस्तुत करने की होड़ में व्यस्त है।

लोकतंत्र में विपक्ष की दुर्दशा को देखकर बारंबार धूमिल जी याद आते है, जिन्होंने लिखा था-“एक आदमी रोटी बेलता है, एक आदमी रोटी खाता है, एक तीसरा आदमी भी है। जो न तो रोटी बेलता है, न ही खाता है, बल्कि वह सिर्फ रोटी से खेलता है।”

यहाँ रोटी बेलने वाली देश की संसद है और रोटी खाने वाली देश की जनता। यहाँ विपक्ष की भूमिका रोटी से खेलने वाले को रोकना है।

विपक्ष को इतना मजबूत होना चाहिए कि कोई भी सत्तारूढ़ दल/सत्ता आम नागरिकों की रोटियों से खेल न सके और न ही तानाशाही कर सके।

किसी भी लोकतंत्र की प्रतिनिधि संस्था में विपक्ष और उसके नेता की भूमिका भी साफ-साफ होनी चाहिए। एक मजबूत लोकतंत्र के लिए जितना एक सशक्त सरकार की आवश्यकता होती है, उतनी ही सबल विपक्ष की क्योंकि किसी लोकतंत्र में विपक्ष देश की वैकल्पिक सरकार होती है।

लोकतंत्र में विपक्ष की कमज़ोर और निष्क्रिय भूमिका विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।

 

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