अपने चंदा की, मैं तो बनी रे चंदनियां

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अवधनामा संवाददाता

ललितपुर। करवा चौथ पर्व पर आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि वस्तुत: लोकगीत जो अनुभूत विचारों और भावनाओं में रचे बसे ऐसे वनफूल होते हैं जो माली द्वारा खाद-पानी से पोषित उद्यान के पुष्प होते हैं। एक बुन्देली बाला यद्यपि बखूबी जानती है कि मेरा साजन श्रमिक परिवार का होने के कारण आभूषण बनवाने की हैसियत नहीं रखता। परंतु वह मन का बड़ा धनी है, इसलिए वह जैसे ही काम करके घर लौटता है कि वह हंस दै लये झंझर किबार! सजना ककना (कंगन) बनवा दो सोने के। वह अपने टूटे-फूटे किवाड़ों को सहसा बंद कर लेती है और किवाड़ों की चौड़ी सांसों से इसरार करते हुए अपनी स्वाभाविक मुस्कान को छिपाने के लिए जैसे ही मीठे विनोद को अभिव्यक्त करती है तो उसकी मसखरी छिपाये नही छिपती। क्योंकि उसे बोध है कि उसके माता-पिता ने भी विवाह के समय उसे जो चांदी की कुलदेवी बीजासेन माता की पुतरिया दी थी उसके कर्ज का ब्याज तक अभी चुकता नहीं हो पाया और इधर अपनी ही बड़ी बेटी के हाथ पीले करने की चिन्ता बढ़ती ही जा रही। परंतु किसान मजदूर और शिल्पकार संतुष्ट और सुखी दाम्पत्य जीवन वनवासी भगवान राम की तरह मुसीबत के समय भी आनंदपूर्वक बड़प्पन के साथ जीवन जीने की कला में बड़े माहिर हैं। चित्रकूट की स्फटिक शिला पर प्रभु राम सीताजी के साथ बैठे हैं और वहाँ की प्राकृतिक छटा और घटा को निहार-निहार कर वहां के वनफूलों को चुन-चुन कर फूलमाला पनीते हैं और अपनी प्राणप्रिया के गले में पहना देते हैं। महर्षि वाल्मीकि कहते हैं कुश कंटकों को रौंदती हुई सीताजी भगवान राम से आगे-आगे चलने का साहस रखतीं हैं। इसी बात को और आगे बढ़ाते हुए महात्मा तुलसी कहते हैं कि उन्हें थका हुआ जानकर लक्ष्मणजी को जब पानी लेने के लिए दूर भेज दिया जाता है तो श्रीराम जी उनकी थकान मिटाने के लिए अपने पांव में लगे झूठ-मूठ कांटा निकालने का बहाना करने लगते हैं तुलसी रधुवीर प्रिया श्रम जानि कै, बैठि बिलम्ब लौ कंटक काढै। इसी तरह अपने द्वापर काव्य में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त माता यशोदा के मुख से कहलाते हैं मेरे पति (नंद) कितने उदार हैं, गदगद हूं यह कहते, रानी सी रखते हैं मुझको स्वयं सचिव से रहते हैं यानि पति होकर वे कभी निरंकुश राजा की तरह कठोर आज्ञा पालन के लहजे में न बोलकर मंत्री अर्थात मंत्रणा की मीठी मुद्रा में ही सदा संलाप करते हैं। आधुनिक युग में बापू और वा लगातार 22 वर्ष तक दिल से दिल और हाथ से हाथ मिलाकर सत्याग्रह संग्राम में कदम से कदम मिलाकर तथा भारत लौटने पर स्वतंत्रता संग्राम में अग्रसर हेते रहे। इसी तरह पति और पत्नी एक दूसरे की निर्जीव संपत्ति न होकर कर्तनी के दो फलों की तरह एक मुकम्मल इकाई हैं। अँग्रेजी का वाईफ शब्द वीविंग अर्थात कपड़ा बनाने में स्त्री-पुरुषों के सहकारी होने के फलस्वरूप वैसे ही निर्मित हुआ है जैसे भारतीय संस्कृति के कर्मयज्ञ में पति पत्नी गठजोड़ा के साथ आसीन होते हैं। सचमुच करवा का व्रत भारतीय दाम्पत्य जीवन के प्रेम प्रवाह का ज्योतिर्मय निर्झर हैं।

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