केजरीवाल के मन्त्री का इस्तीफा

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एस.एन.वर्मा
मो.7084669136

 

दिल्ली के कैबिनेट मंत्री राजेन्द्र पाल गौतम ने, धर्म परिवर्तन सभा में उपस्थित रहने की वजह से इस्तीफा दे दिया। तस्वीर और वीडियो में स्टेज पर देखे गये जहां लोग प्रतिज्ञा कर रहे थे हिन्दी देवी देवताओं, विश्नू, शिव, गौरी का प्रार्थना नही करगे। भाजपा ने आप पार्टी और उसके मुख्यमंत्री पर आरोप लगाया है कि हिन्दुओं से नफरत करते है।
बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले 22 कसमें खाते है जिसे अम्बेडकर ने बनाया है। 1956 में जब उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार किया था। तब से इस तरह की सभायें होती रही है और इस धर्म को स्वीकार करने वाले ये 22 कसमें लेते रहे है। भाजपा अब तक अम्बेडकर की प्रशंसा करती रही है। पर मंत्री की उपस्थिति को लेकर भाजपा आरोप लगा रही है कि हिन्दू देवी देवताओं को अपमान किया गया है।
1956 में नागपुर दिक्षा भूमि पर अम्बेडकर अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार कर ये 22 कसमें ली थी। ये कसमें बाहृमणवादी संस्कृति को अस्वीकारती है। इसमें बौद्ध धर्म के प्रति समपर्ण है। उन बिन्दुओं में है न तो विश्वास करेगे न तो ब्रहमा, विशनू, शिव राम कृष्णा, गौरी गनपति और दूसरे देवी देताओं की पूजा करेगे। अवतारवाद को नकारती है। इसमें बुद्ध को भगवान विश्नू का अवतार नही माना गया है। श्राद्ध पिन्डदान से भी इनकार किया गया है। ब्राहमणों द्वारा कोई भी अनुष्ठान नही करायेगे। वुद्ध की शिक्षा से मुह नही मोडेगे। मानव के समता में विश्वास करेगे और समानता का प्रसार करेगे। बुद्ध द्वारा बताये गये आठ रास्तों को और परमितास का पालन करेगे। हर प्राणियों के प्रति करूणा, प्रेम और दया का भाव रक्खेगे। चोरी, झूठ, यौनिक पाप, नही करेगे।
अम्बेडकर ने हिन्दू धर्म इसलिये छोड़ा कि इसमें आदमियों के बीच ऊंच-नीच का गहरा भेद है। कहा करते थे में फिर से पैदा हो रहा हॅॅू और बौद्ध धर्म के प्रति अपने को प्रतिबद्ध कर लिया है। बुद्ध की शिक्षा और धम्म के अनुसार जीवन व्यतीत कर रहा हॅॅू।
बहुत से भाजपा वाले यह भी कह रहे है कि वे हिन्दू देवी देवताओं की अवहेलना नही कर रहे है। सिर्फ कह रहे है स्वीकार उनकी पूजा न करें। अगर कोई एक धर्म छोड़कर दूसरा धर्म स्वीकार करता है तो स्वाभविक है कि पिछले धर्म की सारी मान्यताये, पूजा पाठ से अपने को अलग कर लेगा। बिहार के भाजपा एमएलसी संजय पासवान कहते है अम्बेडकर अपनी कसमें द्वारा हिन्दुत्व का अपमान नही करते है उच्च जाति के हिन्दुओं को चिढ़ा रहे थे। जिन्दगी भर जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ते रहे। उन्हंे महसूस कराना चाहते थे कि कथित नीची जाति वाले किस तरह की नारकीय जीवन जी रहे है। अम्बेडकर हिन्दू विरोधी होते तो यूनिफार्म सिविल कोर्ड स्वीकार नही करते। संस्कृत को 22 भारतीय दफ्तरी भाषाओं में भी शामिल करने को स्वीकार नही करते।

 

1936 में मुम्बई में महारो की सभा में कहा था मानवीय व्यवहार पाने के लिये अपने को बदलो। वह बीस सालों में सारे धर्मो को पढ़ डाले। अन्त में बौद्ध धर्म को चुना। 1936 में ही जातपात तोड़क मन्डल की सभा में कहा छोटी-छोटी वातो का सहारा लेने से कुछ नही होगा। उन लोगों को यह भी बताने से कुछ नही होगा कि शास्त्रों में ऐसा नहीं लिखा है। लोगो ने पढ़कर अपने अपने अर्थ निकाले है। महत्व इसका है कि लोगों में शास्त्रों की मान्यता किस तरह की है। जैसे बुद्ध अड़े रहे है वैसे ही तुम लोग भी अडिग रहो। गुरू नानक की तरह अडिग खड़े रहो। शास्त्रों का अपमान मत करों। उसके अधिकार का इनकार करो। जैसे बुद्ध और नानक ने अधिकार को नहीं माना वैसे ही तुम लोग भी मत मानो।
अगर देखा जाये तो बुद्ध की शिक्षा में कोई अनर्गल बात नही है। बौद्ध धर्म में करूणा प्रधान है। अगर निष्पक्ष होकर देखा जाय तो बौद्ध और जैन धर्म बहुत तार्किक है। जब तक बद्धु थे धर्म अवाध गति से चलता रहा। पुराने जमाने के शिवालेख गवाही देते है बड़े बड़े राजा महाराजाओं ने इस धर्म को स्वीकार किया। चूकि इतिहास पर पश्चिमी देशों का अधिकार उसे अपने अनुसार तोड़ा मरोड़ा है। भारत के अंग्रेजीदा साहबों के भक्त है। उन लोगों ने क्राइस्ट को इसाई धर्म को सबसे श्रेष्ठ बताया। पर अगर निष्पक्ष हो कर देखा जाय तो बौद्ध धर्म सभी के ऊपर आता है। करूणा और अहिंसा द्वारा मानव के डिगनिटी का उदघोष करता है। यही वजह है कि यह धर्म दूसरे देशों में भी फैला हुआ है। बौद्ध के अनुयायियों ने इसकी कई शाखायें निकाल कर इस धर्म को विकृत कर दिया और हिन्दू धर्म की सारी बुराइयां इसमें समा गयी। कम्युनिस्टो के कम्यून की अवधारणा बुद्ध को मठो से लिया गया है। जहां संचय के लिये कोई जगह नही है जो हर बुराई की जड़ है। मंत्री ने अपने पद छोड़ने की वजह बताई है कि मुख्यमंत्री केजरीवाल को बचाने के लिये ऐसा किया है। केजरीवाल पर ऐसी क्या मुसीबत आ रही थी। विचार धारा का जवाब विचारधारा से दिया जाना चाहिये। अगर नेता के पास विचार नही है तो वह जनता के पास क्या लेकर जायेगा। फिर वह अनर्गल बाते करेगा। मंत्री का इस्तीफा तो ऐसा लग रहा है जैसी स्त्री पति से रूठकर मायके चल दी है।

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