सीतापुर में आज फिर गयी एक बच्ची की जान
सय्यद काजि़म रज़ा शकील
जहाँ भी किसी इंसान के लडऩे-झगडऩे का जिक्र होता है तो मिसाल दी जाती है कि कुत्ते की तरह एक-दूसरे को नोच रहे थे। यह सिलसिला आज का नहीं सदियों पुराना है। पहले आपसी लड़ाई-झगड़े की मज़म्मत की जाती थी चाहे वह कुत्ता ही इंसान को नोचे या इंसान की शक्ल में कुत्ते की सीरत पर अमल करने वाले इंसान ही इंसान को नोचें।
इधर कुछ दिनों से लगातार उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले से झकझोर देने वाली खबरें मिल रही हैं कि वहां कुत्ते मासूम बच्चों को अपना निवाला बना रहे हैं। बेशक यह बहुत ही दर्दनाक हादसे हैं, जिसमें अब तक दर्जन भर से मां-बाप अपने कलेजे के टुकड़ों से पल भर में जुदा हो गये। कुत्तों के मासूम बच्चों पर हमला कर उन्हें निर्जीव बना डालने की घटनाओं ने मन-मस्तिष्क पर गहरा आघात पहुंचाने का काम किया है। प्रदेश की योगी सरकार भी इस तरह की घटनाओं पर हैरान है और सरकार ने मासूम बच्चों को खूंखार हो चुके कुत्तों से बचाने के लिए सख्त निर्देश दिये। सीतापुर की प्रभारी मंत्री रीता बहुगुणा जोशी ने सीतापुर पहुंच कर पीडि़त परिवारों से भेंट कर जिला प्रशासन को सख्त निर्देश दिये। बावजूद इसके रविवार को एक बच्ची फिर इन खूंखार हो चुके कुत्तों की भेंट चढ़ गयी और पीछे छोड़ गयी अपनी मासूम अठखेलियों और अदाओं की कभी न खत्म होने वाली यादें। जानकारी के मुताबिक सीतापुर के खैराबाद क्षेत्र के महेशपुर चिलवारा गांव में आज एक 10 वर्षीय बच्ची को आवारा कुत्तों ने नोंच डाला। सुबह 9.30 बजे चार बच्चियां गेहूं की बाली बीनने गयी थी तभी उन पर कुत्तों के झुण्ड ने हमला कर दिया। यह बच्चियां शोर मचाती हुई भागी लेकिन छंगा की बेटी रीना को कुत्तों ने दबोच लिया और उसको नोचा जब तक गाँव के लोग पहुंचते बच्ची को बुरी तरह कुत्तों ने नोच डाला था और मासूम रीना की मौके पर ही मौत हो गयी।
पहले कहा जाता था कि कुत्ते दुम दबा कर भागे लेकिन अब क्या है कि कुत्तों के सामने इंसान भाग रहा है। कुत्ते झुंड में आकर किसी पर भी हमलावर हो जाते हैं और जान जाने तक नहीं छोड़ते। कुत्तों की यह प्रवृत्ति इंसान रूपी जानवरों में भी पिछले कई सालों में विकसित हो चुकी है और देश के कई राज्यों में इसी तरह इंसान का चेहरा लिए सड़कों पर घूम रहे जानवरों ने न जाने कितने ही निरीह इंसानों को मौत के घाट उतारने का गुनाह किया। आज कुत्तों की हरकत पर इंसानों का अमल और खुद कुत्ते समाज के लिए मुसीबत बने हुए हैं। सरकार चाहे जितना बचने की कोशिश करे लेकिन जि़म्मेदारी उसी की है की इन वारदात को रोके। जहाँ तक कुत्तों के हमले और इंसान की मौत का सवाल है कुत्ते पकडऩे की टीम हर जि़ले और नगर निगम में होती है। चर्चा है कि स्लाटर हाउस बंद होने की वजह से ऐसे मामले बढ़े हैं। मैं कहता हूँ की यह ठीक भी है और गलत भी। यह सही है कि गोश्त की दुकानों की वजह से कुत्तों को हड्डी और गोश्त मिल जाते थे और घरों से फेंकी गयी हड्डियां और बचे हुए गोश्त कुत्तों की खुराक पूरा करते थे लेकिन क्या स्लाटर हाउस बंद हो जाने से कुत्तों की भूक खत्म नहीं हो रही यह भी सही है। प्रशासन की जि़म्मेदारी है कुत्तों को पकडे और उनको बंद करे या ऐसा इंतज़ाम करे जिससे की वह काटना और नोचना बंद करे जिस तरह चिडिय़ाघर में बंद जानवरों के खाने (चाहे गोश्त ) ही क्यों न हो उसका इंतज़ाम सरकार ही करे लखनऊ में बंद शेर जैसे जानवरों के लिए गोश्त का इंतज़ाम किया जाता है। ऐसे ही सरकार को चाहिए पहले कुत्ते बस्ती से बाहर निकालने का इन्तेज़ाम करे।
देश और प्रदेश के साहेब से आखिर में निवेदन है कि साहब भीड़ में आकर इंसानों पर हमले करने वाले कुत्तों और कुत्तों की तरह भीड़ में आने वाले इंसानरूपी जानवरों पर सख्ती करिये जो इंसान की जान के लिए खतरा बन रहे हैं। ज़रूरी नहीं जिसके बच्चे हों वही बच्चे की जान जाने का दर्द रखता हो दर्द तो हर इंसान रखता है बस जरूरत है उसके अंदर इंसानियत हो।
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