एस.एन.वर्मा
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यूपी विधानसभा में गुरूवार का दिन इतिहासिक रहा। इसदिन सारी व्यवस्था महिलाओं को ही करनी थी सवाल जवाब भी महिलाओं को करना था। पुरूष केवल उनकी बातों को सुनेगे दिर्घा में भी महिलाओं और छात्रायें थी। पुरूष केवल सुन रहे थे। जब उनके पार्टी की बात होती तो भेजे थपथपाते थे। कोशिश यह थी कि इस मानसिकता से लोगों को निकाला जाय कि महिलायें क्या चर्चा करेगी। सदन में उनके लिये नियम शिथिल किये गये। एक बात पर अध्यक्ष ने महिला सदस्य टोका तो बोली आज तो नियम नही चलेगा। अध्यक्ष ने जवाब दिया यह ठीक है नियम नही चलेगा पर व्यवस्था तो चलेगी। महिला सदस्यों द्वारा की गई चर्चा का सार यही निकला कि खास दिन के बजाय महिलाओं के लेकर सोच बदले साथ चले।
चर्चा के दौरान सपा की रागिनी सोनकर ने मर्दो के मानसिकता पर शेर के माध्यम से सटीक टिप्पणी की। कौन बदन से आगे देखे औरत को सबकी आंखे गिरीव है आज इस नगरी में इसी सन्दर्भ में पंजाबी कवित्री अमृता प्रीतम ने बहुत अच्छी कविता लिखी है जो दिल पर सीधे चोट करती है दीवारों में चुनवायी जाती है, नंगी नचवाई जाती है, क्या औरत का बदन के सिवा कोई दूसरा वतन नही होता।
वास्तव में नारी समस्या को पुरूषों के साथ-साथ औरतो ने भी विकराल बना डाला है। कभी भारत में नरियां पूजी जाती थी, देवी का नाम मिला था। कहा जाता है जहां स्त्रियों का पूजा जाता है वहां स्वर्ग बसता है। पर आज का सामाजिक माहौल देखे तो प्रबुद्ध आदमी के चेतना को बहुत चोट लगती है। अखबार देखिये तो रोज महिलाओं पर किया जा रहे अत्चाचारों से कालम भरा रहता है। समाचार तो चार लाइनों में बलात्कार, धोखा, दहेज के लिये मार डालने आदि के होते है पर प्रबुद्ध आदमी का पूरा अस्तित्व कांप जाता है। लगता है देश में इसके अलावा सारे काम गौण है। तीन महिने की बच्ची से लेकर 60 साल तक की वृद्धा कोई भी सुरक्षित नही है। बलात्कार के बाद प्रइवेट अंगो में राड वगैरह डाल देना या मार डालना, या जला देना ऐसे होता है जैसे सिगरेट सुलगा रहे हो। घ्रिरणा और शर्म से सर झुक जाता है। जय शंकर प्रसाद ने लिखा है नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास रजत पग नग तल में, पियूष श्रोत सी बहा करो जीवन के सुन्दर समतल में क्या यही श्रद्धा है।
यह भी सच है कि नारियों पर अत्याचार करने में खुद नारियां भी कम नही है। सास, ननद, जिठानी घर में नई नई ब्याह कर आई स्त्री के प्रति कितनी क्रूर हो जाती है कितना गलत व्योहार करती है देख कर अजीब लगता है कि एक स्त्री स्त्री के प्रति इतनी क्रूर हो सकती है। यह भी देखा जाता है वही काम लड़की दामाद करते है तो लड़की की मां खुश होती है दिल से आर्शिवाद देती है पर वही काम जब लड़का बहू करते है हाय तौबा मचाती है लड़के की मां आसमान सर पर उठा लेती है।
यह तो रही रिश्तों की बात अब सिर्फ इन्सानियत के रिश्ते की धज्जियां उड़ते देखिये। महिलायें ही चकला चलाती है। बहला फुसला कर लड़कियों को लाती है। इसके अलावा शादी शुदा पुरूष यदि पत्नी के रहते किसी दूसरी पर आसक्त होता है तो तथा कथित माशूका उस शादी वाली औरत का ख्याल नही करती है सौत बनने के लिये सारे दांव पेच चलती है। ब्याहता औरत को रास्ते से हटाने के लिये आपहरण करना देना या हत्या करवा देना उसको बड़ा सहज लगता है और करती है। औरत के खिलाफ औरत इतनी क्रूर होती जा रही है। अखबारों में ये खबरे भी आम होती जा रही है। औरत के खिलाफ औरत की यह क्रूरता कितनी घिनौनी लगती है। लड़की होने पर मायें खुद लड़की को मरवा देती है जन्मते ही अब भू्रण की जांच होती है, अगर लडकी होती है तो उसे साफ करवा देती है। आजकल पुरूष डाक्टरों के साथ स्त्री डाक्टर भी इस अवैध धन्धे में लगे हुये है।
कुछ औरते है जो लड़कियों को बहला फुसलाकर अपने जाल में फंसा कर दलालों के हाथ बेच देती है। औरतें का औरतो द्वारा क्रूर शोषण किया जाना मर्दो द्वारा किये जा रहे शोषण से किसी भी माने में कम नही है। इस सम्बन्ध में औरतो में भी सोच बदलनी होगी। मर्दो में भी सोच बदलनी होगी। इसमें मर्दो की जिम्मेदारी अधिक है। क्याकि अभी सभी मोर्चो पर पुरूष आगे है। मर्दो की सोच बदलेगी तो महिलायें खुद ब खुद बदलने लगेगी। क्योकि ज्यादा अपराध मर्द ही करते है औरतों मर्दो के लिये ही करते है।
सदन में टोका टोकी के जवाब में भाजपा की अनुपमा जयसवाल ने मर्दो की मानसिकता पर बहुत सही बात कविता में कही। कविता देखिये। मुझे आवाज उठाने दो हाशिये से निकल मुख्य पटल पर आने दो और कितनी परिक्षायें लोगे। कभी मुझे भी आजमाने दो। प्रकृति द्वारा प्रदत्त शारीरिक रचना की वजह से नारियों के रास्ते में कई अवरोध है। पर चूकि समाज की हर गतिविधि में पुरूष ड्राइविंग सीट पर है इसलिये उस पर ज्यादा जिम्मेदारी है नारी के प्रति सोच बदलवाने के लिये। पहली सीढ़ी होनी चाहिये लोकसभा और विधानसभा में महिलाओं की सदस्य संख्या निर्णायक स्तर तक बढ़ाई जाये। तुलनात्मक रूप से महिलाओं में काफी बदलाव आया है फिर भी अपेक्षा से बहुत कम है। महिला जितनी ही शिक्षित होगी और जितनी ही आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होगी उतनी ही उसकी भागीदारी बढ़ेगी और उसकी बात सुनी जायेगी।