यदि सारे एनआरआई भारत वापस लौट आए तो भारत फिर वन सकता है सबसे शक्तिशाली

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अवधनामा संवाददाता

 

धर्मसभा में मुनिश्री ने विदेशों में रह कर प्रतिभा दिखाने बालों को दी नसीहत
ललितपुर। अभिनन्दनोदय तीर्थ क्षेत्र में धर्म सभा को संबोधित करते हुए श्रमण मुनि श्री सुधा सागर जी महाराज ने कहा कि हमारा भारतवर्ष वह महान देश है जिसमें कई महापुरुषों को जन्म दिया है, लेकिन हमारे भारतवर्ष का युवा पथभ्रष्ट हो गया है । वह शिक्षा ग्रहण भारत में करता है, उपलब्धियां भारत में हासिल करता है और सेवाएं विदेशों में जाकर दे रहा है, यह हमारे देश का बड़ा ही दुर्भाग्य है। हमारे देश को गुलाम बनाने में ऐसे ही लोगों का हाथ था जो अपनी उपलब्धियों को विदेशियों के हवाले कर देते थे। धर्मसभा में उन्होंने उन सभी विदेशों में रह रहे देशवासियों से आग्रह किया कि जो प्रतिभा वह विदेशों में दिखा रहे हैं यदि वह प्रतिभा वह अपने देश में आकर दिखाएं तो हमारा देश दुनिया के सर्वश्रेष्ठ देशों से भी ऊपर होगा । क्योंकि दुनिया के सर्वश्रेष्ठ देश हमारे उन युवाओं की प्रतिभा के बल पर अपने आप को श्रेष्ठ बता रहे हैं जो उनके यहां अपनी सेवाएं दे रहे हैं। यदि वह सभी वापस आकर अपने देश में रहते हैं और देश की सेवा करते हैं तो निश्चित तौर पर अपना भारतवर्ष एक बार फिर सोने की चिड़िया बन सकता है। इसके साथ ही उन्होंने भारत वासियों से आग्रह किया कि वह आज यह प्रतिज्ञा ले कि चाहे कोई भी स्थिति हो लेकिन कोई भी देशवासी अपना भारत देश जन्मभूमि छोड़कर विदेशों में नहीं भागेगा। हम किसी भी परिस्थिति में यह देश नहीं छोड़ेंगे, भारत बर्ष हमारे बड़े पुण्य उदय से मिला है महानुभाव कैसी भी परिस्थिति आये हम यह भारत बर्ष तब तक नहीं छोड़ना जब तक हमारे प्राण न निकल जाएं। धन दौलत सम्पदा के लालच में ही हमारा देश गुलाम हुआ था, अंग्रेजों ने भारतीयों को लालची के रूप में पहचाना और लालच देकर भारत को गुलाम बना लिया। आज की स्थिति ऐसी है कि भारत के सबसे ज्यादा एनआरआई विदेशों में हैं। अंग्रेजों की नीति और कारगर भी जब उन्होंने यह जान लिया कि जब तक भारत के लोग दूध पीता रहेगा तब तक यह गुलाम नहीं हो सकता, तब चौधरी झुंझुनू चाहे से शुरुआत की और चाय पीने की लालच देकर पांच पैसा देने का भी आवाहन किया, जिसका परिणाम यह हुआ कि आज देश में विदेशी शराब बिक रही है। लालच ने हमारे दूध को फीका कर दिया। समन्तभद्र स्वामी ने सभी तरह के उदाहरण देकर शास्त्रों में स्पष्ट रूप से लिखा है। नियम अगर लिया है कि पूरी शक्ति और श्रद्धा से पालन करने से वह बड़े बड़े चमत्कार दिखा देता है। पक्षपात से रहित होना दृढ़ संकल्प की श्रेणी में आता है। इसलिए अपना संकल्प चूहे के स्वभाव का बनाओ जो अपने बिल को कभी नहीं छोड़ता चाहे उसे वहीं पर मौत भी क्यों न आ जाये। देव भूमि के देवताओं में चूहे के स्वभाव का पुण्य होता है, लेकिन कर्म भूमि के जीवों में यह कुत्ते के स्वभाव का होता है। यहां पर अनेक संतानें पैदा करने का कारण यह था कि सभी का स्वभाव और परिणति अलग अलग होती है और उनकी स्थिति कमजोर होती है, इसलिए कई लोग मिलकर एक कमजोर को सम्हालेंगें। लेकिन आज की स्थिति विल्कुल उलट है। आज लोग कुत्ता और विल्ली के स्वभाव के हो गए है, कब बदल जाये पता ही नहीं चलता है। आज तुम्हारा कोई भरोषा नहीं कि कब आपकी परिणति बदल जाए, आज आपका अपना ही आप से दगा कर रहा है। आज दोस्ती में सबसे ज्यादा दगा हो रहा है आज अपने ही अपनों की हत्याएं कर रहे है। इस संसार में कोई किसी का सगा नहीं है, कब कौन बदल जाए कोई कुछ नहीं कह सकता। हम दुनिया को नहीं बदल सकते लेकिन हम अपने आप को बदल सकते है हम अपने धर्म और अडिग रह सकते है। मुनि मांतुंगाचार्य ने कहा है कि हम भवान्तर में भी आपके चरणों को छोड़कर नहीं जाएंगे। लेकिन आज आपका कोई भरोषा नहीं इसलिए आज सिद्धि और चमत्कार नहीं है। भरोषा रखने से ही आपका कल्याण होगा। ये धर्म दूध से छला है इसलिए छांछ भी फूंक फूंक कर पी रहा है। हमने बदमासी से कर्म को धोखा देकर मनुष्य पर्याय तो पाली लेकिन इसका सही उपयोग नहीं कर पाए। जिस गन्दोदक से सात सौ मुनियों के कोड ठीक हुआ था लेकिन आज एक फुंसी भी ठीक नहीं होती, ये हाल हुआ है आपके श्रद्धान का। आज संसार में जो जो सुखी हुआ है उसने धर्म छोड़ दिया और अधर्मी बन गया, इसलिए कर्म ने भी आप पर मेहरवानी करना छोड़ दिया। आज मंदिरों में दुखी लोग जाते है और सुखी होटलों गार्डनों में जाते है। आज ज्यादातर मंदिरों में दुखी लोगों जाते है इसलिए मंदिरों के अतिशय खत्म होता जा रहा है। यदि सुख के दिन में धर्म का ध्यान करना सुरु कर दो तो एक दिन आप सिद्दशिला पर भी बैठ जाओगे। कबीर दास जी ने कहा है कि “दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोई, जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होए”। इसलिए यदि सुखी व्यक्ति को मन्दिर जाए तो आज भी मंदिरों में अतिशय होगा।

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